UNIT 3
व्यावहारिक हिन्दी
किसी निबंध, अनुच्छेद, रपट, व्यक्तव्य, विवरण आदि के मूल भाव या सार को बचाकर उसे संक्षिप्त रूप में पेश करना संक्षेपण या सार-लेखन कहलाता है। संक्षेपण एक रचनात्मक कार्य है। इसमें किसी प्रसंग की मूल भावना को बचाते हुए, उसे संक्षिप्त रूप में लिखना होता है। संक्षेपण के द्वारा विद्यार्थियों की योग्यता एवं भाषा पर पकड़ की परीक्षा होती है।
संक्षेपण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए –
- संक्षेपण के लिए दिए गए अवतरण को ध्यान से दो-तीन बार पढ़ें।
- अवतरण की मुख्य बातों को रेखांकित कर लें।
- अवतरण की मूल भावना को पकड़ने की कोशिश करें।
- संक्षिप्त अंश सरल और स्पष्ट हो।
- मूल अवतरण के अनुसार ही संक्षेपण में विचारों का क्रम होना चाहिए।
- संक्षेपण में अपनी तरफ से कोई नया भाव या विचार न दें।
- व्याकरणिक दृष्टिकोण से शुद्धता का ध्यान रखें।
- संक्षेपण में छोटे-छोटे वाक्य लिखें।
- मूल अवतरण की शब्द संख्या गिन लें। इसमें कारक चिह्नों को उस शब्द के साथ ही गिनें। जैसे – राम ने रावण को मारा। तो इसमें ‘राम ने’ एक शब्द हुआ और इसी ‘रावण को’ भी एक शब्द ही गिनेंगे। यानी इस वाक्य में कुल 3 शब्द हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि ने, को, से, केलिए, में, पर, का, के, की को इसके पहले के शब्द के साथ ही गिनें।
- उत्तर पुस्तिका में मूल अवतरण के कुल शब्दों और फिर संक्षेपण के कुल शब्दों को अवश्य लिखें।
- संक्षिप्त अंश में शब्दों की संख्या मूल अवतरण के शब्दों की संख्या की एक तिहाई होनी चाहिए। यानी अगर मूल अवतरण में कुल 120 शब्द हैं तो संक्षेपण किए गए अंश में शब्दों की संख्या मूल अवतरण के शब्दों की संख्या की एक तिहाई होनी चाहिए। यानी अगर मूल अवतरण में कुल 120 शब्द हैं तो संक्षेपण किए गए अंश में शब्दों की संख्या 120/3= 40 के आसपास होनी चाहिए। तात्पर्य यह कि 35 से 45 शब्द भी हों तो आपके संक्षेपण की शब्द संख्या उचित है। संक्षिप्त किए गए अंश के कुल शब्दों को संक्षेपण के अंत में कोष्ठक में लिख दें।
- संक्षिप्त किए गए अंश का एक शीर्षक भी देना अनिवार्य है जो मूल अवतरण की भावना को स्पष्ट करता हो।
नोट - पिछले कुछ वर्षों से अविभाजित मगध विश्वविद्यालय और हाल ही में मगध विश्वविद्यालय से अलग होकर बने पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में संक्षेपण संबंधित कोई प्रश्न नहीं पूछा गया है। फिर भी पाठ्यक्रम में होने के कारण इससे संबंधित प्रश्न पूछा जा सकता है। सन् 2011 और सन् 2012 में संक्षेपण संबंधी प्रश्न पूछा गया था। उन अवतरणों का संक्षेपण करके यहाँ बताया जा रहा था ताकि विद्यार्थी यह समझ पाएँ कि उन्हें कैसे संक्षेपण करना है।
पल्लवन की प्रकृति संक्षेपण के विपरीत होती है। संक्षेपण में जहाँ अवतरण के भावों को संक्षिप्त करके लिखा जाता है, वहीं पल्लवन में किसी वाक्य, सूक्ति, मुहावरे, लोकोक्ति आदि में निहित भाव या विचार को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है।
पल्लवन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए –
- पल्लवन के लिए दिए गए वाक्य या सूक्ति को ध्यान से पढ़कर उसका मूल भाव समझने की कोशिश कीजिए।
- मूल विचार के साथ-साथ इस विचार के साथ दबे अन्य भावों को भी पकड़ने की का प्रयास करें।
- शुरुआती पंक्तियों में ही सूक्ति में दबे भावों के अर्थ को स्पष्ट कर दें।
- पल्लवन के लिए दिए गए सूक्ति के भावों को व्यक्त करने के लिए कुछ उदाहरण भी दे सकते हैं।
- वाक्यों को यथासंभव स्पष्ट, सरल और छोटा रखें।
- अवतरण या सूक्ति के लेखक के भाव या विचार को ही विस्तारित करें।
- व्याकरण संबंधी अशुद्धियों से बचें।
- परीक्षा के दृष्टिकोण से यह ध्यान रखें कि पल्लवन के लिए कोई शब्द सीमा निर्धारित की गई है या नहीं। अगर शब्द सीमा निर्धारित नहीं है तो 250 से 300 शब्द काफी हैं। शब्द सीमा के साथ-साथ समय की पाबंदी भी आवश्यक है। उतने ही शब्दों में पल्लवन करें जितने में दिए गए अवतरण का भाव स्पष्ट हो जाए।
आशय-लेखन भी पल्लवन की ही तरह है। इसमें दिए गए गद्यांश या पद्यांश का आशय यानी रचनाकार कहना क्या चाह रहा है, यह स्पष्ट करना होता है। आशय का संबंध भाव, अर्थ एवं विचार से है।
(नोट- पल्लवन से करीबी संबंध होने के कारण अभी तक आशय-लेखन से कोई प्रश्न नहीं पूछा गया है।)
अपने मन की बात किसी को लिखकर कहने की कला का नाम पत्र-लेखन है। पत्र-लेखन में आप किसी से अपने की भावना व्यक्त करते हैं। पत्र के द्वारा आप अपने से बड़े संबंधियों या अधिकारियों के समक्ष कुछ माँग भी रखते हैं। पत्र-लेखन में अपनी समस्या को सही तरह से पेश किया जाना चाहिए ताकि समस्या की गंभीरता संबंधित परिजन या अधिकारी को समझ में आ जाए। पत्र मुख्यतः तीन तरह के होते हैं – सामाजिक पत्र, व्यापारिक पत्र एवं सरकारी पत्र।
परिजनों जैसे- माता, पिता, दादा, दादी, भाई, बहन, मित्र आदि को लिखा जाने वाला पत्र सामाजिक पत्र कहा जाता है। अगर आप अपने से बड़ों को पत्र लिख रहे हैं तो उन्हें पूज्य/पूज्या या पूज्यवर कहकर संबोधित करना चाहिए, जैसे – पूज्य पिताजी, पूज्या माताजी आदि। ऐसे पत्रों के अंत में दाईं तरफ आपका आज्ञाकारी या आज्ञाकारिणी लिखना चाहिए, जैसै – आपका आज्ञाकारी पुत्र, आपकी आज्ञाकारिणी पुत्री आदि। पत्र के ऊपर दाईं ओर अपना पता और तिथि जरूर लिखें।
एक नमूना देखें –
लोहानीपुर, पटना
30 मार्च, 2020
पूज्य पिताजी,
सादर प्रणाम!
(बीच में अपना हालचाल लिखें। परीक्षा में पूछे गए प्रश्न में जिस बारे में लिखने को कहा गया है वह लिखें।)
आपका आज्ञाकारी पुत्र
(जिन्हें पत्र भेजा जा रहा है उनका नाम और पता) चंदन कुमार
सरकारी या किसी कार्यालय या प्राचार्य, किसी अखबार के संपादक या किसी अधिकारी को लिखे जाने वाले पत्र की शैली थोड़ी भिन्न होती है।
इसे इस प्रकार लिखा जाता है-
सेवा में,
प्राचार्य
किसान कॉलेज, बिहारशरीफ (नालंदा)
विषय – छात्रवृत्ति प्रदान करने के संदर्भ में
महोदय,
सविनय निवेदन है कि....(इसके बाद अपनी समस्या को बताकर छात्रवृत्ति की माँग करें)
अतः श्रीमान् से अनुरोध है कि मुझे यथाशीघ्र छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा जाए।
आपका विश्वासी छात्र/ छात्रा
प्रियदर्शी कुमार
स्नातक द्वितीय वर्ष, इतिहास विभाग
वाक्य भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है। वाक्य लिखते और बोलते समय कई बार गलतियाँ हो जाती हैं। ये गलतियाँ वचन, लिंग, कारक-चिह्न, समास, विशेषण आदि के उचित स्थान पर प्रयोग न करने के कारण हो जाती हैं। व्याकरण के दृष्टिकोण से वाक्य का शुद्ध होना जरूरी है। इसके लिए व्याकरण के सामान्य नियमों की जानकारी आवश्यक है।
वाक्य-संशोधन करते समय निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है –
- वाक्य में कम से कम परिवर्तन हो।
- शब्दों का प्रयोग उनकी प्रकृति के अनुसार हो।
- वाक्य में पदों का क्रम नियमानुसार हो।
- लिंग, वचन, कारक, पुरुष आदि का सही प्रयोग हो।
- एक ही अर्थ वाले दो अलग-अलग शब्दों का प्रयोग न हो।
हिंदी भाषा में कुछ ऐसे शब्द-युग्म हैं जो उच्चारण की दृष्टि से भिन्न होते हुए, एक समान होने का भ्रम पैदा करते हैं। इनमें उच्चारण की मात्रा या वर्ण में थोड़ी भिन्नता होती है, परंतु इनके अर्थ अलग-अलग होते हैं। ऐसे शब्दों को शब्द-युग्म या श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहते हैं। ऐसे शब्दों के प्रयोग में सावधानी बरतनी चाहिए। अतः ऐसे शब्द-युग्मों एवं इनके अर्थों की जानकारी व्यावहारिक हिंदी का अनिवार्य पक्ष है।
सहायक ग्रंथ
- आधुनिक हिन्दी व्याकरण और रचना, डॉ. वासुदेवनंदन प्रसाद, भारती भवन, पटना
- संपूर्ण हिन्दी व्याकरण और रचना, डॉ. अरविंद कुमार, लूसेंट पब्लिकेशन, पटना