UNIT 1
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति
एक विषय के रूप में इसके विकास का अध्ययन हमें इसकी महत्ता, उपयोगिता एवं प्रासंगिकता से परिचय करवाएगी। इस इकाई के अध्ययन से हम अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का एक विषय-अनुशासन के रूप में हुए क्रमशः विकास के विभिन्न आयामों को जानेंगे एवं उन्हें विश्लेषित करेंगे। वर्तमान में कोई राष्ट्र-राज्य किस प्रकार अन्य राज्यों से संबंध स्थापित करता हैं एवं इन सम्बन्धों के निर्वहन से उसके किन किन हितों की पूर्ति होती है, यह जानने का प्रयास करेंगे। विषय-विकास के विभिन्न पड़ावों, आयामों एवं उनका पृथक-पृथक महत्व जानेंगे। इस विकास यात्रा के अध्ययन का वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में क्या भूमिका हों सकती है, इसे भी जानने का प्रयत्न करेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति एक विषय-अनुशासन के रूप में वर्तमान में बहु-विश्लेषित अनुशासनों में से है। इसकी विषय-सीमा में लगभग सम्पूर्ण विश्व की राजनीतिक एवं आर्थिक गतिविधियां हैं। विश्व के विभिन्न भागों में अपनी विभिन्नताओं के साथ बसे विशाल जन-समुदाय भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय अस्मिता वाली सीमा-रेखाओं के भीतर स्थित होते हैं।
व्यक्ति; चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष, बच्चा हो या युवा, प्रौढ़ हो या वृद्ध; सभी किसी न किसी राजनीतिक सीमा से अवश्य ही बंधे होते हैं। यह उनकी एक सशक्त पहचान होती है। आज तकरीबन दो सौ से अधिक राष्ट्र-राज्य अस्तित्व में हैं, जो अपनी-अपनी स्वतंत्र सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान के साथ समग्र विकास हेतु प्रयत्नशील हैं।
आधुनिक राज्य, संप्रभुता के आधुनिक मापदण्डों के अनुरूप अपने विषय में निर्णय लेने के लिए बिल्कुल स्वतंत्र होते हैं| इसके साथ ही वो अन्य राज्यों की भी संप्रभुता का आदर करते हैं और उनसे भी यही अपेक्षा रखते हैं|
निश्चित ही सभी राज्य अपने विकास की दिशा एवं राष्ट्रीय लक्ष्य स्वयं ही तय करते हैं एवं तदनुरूप प्रयासों के लिए वे स्वयं ही जिम्मेदार होते हैं। इसमें अन्य हस्तक्षेप स्वीकार योग्य नहीं होते और ना ही कोई राज्य किसी अन्य राज्य से किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप की अपेक्षा ही रखता है; क्योंकि यह उसकी संप्रभुता को क्षीण करता है।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अर्थ है राज्यों के मध्य राजनीति करना। यदि हम राजनीति के अर्थ का अध्ययन करें तब तीन प्रमुख तत्व सामने आते हैं –
(i) समूहों का अस्तित्व
(ii) समूहों के बीच असहमति
(iii) समूहों द्वारा अपने हितों की पूर्ति।
इस आशय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आंकलन करें तो ये तीन तत्व मुख्य रूप से है –
(i) राज्यों का अस्तित्व
(ii) राज्यों के बीच संघर्ष
(iii) अपने राष्ट्रहितों की पूर्ति हेतु शक्ति का प्रयोग।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति उन क्रियाओं का अध्ययन करना है जिसके अंतर्गत राज्य अपने राष्ट्र हितों की पूर्ति हेतु शक्ति के आधार पर संघर्षरत रहते हैं। इस संदर्भ में राष्ट्रीय हित अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख लक्ष्य होते हैं| संघर्ष इसका दिशा निर्देश तय करता है तथा शक्ति इस उद्देश्य प्राप्ति का प्रमुख साधन माना जाता है।
परन्तु उपरोक्त परिभाषा को हम परम्परागत मान सकते हैं, क्योंकि आज ‘अंतर्राष्ट्रीय राजनीति’ का स्थान इससे व्यापक अवधारणा ‘अंतर्राष्ट्रीय संबंधों’ ने ले लिया है। इसके अंतर्गत राज्यों के परस्पर संघर्ष के साथ-साथ सहयोगात्मक पहलुओं को भी अब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है।
इसके अतिरिक्त आज ‘राज्यों’ के इलावा अन्य कई कारक भी अब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विषय क्षेत्र बन गए हैं। जिसके अंतर्गत आज व्यक्ति, संस्था, संगठन व कई अन्य गैर-राज्य ईकाइयाँ भी सम्मिलित हो गई हैं। इसका वर्तमान आधार व विषय क्षेत्र आज काफी व्यापक स्वरूप ले चुका है।
इन सभी विषयों पर चर्चा से पहले अलग-अलग विद्वानों द्वारा दी गई निम्न परिभाषाओं की समीक्षा करना अति अनिवार्य हो जाता है-
- परम्परागत परिभाषाएँ-
इन परिभाषाओं का दायरा अति सीमित है, क्योंकि इसके अंतर्गत मूलत: ‘राज्यों’ को ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के कारक के रूप में माना गया है। यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप तक ही सीमित है। मुख्य रूप से हेंस जे मारगेन्थाऊ, हेराल्ड स्प्राऊट, बोन डॉयक, थाम्पसन आदि इसके मुख्य समर्थक हैं जो इनकी निम्न परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है-
- हेंस जे मारगेन्थाऊ – “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है।”
- हेराल्ड स्प्राऊट – “स्वतन्त्र राज्यों के अपने-अपने उद्देश्यों एवं हितों के आपसी विरोध-प्रतिरोध या संघर्ष से उत्पन्न उनकी प्रतिक्रिया एवं संबंधों का अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति कहलाता है।”
- वोन डॉयक- “अंतर्राष्ट्रीय राजनीति प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों की सरकारों के मध्य शक्ति संघर्ष है।”
- थाम्पसन- “राष्ट्रों के मध्य प्रारम्भ प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ उनके आपसी संबंधों को सुधारने या खराब करने वालीपरिस्थितियों एवं समस्याओं का अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति कहलाता है।”
2. समसामयिक परिभाषाएँ-
नवीन परिभाषाओं में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के व्यापक स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की चर्चा की गई है। इसमें राज्य के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के नवीन कारकों जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन, देशांतर समूह, गैरसरकारी संगठन, अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें, कुछ व्यक्तियों आदि को भी सम्मिलित किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें संघर्ष के साथ-साथ सहयोग तथा राजनीति के साथ-साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में इसे प्रभावित करने वाले अर्थात, सांस्कृतिक,धार्मिक, सामाजिक, विज्ञान एवं तकनीकि आदि पहलुओं का भी उल्लेख किया गया है। विभिन्न लेखकों की परिभाषाओं से यह आशय अति स्पष्ट रूप में उजागर हो जाता है|
- नार्मन डी पामर व होवार्ड सी परकिंस – “अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राष्ट्र राज्यों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तथा समूहों के परस्पर संबंधों के अतिरिक्त और बहुत कुछ सम्मिलित है। यह विभिन्न स्तर पर पाये जाने वाले अन्य संबंधों का भी समावेश करता है जो राष्ट्र राज्य के ऊपरी व निचले स्तर पर मिलते हैं। परन्तु यह राष्ट्र राज्य को ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का केन्द्र मानता है।”
- स्टेनले होफमैन- “अंतर्राष्ट्रीय संबंध उन तत्वों एवं गतिविधियों से सम्बन्धित है, जो उन मौलिक ईकाईयों जिनमें विश्व बंटा हुआ है, की बाह्य नीतियों एवं शक्ति को प्रभावित करता है।”
- क्विंसी राइट- “अंतर्राष्ट्रीय संबंध केवल राज्यों के संबंधों को ही नियमित नहीं करता अपितु इसमें विभिन्न प्रकारके समूहों जैसे राष्ट्र, राज्य, लोग, गठबंधन, क्षेत्र, परिसंघ, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, औद्योगिक संगठन, धार्मिक संगठनआदि के अध्ययनों को भी शामिल करना होगा।”
इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप प्रारंभ से वर्तमान तक बहुत व्यापक हो जाता है। इसमें आज राष्ट्र राज्यों के साथ विभिन्न विश्व इकाइयों एवं संगठनों के अध्ययन का समावेश हो चुका है। परन्तु इन सभी परिवर्तनों के बाद भी इन अध्ययनों का केन्द्र बिन्दु आज भी राष्ट्र राज्य ही है।
परिभाषाओं के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप के बारे में निष्कर्ष सामने आते हैं।
- इन परिभाषाओं से एक बात बिल्कुल स्पष्ट रूप से प्रकट होती है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति अभी भी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इसके बदलाव की प्रक्रिया अभी स्थाई रूप से स्थापित नहीं हुई है। अपितु यह अपने विषय क्षेत्र के बारे में आज भी नवीन प्रयोगों एवं विषयों के समावेश से जुड़ी हुई हैं
- एक अन्य बात यह उभर कर आ रही है कि अंतर्राष्ट्रीय स्थिति बहुत जटिल है। इसके अध्ययन हेतु बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता होती है।
- यह निश्चित है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु राज्य ही है, परन्तु यह भी काफी हद तक सही है कि इसके अंतर्गत राज्यों के अतिरिक्त विभिन्न संगठनों, समुदायों, संस्थाओं आदि का अध्ययन करना अति अनिवार्य हो गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन हेतु विभिन्न स्तरों एवं आयामों का अध्ययन आवश्यक है। इस विषय का अध्ययन अनुशासकीय आधार पर अधिक कुशलतापूर्वक हो सकता है।
- इसके अध्ययन हेतु नवीन दृष्टिकोणों की उत्पत्ति हो रही है। जैसे-जैसे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव आता है इसके अध्ययन एवं सामान्यीकरण हेतु नये उपागमों की आवश्यकता होती है। उदाहरणस्वरूप, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जहां यथार्थवाद, व्यवस्थावादी, क्रीड़ा, सौदेबाजी, तथा निर्णयपरक उपागमों की उत्त्पत्ति हुई, उसी प्रकार अब उत्तर शीतयुद्ध युग में उत्तर आधुनिकरण, विश्व व्यवस्था, क्रिटिकल सिद्धान्त आदि की उत्पत्ति हुई। भावी विश्व में भी वैश्वीकरण वइससे जुड़े मुद्दों पर नये उपागमों के कार्यरत होने की व्यापक सम्भावनाएँ हैं।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप परिवर्तनशील है। जब-जब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के परिवेश, कारकों व घटनाक्रम में परिवर्तन आयेगा, इसके अध्ययन करने के तरीकों व दृष्टिकोणों में भी परिवर्तन अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, यह परिवर्तन स्थाई न होकर निरंतर है। इसके साथ-साथ विभिन्न कारकों, स्तरों, आयामों आदि के कारण यह बहुत जटिल है अत: इसके सुचारू अध्ययन हेतु बहुत स्पष्ट, तर्कसंगत, व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
जैसा उपरोक्त परिभाषाओं एवं स्वरूप से ज्ञात है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का विषय क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा है। आज इसका विषय क्षेत्र काफी व्यापक हो गया है जिसके अंतर्गत इन बातों का अध्ययन किया जाता है
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विषय में विभिन्न बदलाव के बाद भी आज भी इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु राज्य ही है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति राज्यों के मध्य अन्त: क्रियाओं पर ही आधारित होती है। प्रत्येक राज्यों को अपने राष्ट्र हितों की पूर्ति हेतु अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की सीमाओं में रह कर ही कार्य करने पड़ते हैं। परन्तु इन कार्यों के करने हेतु विभिन्न राज्यों में संघर्षात्मक व सहयोगात्मक दोनों ही प्रकार की प्रतिक्रियाएँ होती है। इन्हीं प्रतिक्रियाओं, इनसे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन ही अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन की प्रमुख सामग्री होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का दूसरा महत्वपूर्ण कारक शक्ति का अध्ययन है। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत कई दशकों तक विशेषकर शीतयुद्ध काल में, माना गया कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख उद्देश्य शक्ति संघर्षों का अध्ययन करना है। यथार्थवादी लेखक विशेषकर मारगेन्थाऊ तो इस निष्कर्ष को अति महत्वपूर्ण मानते हैं ”अंतर्राष्ट्रीय राजनीति केवल राज्यों के बीच शक्ति हेतु संघर्ष” है। वे ‘शक्ति’ को ही एक मात्र कारण मानते हैं जिस पर सम्पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय राजनीति अथवा परस्पर राज्यों के संबंधों की नींव टिकी है। परन्तु पूर्ण रूप से यह सत्य नहीं है। शायद इसीलिए हम देखते हैं कि शीतयुद्धोत्तर युग में शक्ति संघर्ष के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक आदि संबंध भी उतने ही महत्वपूर्ण बन गये हैं । हां इस तथ्य को भी पूर्ण रूप से नहीं नकार सकते कि शक्ति आज भी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण कारक है।
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का एक अन्य कारक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन भी है। आधुनिक युग राज्यों के बीच बहुपक्षीय संबंधों का युग है। राज्यों के इन बहुपक्षीय संबंधों के संचालन में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। ये अंतर्राष्ट्रीय संगठन राज्यों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, सैन्य, सांस्कृतिक आदि क्षे़त्रें में सहयोग के मार्ग प्रस्तुत करते हैं। वर्तमान संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र के अतिरिक्त विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठन जैसे विश्व बैंक, मुद्राकोष, विश्व व्यापार संगठन, नाटो, यूरोपीय संघ, नाटो, दक्षेस, आशियान, रेड क्रॉस, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को आदि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का प्रमुख हिस्सा बन गए हैं।
- युद्ध व शान्ति की गतिविधियों का अध्ययन भी आज अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गया है। यह सत्य है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति न तो पूर्ण रूप से सहयोग तथा न ही पूर्ण रूप से संघर्षों पर आधारित है। अत: मतभेद व सहमति अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के सहचर हैं। इन दोनों की उपस्थिति का अर्थ है यहां युद्ध व शान्ति दोनों की प्रक्रियाएँ विद्यमान हैं। विभिन्न मुद्दों पर आज भी राष्ट्रों के मध्य युद्ध के विकल्प को नहीं त्यागा है। शीतयुद्ध के साथ-साथ राज्यों के बीच प्रत्यक्ष युद्ध आज भी हो रहे हैं। बल्कि वर्तमान विज्ञान के विकास व हथियारों के अति आधुनिकतम रूप के कारण आजयुद्ध और भी भयानक हो गए हैं। युद्ध आज प्रारम्भ होने पर दो राष्ट्रों के लिए भी घातक नहीं, अपितु, सम्पूर्ण मानवता का विनाश भी कर सकते हैं। इसीलिए युद्धों को रोकने हेतु शान्ति प्रयासों पर भी अत्यधिक बल दिया जाता है। इसीलिए इन युद्ध व शान्ति के पहलुओं का अध्ययन करना ही अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख भाग बन गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से राज्य अपने राष्ट्रीय हितों का संवर्धन एवं अभिव्यक्ति करते हैं।यह प्रक्रिया केवल एक समय की न होकर निरन्तर चलती रहती है। इस प्रक्रिया का प्रकटीकरण राज्यों की विदेश नीतियों के माध्यम से होता है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में विदेशी नीतियों का आकलन एक अभिन्न अंग बन गया है। इसके अतिरिक्त, राज्यों की इन विदेश नीतियों के स्वरूप से ही अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप में भी बदलाव आताहै। इन्हीं के कारण विश्व में शांति व सहयोग अथवा युद्ध की परिस्थितियों को जन्म मिलता है। न केवल वर्तमान बल्कि भावी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप भी इन्हीं राज्यों के आपसी संबंधों की प्रगाढ़ता एवं तनाव पर निर्भर करता है विभिन्न विदेश नीतियों अध्ययन व आंकलन भी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का महत्वपूर्ण विषय क्षेत्र है।
- राष्ट्रों के मध्य सुचारू, सुसंगठित एवं सुस्पष्ट संबंधों के विकास हेतु कुछ नियमावली का होना अति आवश्यक होता है। राज्यों के परस्पर व्यवहार को नियमित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की आवश्यकता हेतु है। इसके अतिरिक्त,अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के सुचारू स्वरूप एवं भविष्य के दिशा निर्देश हेतु भी इनकी आवश्यकता होती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्धों को रोकने, शान्ति स्थापित करने, हथियारों की होड़ रोकने, संसाधनों का अत्याधिक दोहन न करने, भूमि, समुद्रव आन्तरिक को सुव्यवस्थित रखने आदि विभिन्न विषयों पर राज्यों की गतिविधियों को सुचारू करने हेतु भी अंतर्राष्ट्रीय विधि का होना आवश्यक है। अत: अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का समावेश भी आवश्यकहो गया है।
- राज्यों की गतिविधियों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मुद्दों का अध्ययन भी काफी महत्वपूर्ण रहा है। परन्तु शीतयुद्ध के संघर्षों के कारण 1945-91 तक राजनैतिक मुद्दे ज्यादा अग्रणीय रहे तथा आर्थिक मुद्दे अति महत्वपूर्ण हो गए है। तथा राजनैतिक मुद्दे गौण हो गए हैं। वर्तमान भूमण्डलीकरण के दौर में ज्यादातर राज्य आर्थिक सुधारों, उदारवाद, मुक्त व्यापार आदि के दौर से गुजर रहे है। ऐसी स्थिति में आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन अति महत्वपूर्ण हो गया है। आज संयुक्तराष्ट्र की राजनैतिक ईकाइयों की बजाय विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि अत्याधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। अब राजनैतिक विचारधाराओं के स्थान पर नए अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यस्था, उत्तर दक्षिण संवाद,विकासशील देशों में कर्ज की समस्या, व्यापार में भुगतान संतुलन, बाह्य पूंजीनिवेश, संयुक्त उद्यम, आर्थिक सहायता आदिविषय अत्याधिक महत्व के हो गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में इन आर्थिक संस्थाओं, संगठनों व कारकों का अध्ययन करना अनिवार्य हो गया हैं
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के वर्तमान स्वरूप से यह स्पष्ट है कि अब इस विषय के अंतर्गत राज्यों के अतिरिक्त गैर सरकारी संगठनों की भूमिकाएं भी महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। दूसरी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के बढ़ते विषय क्षेत्र के साथ-साथ इसमें कार्यरत संस्थाओं एवं संगठनों का विकास भी हो रहा है। तीसरे, अब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण मुद्दे भी आ रहे हैं, जो मानवता हेतु ध्यानाकर्षण योग्य बन गए हैं। इन सभी कारणों से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययनका दायरा भी विकसित होता जा रहा है। आज इसमें राजनैतिक ही नहीं बल्कि गैर-राजनीतिक विषय जैसे पर्यावरण,नारीवाद, मानवाधिकार, ओजोन परत क्षीण होना, मादक द्रवों की तस्करी, गैर कानूनी व्यापार, शरणार्थियों व विस्थापितों की समस्याएँ आदि भी महत्वपूर्ण हिस्सा बनते जा रहे हैं। इसके साथ-साथ गैर-सरकारी संस्थानों (एन|जी|ओ|) की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। विभिन्न स्तरों पर राज्यों के विभिन्न मुद्दों से जुड़े कई स्थानिय या क्षेत्रीय संगठन भी आज अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के दायरे में मात्र परंपरागत विषय क्षेत्र तक सीमित न रहकर समसामयिक विषयों को भी सम्मिलित कर लिया है। इसीलिए इन सभी समस्याओं, संगठनों, पहलुओं आदि का अध्ययन भी आज अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का विषय क्षेत्र आज बहुत व्यापक व जटिल होने के साथ-साथ विकास की ओर अग्रसर है।इसके अंतर्गत विभिन्न परम्परागत कारकों के साथ-साथ गैर-परम्परागत कारकों का अध्ययन भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
सारांश
प्रस्तुत इकाई के अंतर्गत आप लोगों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अर्थ, प्रकृति एवं एक विषय-अनुशासन के रूप में इसके विकास का अध्ययन किया। प्रस्तावना से आपने जाना कि यह विषय किस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र-राज्य से संबन्धित है और सम्पूर्ण अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों से एवं को प्रभावित करता है तथा प्रभावित होता है।
अर्थ शीर्षक से यह स्पष्टतया आपने जाना, कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति विषय से हम मूलतः हम क्या समझते हैं। विभिन्न विद्वानो द्वारा दी गई अलग अलग परिभाषाएँ विषय की वास्तविक सीमाओं एवं उनका विस्तार को समझने में हमारी मदद करती हैं। परिभाषाओं से हमें विषय का मानद परिचय एवं उसका स्वीकृत स्वरूप समझने में सहायता मिलती है।
स्वरूप शीर्षक के अंतर्गत हमने इस विषय की मुख्य उद्देश्य की चर्चा की। हमने जाना कि इस विषय-विशेष से विद्वानो की प्रमुख अपेक्षा क्या है तथा इस विषय-विशेष के अध्ययन के पश्चात हमारे लिए यह किसप्रकार उपयोगी हो सकता है।