UNIT 7
गुट निरपेक्ष आंदोलन
7.1. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन
गुट निरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रों की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। इस संस्था में सम्मिलित राष्ट्रों का यह उद्देश्य है कि वे किसी भी पावर ब्लॉक के संग या विरोध में नहीं रहेंगे। यह आंदोलन विकसित देशों के हितों की तुलना में तृतीय विश्व के देशों की सामूहिक राजनीतिक और आर्थिक चिन्ताओं की अभिव्यक्ति के लिये एक मंच का कार्य करता है। गुट निरपेक्ष आन्दोलन भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासर एवं युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रौज़ टीटो द्वारा शुरू किया गया था। इसकी स्थापना अप्रैल, 1961 में हुई थी।
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का विकास 20वीं सदी के मध्य में छोटे राज्यों, विशेषकर नये स्वतंत्र राज्यों, के व्यक्तिगत प्रयास से हुआ। ये राज्य अपनी स्वतंत्रता को पूर्ण बनाये रखने के लिये किसी भी महाशक्ति में सम्मिलित नहीं होना चाहते थे। महाशक्ति की अवधारणा तथा नव-साम्राज्यवाद के वर्चस्व के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा खोलने और द्वितीय विश्वयुद्ध (1945) के बाद शीतयुद्ध क्षेत्रों के इर्द-गिर्द विकसित प्रतियोगी समूहों की व्यवस्था को अस्वीकार करने के लिये 1950 के दशक में नये देशों के व्यक्तिगत प्रयासों को समन्वित करने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इस उद्देश्य से 1955 में बांडुग (इंडोनेशिया) में अफ्रीकी-एशियाई सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें छह अफ्रीकी देशों सहित 29 देशों ने भाग लिया। यह सम्मेलन बहुत सफल साबित नहीं हुआ, क्योंकि अनेक देश अपनी विदेश नीतियों की साम्राज्यवाद-विरोधी बैनर तले संचालित करने के लिये तैयार नहीं थे। लेकिन इसने नये स्वतंत्र राज्यों के समक्ष उपस्थित राजनीतिक और आर्थिक असुरक्षा के भय को उजागर किया।
1950 के दशक के अंत में युगोस्लाविया ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गुट-निरपेक्ष राजनीतिक पहचान की स्थापना में रुचि प्रदर्शित की। ये प्रयास 1961 में बेलग्रेड (युगोस्लाविया) में 25 गुट-निरपेक्ष देशों के राज्याध्यक्षों के प्रथम सम्मेलन होने तक जारी रहे। यह सम्मेलन युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रौज़ टीटो की पहल पर आयोजित हुआ, जिन्होंने शस्त्रों की बढ़ती होड़ से तत्कालीन सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य युद्ध छिड़ सकने की आशंका व्यक्त की थी। बेलग्रेड सम्मेलन में भाग लेने वाले अधिकतर देश एशिया और अफ़्रीका महाद्वीपों के थे। सम्मेलन आयोजित करने में सक्रिय अन्य नेताओं में मिस्र के गमाल अब्दुल नसीर, भारत के जवाहरलाल नेहरू और इण्डोनेशिया के सुकर्णो प्रमुख थे।
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का दूसरा सम्मेलन काहिरा (मिस्र) में 1964 में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में पश्चिमी उपनिवेशवाद और विदेशी सैनिक प्रतिष्ठानों के अवधारण की भर्त्सना की गई। लेकिन, 1960 के दशक की शेष अवधि में आन्दोलन ने एक अस्थायी और आकस्मिक संगठन का रूप ले लिया। गुट-निरपेक्ष देशों के कार्यों को सही दिशा में ले जाने के लिये कोई संस्थागत संरचना मौजूद नहीं थी , तृतीय सम्मेलन 1970 में लुसाका में हुआ, जिसमें नियमित रूप से गुट-निरपेक्ष राज्यों का सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया। 1973 में अल्जीयर्स में आयोजित चतुर्थ सम्मेलन में दो सम्मेलनों के बीच में गुट-निरपेक्ष राज्यों की सभी गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने के लिये समन्वक ब्यूरो का औपचारिक रूप से गठन किया गया।
बेलग्रेड शिखर सम्मेलन, 1989 द्वारा घोषित गुट निरपेक्ष आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्य हैं:
- वर्चस्व की भावना पर आधारित पुरानी विश्व-व्यवस्था के स्थान पर स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय और सर्व-कल्याण के सिद्धान्तों पर आधारित नई विश्व-व्यवस्था की स्थापना करना।
- शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से शांति, निरस्त्रीकरण और विवाद समाधान के प्रयासों को जारी रखना।
- विश्व की आर्थिक समस्याओं, विशेषकर असंतुलित आर्थिक विकास, का प्रभावशाली और स्वीकार्य समाधान ढूंढना।
- औपनिवेशिक या विदेशी वर्चस्व तथा विदेशी अधिग्रहण के अधीन रहने वाले सभी लोगों के लिये आत्मनिर्णय के अधिकार और स्वतंत्रता का समर्थन करना।
- स्थायी और पर्यावरण की दृष्टि से ठोस विकास सुनिश्चित करना।
- मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रोत्साहन देना।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका और प्रभाव में मजबूती लाने के लिये सहयोग देना।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अपने 50 वर्षों से अधिक के कार्यकाल में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। इसकी महत्वपूर्ण उपलब्धि उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद की समाप्ति है, जिसके परिणामस्वरूप एशिया व अफ़्रीका के तमाम देश स्वतंत्रता प्राप्त कर सके। दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद की नीति की समाप्ति में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अतिरिक्त इसने नवोदित राष्ट्रों के मध्य एकता व सहयोग बढ़ाने, विश्व मंच पर उनके दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने, गुटों से दूर रहकर संघर्ष के क्षेत्र को कम करने तथा विश्व शांति को प्रोत्साहित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन एवं शीत युद्ध की समाप्ति के उपरांत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उपयुक्तता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे। परन्तु सच्चाई यह है कि गुटनिरपेक्ष का तात्पर्य विदेश नीति की स्वतंत्रता से है तथा इसका उद्देश्य संप्रभु राष्ट्रों की समानता व उनकी संप्रभुता व अखण्डता को सुरक्षित रखना है। इस संदर्भ में इसकी उपयुक्तता स्वयं सिद्ध हो जाती है।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समस्याओं व चुनौतियों-मानवाधिकार, विश्व व्यापार वार्ताएं, जलवायु परिवर्तन वार्ताएं अथवा संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधार-के संदर्भ में विकासशील देशों का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने हेतु एक प्रभावी मंच की आवश्यकता है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन इसी मंच के रूप में कार्य करता है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् शीतयुद्ध की समाप्ति हो गयी है तथा द्विध्रुवीय व्यवस्था भी समाप्त हो गई है, लेकिन ग़रीब व कमज़ोर राष्ट्रों की सुरक्षा व संप्रभुता की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। अमेरिका के नेतृत्व में एकध्रुवीय व्यवस्था के लक्षण पनप रहे हैं। पश्चिमी देशों का सैनिक गुट नाटो और अधिक मजबूत हुआ है। अफ़ग़ानिस्तान व इराक में अमेरिका की एकपक्षीय कार्यवाही भले ही आतंकवाद की दृष्टि से उचित हो, लेकिन राष्ट्रों की सुरक्षा व संप्रभुता की दृष्टि से इसे उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसी स्थितियों को रोकने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सामूहिक प्रयास सार्थक हो सकते हैं। गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अफ़्रीका, एशिया व लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों के मध्य सहयोग और एकता के मंच के रूप में कार्य किया है। आज भी इन देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सहयोग की आवश्यकता है। इस सहयोग को दक्षिण-दक्षिण सहयोग के नाम से जाना जाता है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन दक्षिण-दक्षिण सहयोग का एक मंच प्रस्तुत करता है।
सैद्धांतिक रूप से यह आंदोलन अप्रासंगिक प्रतीत होता है लेकिन निम्नलिखित मुद्दों के साथ इसकी प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है-
- जलवायु परिवर्तन को लेकर विभिन्न देशों के मध्य विवाद।
- विश्व में गुटबाज़ी की वजह से कई क्षेत्रों में संघर्ष जैसे- मध्य पूर्व खाड़ी देश अफगानिस्तान।
- शरणार्थी समस्या (रोहिंग्या और मध्य-पूर्व)।
- एशिया- प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन हेतु टकराव की स्थिति।
- आतंकवाद का मुद्दा।
- नव साम्राज्यवाद के तहत राजनीतिक कूटनीति।
- ऋण जाल (Debt Trap) की राजनीति।
- साइबर हमले और अंतरिक्ष के प्रयोग की अंधाधुंध प्रतिस्पर्द्धा।