UNIT 1
प्रकृति एवं क्षेत्र
प्रशासन को सामान्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है, लोक और निजी प्रशासन। सरकारी गतिविधि के एक पहलू के रूप में यह राजनीतिक प्रणाली के उद्भव के बाद से अस्तित्व में है। जबकि लोक प्रशासन सरकार द्वारा की गई गतिविधियों से संबंधित है, निजी प्रशासन निजी व्यावसायिक उद्यमों के प्रबंधन को संदर्भित करता है। प्रशासन शब्द लैटिन शब्द ‘व्यवस्थापन’ से लिया गया है, जिसका अर्थ मामलों को प्रबंधित करने के लिए लोगों की देखभाल करना करना है। प्रशासन को "समूह गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें वांछित लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से सहयोग और समन्वय शामिल है"।मोटे तौर पर, प्रशासन शब्द का उस संदर्भ के आधार पर कम से कम चार अलग-अलग अर्थों के लिए प्रकट होता है जिसमें इसका उपयोग किया जाता है:
(1) एक अनुशासन के रूप में: कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया और पढ़ाया जाता है।
(2) एक व्यवसाय के रूप में: कार्य / व्यापार या पेशे / व्यवसाय का प्रकार, विशेष रूप से एक जिसमें अग्रिम शिक्षा की एक शाखा में ज्ञान और प्रशिक्षण शामिल है।
(3) एक प्रक्रिया के रूप में: कुछ सेवाओं या वस्तुओं के उत्पादन के लिए लोक नीति या नीतियों को लागू करने के लिए की गई कुल गतिविधियों का योग।
(4)' शब्द' कार्यकारी या सरकार के लिए एक पर्याय के रूप में: मामलों के सर्वोच्च प्रभार में व्यक्तियों के ऐसे अन्य निकाय, उदाहरण के लिए, मनमोहन सिंह प्रशासन, बुश प्रशासन, आदि।
इससे पहले कि हम लोक प्रशासन के अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, दायरे और महत्व के बारे में चर्चा करें, हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि प्रशासन, संगठन और प्रबंधन क्या है। जैसा कि इन शब्दों को अक्सर परस्पर विनिमय और पर्यायवाची रूप से इस्तेमाल किया जाता है, इन तीन शब्दों के बीच के अंतर और भेद को जानना उचित है। विलियम शुल्ज़ के अनुसार, प्रशासन वह बल है, जो उस वस्तु को देता है जिसके लिए एक संगठन और उसके प्रबंधन को प्रयास करना होता है और जिस व्यापक नीतियों के तहत उन्हें काम करना होता है।
एक संगठन आवश्यक सामग्री, उपकरण, यंत्र और मनुष्यों के काम करने की जगह का एक संयोजन है और कुछ वांछित वस्तु को पूरा करने के लिए व्यवस्थित और प्रभावी सह-संबंध में एक साथ लाया गया मूल्यांकन हैं।
प्रबंधन वह है जो पूर्व निर्धारित वस्तु की सिद्धि के लिए मार्गदर्शकों का नेतृत्व करता है और एक संगठन का निर्देशन करता है।
उपरोक्त को सरल शब्दों में कहें, तो प्रशासन लक्ष्य निर्धारित करता है, प्रबंधन उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है और संगठन प्रशासन द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रबंधन की मशीन है।
कुछ विद्वानों का प्रशासन और प्रबंधन के बारे में एक अलग दृष्टिकोण है। पीटर ड्रकर के अनुसार प्रबंधन व्यावसायिक गतिविधि से जुड़ा है, जिसे आर्थिक प्रदर्शन दिखाना पड़ता है, जबकि प्रशासन सरकार की गतिविधियों जैसे गैर व्यावसायिक गतिविधियों से जुड़ा होता है।
अन्य दृष्टिकोण यह है कि प्रशासन कुछ प्रक्रियाओं, नियमों और विनियमों के अनुसार ज्ञात सेटिंग्स में नियमित चीजें करने से जुड़ा हुआ है। प्रबंधन जोखिम लेने, गतिशील, रचनात्मक और अभिनव कार्यों जैसे प्रदर्शन कार्यों से जुड़ा हुआ है।
लोक प्रशासन के कुछ विद्वान पहले दृष्टिकोण के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं, अर्थात्, प्रशासन एक निर्धारक कार्य है। दूसरी ओर प्रबंधन, एक कार्यकारी कार्य है जो मुख्य रूप से प्रशासन द्वारा निर्धारित व्यापक नीतियों को पूरा करने से संबंधित है। संगठन वह मशीनरी है जिसके माध्यम से प्रशासन और प्रबंधन के बीच समन्वय स्थापित होता है।
एल डी व्हाइट ने अनुभव किया कि यद्यपि लोक प्रशासन रूप और वस्तुओं में भिन्न होता है, और यद्यपि सार्वजनिक और निजी मामलों का प्रशासन कई बिंदुओं पर भिन्न होता है, एक अंतर्निहित समानता है, ऐसी सामान्य अवधारणा का एक अभिन्न पहलू के रूप में, लोक प्रशासन उस प्रकार के प्रशासन से संबंधित हो सकता है, जो एक विशिष्ट पारिस्थितिक सेटिंग के भीतर संचालित होता है। यह राजनीतिक कार्यकारी द्वारा किए गए नीतिगत निर्णयों को पूरा करने का एक साधन है। इसके साथ-साथ लोक प्रशासन जनता का ’पहलू’ है, जो एक विशेष चरित्र को प्रदर्शित करता है और उस पर ध्यान केंद्रित करता है। तो, लोक प्रशासन सरकारी प्रशासन, कार्रवाई में सरकार या सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक-प्रशासनिक संगम है, विशेष रूप से सार्वजनिक नौकरशाही पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका अपनी सरकार के माध्यम से एक राज्य की नीति के आवेदन के रूप में लोक प्रशासन को परिभाषित करती है। इसलिए, लोक प्रशासन, प्रशासन के उस हिस्से को संदर्भित करता है, जो सरकार की प्रशासनिक गतिविधियों से संबंधित
लोक प्रशासन :- लोक प्रशासन के लिए हमें इसका अर्थ और परिभाषा समझना जरूरी है-
लोक प्रशासन का अर्थ :- लोक प्रशासन में लोक शब्द प्रशासन के साथ जुड़कर उसे लोक बना देता है| शाब्दिक अर्थ में ‘लोक’ जनता का पर्याय है | किन्तु प्रशासन के साथ संयुक्त रूप में यह उन कायदे-कानूनों , क्रियाओं , गतिविधियों , कार्यक्रमों का अर्थ ग्रहण करता है जो जन साधरण के लिए निर्मित और संपन्न किये जाते है |अतः लोक प्रशासन में लोक “सरकार”के अर्थ में निहित होती है |
लोक प्रशासन के अर्थ में दो आयाम सामने आते है –
- ऐसा प्रशासन जो सरकारी क्षेत्र तक सीमित है या
- लोक उद्देश्य को केंद्र में रखकर संचालित की जाने वाली प्रत्येक क्रिया लोक प्रशासन के अंतर्गत आती है |
लोक प्रशासन की परिभाषाएं :- लोक प्रशासन को उसके संकुचित , व्यापक , परिवर्तित आदि अर्थों में पारिभाषित करने की कोशिश विद्द्वानो ने की है , जिससे लोक प्रशासन की अनेक परिभाषाएं सामने आती है |
एल.डी. व्हाइट- ”लोक प्रशासन में वे सब कार्य आते जिनका उद्देश्य लोक नीति को लागू करना है ।”
पुन: एल.डी. व्हाइट- ”लोक प्रशासन में वे सब क्रियाएं आती हैं जिनका उद्देश्य अधिकृत अधिकारियों द्वारा घोषित लोकनीतियों को क्रियान्वित करना है ।”
वुड्रो विल्सन- ”विधि को क्रमबद्ध और विस्तृत रूप में लागू करना ही लोक प्रशासन है ।”
पुन: वुडरो विल्सन, ”विधि के क्रियान्वयन की प्रत्येक क्रिया प्रशासनिक क्रिया है । जिस प्रकार राजनीति का संबंध नीति निर्माण से है, उसी प्रकार प्रशासन का संबंध नीति क्रियान्वयन से है ।”
गुडनाऊ- ”प्रशासन” राज्य की इच्छा के क्रियान्वयन का प्रतीक है ।”
डिमॉक- ”कानून को कार्यरूप देना ही लोक प्रशासन है।”
पुन: डिमॉक- ”सक्षम अधिकारियों द्वारा घोषित लोक नीति को पूरा करना या लागू करना लोक प्रशासन है ।”
मरसन- ”जिस प्रकार राजनीति शास्त्र नीति निर्माण में जन सहभागिता को अधिकाधिक सुनिश्चित करने के श्रेष्ठ तरीके खोजता है, उसी प्रकार लोक प्रशासन उन नीतियों के क्रियान्वयन के श्रेष्ठ तरीके खोजता है ।”
प्रकृति एवं क्षेत्र :- लोक प्रशासन की प्रकृति के विषय में दो तरह के दृष्टिकोण है | प्रथम ‘व्यापक विचार’ अथवा ‘एकीकृत विचार’ कहा जाता है और दूसरा संकुचित दृष्टिकोण जिसे ‘प्रबंधकीय विचार’ कहा जाता है |
लोक प्रशासन के विद्द्वानों ने लोक प्रशासन की प्रकृति को दो अलग – अलग उपागमों से अभिव्यक्त किया है – समग्र दृष्टिकोण और प्रबंधकीय दृष्टिकोण |
- समग्र दृष्टिकोण :- इस उपागम के अनुसार लोक प्रशासन उन सभी गतिविधियों का सामावेश करता है जो दिये गए लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए की जाती है | दुसरे शब्दों में लोक प्रशासन प्रबंधकीय तकनीकी ,लिपिकीय कामों का कुल योग है |
इस प्रकार इस उपागम के अनुसार प्रशासन ऊपर से नीचे तक सभी व्यक्तियों की गतिविधि से बनता है | एल.डी.व्हाइट और डिमोक इसी उपागम को मानते है | जिसके अनुसार प्रशासन सम्बन्धित अभिकरण की विषय वस्तु पर निर्भर करता है यानि यह एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता है |
2. प्रबंधकीय दृष्टिकोण :- इस परिप्रेक्ष्य में, लोक प्रशासन में केवल प्रबंधक गतिविधियाँ शामिल होती है | तकनीकी , लिपिकीय और दस्ती गतिविधि शामिल नहीं होती जो स्वभाव से गैर – प्रबंधकीय गतिविधियाँ है |
अत: इस उपागम के अनुसार, प्रशासन सिर्फ ऊपर के व्यक्तियों की गतिविधियों से बनता है । साइमन, स्मिथबर्ग, थॉम्पसन और लूथर गुलिक जैसे विचारक इस उपागम को अपनाते हैं, जिसके अनुसार प्रशासन सभी क्षेत्रों में समान होता है क्योंकि हर क्षेत्र की गतिविधियों में प्रबंधकीय तकनीकें समान होती हैं । लूथर गुलिक कहते हैं- ”प्रशासन का सरोकार एक निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के साथ कामों को पूरा करने से है ।”
प्रशासन शब्द का सही अर्थ उस सन्दर्भ पर निर्भर करता है जिसमे इसे लागू किया जाता है | भारत जैसे विकासशील देशों में लोक प्रशासन की अध्ययन समग्र उपागम से किया जाना चाहिए क्योंकि लिपिक स्तर पर पैदा होने वाले कार्य का 90% शीर्ष स्तर पर सही अनुमोदित कर दिया जाता है । इसी कारण भारतीय प्रशासन का केन्द्र बिन्दु बाबू या क्लर्क को माना जाता है ।
लोक प्रशासन के अध्ययन के उपागम :- लोक प्रशासन के उपागम की व्याख्या इस प्रकार है –
1. दार्शनिक उपागम – यह सबसे व्यापक और पुराना दृष्टिकोण है। यह प्रशासनिक गतिविधियों के सभी पहलुओं पर विचार करता है। यह मानक दृष्टिकोण पर आधारित है और क्या होना चाहिए इस पर केंद्रित करता है। इसका उद्देश्य प्रशासनिक गतिविधियों के आधारभूत आदर्शों अर्थात् सिद्धांतों को प्रतिपादित करना है। प्लेटो का रिपब्लिक, जॉन लॉक का लेवायाथन, महाभारत का शांति पर्व, स्वामी विवेकानंद आदि इस दृष्टिकोण की वकालत करते हैं।
2. कानूनी उपागम – यह दृष्टिकोण यूरोप के फ्रांस, बेल्जियम और जर्मनी जैसे महाद्वीपीय देशों में सबसे अधिक लोकप्रिय रहा है। ब्रिटेन और अमेरिका में भी इसके समर्थक हैं। यह लोक प्रशासन का अध्ययन कानून के एक हिस्से के रूप में करता है, और संवैधानिक/कानूनी ढांचे, संगठन, शक्तियों, कार्यों और लोक अधिकारियों की सीमाओं पर बल देता है। इसीलिए इसे न्यायिक या न्यायवादी दृष्टिकोण के रूप में भी जाना जाता है।
3. ऐतिहासिक उपागम – यह भूतकाल में हुए ऐतिहासिक परिवर्तनों और वर्तमान पर पड़ने वाले इसके प्रभावों के जरिए लोक प्रशासन का अध्ययन करता है। यह प्रशासनिक एजेंसियों से संबंधित सूचना को कालानुक्रमण में संगठित और व्याख्या करता है। एल.डी. व्हाइट ने अमेरिकी संघीय प्रशासन का इसके निर्णयात्मक काल में अपने चार शानदार ऐतिहासिक अध्ययनों के जरिए वर्णन किया है, जिसका नाम है, दि फेड्रलिस्ट्स(1948), दि जैफर्सनियंस(1951), दि जैक्सनियंस और दि रिपब्लिकन एरा। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मुगल प्रशासन और ब्रिटिश प्रशासन के विभिन्न अध्ययन भारत की पुरानी प्रशासनिक व्यवस्थाओं की एक झलक देते हैं।
4. केस पद्धति उपागम – इसका नाता उन खास घटनाओं की विस्तृत वर्णन से हैं जो एक प्रशासन के निर्णय निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं या उस ओर ले जाते हैं। यह प्रशासकीय वास्तविकताओं को पुनः निर्मित करने का प्रयास करता है और लोक प्रशासन के विद्यार्थियों को उनसे परिचित कराता है। यह 1930 के दशक में अमेरिका में लोकप्रिय हुआ। 1952 में ‘पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन’ के नाम से 20 केस अध्ययन हेरोल्ड स्टीन के संपादन में प्रकाशित हुए। भारत में भी भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (दिल्ली)और राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (मसूरी) ने कई केस अध्ययन प्रकाशित किए हैं।
लोक प्रशासन का क्षेत्र :- लोक प्रशासन के उद्देश्यों को लेकर दो उपागम है –
- POSDCORB उपागम
- विषय वस्तु उपागम
POSDCORB उपागम :- लोक प्रशासन के क्षेत्र से संबंधित इस उपागम की वकालत लूथर गुलिक ने की थी । वे मानते थे कि प्रशासन सात तत्वों से बनता है । उन्होंने इन तत्वों को इस प्रथमाक्षरी नाम ‘POSDCORB’ में जोड़ा है, जिसका प्रत्येक वर्ण प्रशासन के एक तत्व को दर्शाता है ।
लूथर गुलिक प्रशासन के इन सात तत्वों (या मुख्य कार्यपालिका के कार्यों) की निम्न रूप से व्याख्या करते हैं:
P- Planning (योजना) - अर्थात् एक व्यापक ढाँचे में आवश्यक कामों को करना और उपक्रम के तय लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन कामों को करने की पद्धति तैयार करना ।
O- Organizing (संगठित करना) - अर्थात प्राधिकार के औपचारिक ढाँचे की स्थापना करना, जिसके द्वारा कार्य उपविभाजनों को तय लक्ष्य के लिए व्यवस्थित, परिभाषित और समन्वित किया जाता है ।
S- Staffing (कर्मचारियों को रखना) - अर्थात भर्ती करने, कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और काम करने की बेहतर स्थितियाँ बनाए रखने का संपूर्ण कार्मिक कार्य ।
D- Directing (निर्देशित करना) - अर्थात् निर्णय लेने और उन निर्णयों को विशिष्ट एवं सामान्य आदेशों और निर्देशों में समायोजित करने का निरंतर कार्य और उपक्रम के नेता की भूमिका का निर्वाह करना ।
CO-Coordinating (तालमेल करना) - यह कार्य के विभिन्न अंगों का आपस में संबंध स्थापित करने का बेहद अहम काम है ।
R- Reporting (सूचना देना) - अर्थात् उन लोगों को सूचित रखना जिनके प्रति कार्यपालिका चल रहे कार्यों को लेकर जवाबदेह है । इसमें रिकॉर्डों, शोध और जाँच द्वारा स्वयं और अपने अंतर्गत काम करने वालों को सूचित रखना शामिल है ।
B- Budgeting (बजट बनाना) - वह सब कुछ जो वित्तीय नियोजन, हिसाब रखने और नियंत्रण रखने के रूप में बजट बनाने के साथ होता है ।
विषय वस्तु उपागम :- हालांकि POSDCORB उपागम अपने वर्तमान रूप में काफी लंबे समय तक स्वीकार्य बना रहा, लेकिन फिर समय बीतने के साथ इस उपागम के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई ।
- फिर इस बात का ज्ञान हुआ कि POSDCORB गतिविधियाँ या तकनीकें संपूर्ण लोक प्रशासन तो दूर इसका कोई महत्त्वपूर्ण भाग भी नहीं हो सकतीं ।
- यह उपागम वकालत करता है कि प्रशासन की समस्याएँ सभी एजेंसियों में समान होती हैं चाहे उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की विशिष्ट प्रकृति कुछ भी हो ।
- इस तरह, यह इस तथ्य को अनदेखा करता है कि अलग-अलग एजेंसियों को अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।
- इसके अलावा, POSDCORB सिर्फ प्रशासन के उपकरणों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि वास्तविक प्रशासन एक अलग ही चीज है । प्रशासन का वास्तविक मर्म लोगों को दी जाने वाली विभिन्न सेवाओं से बनता है जैसे- रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा आदि ।
- इन सेवाओं की अपनी विशिष्टीकृत तकनीकें होती हैं जो सामान्य POSDCORB तकनीक में नहीं होतीं ।
- दूसरे शब्दों में, हर प्रशासनिक एजेंसी का, उसकी विषय वस्तु के कारण अपना एक ‘स्थानीय’ POSDCORB होता है । इसके अतिरिक्त, गुलिक की सामान्य POSDCORB तकनीकें भी प्रशासन की विषय वस्तु से प्रभावित होती हैं ।
- इस प्रकार POSDCORB उपागम ‘तकनीक निर्देशित’ है बजाय ‘विषय निर्देशित’ होने के । यह लोक प्रशासन के बुनियादी तत्व यानी ‘विषय वस्तु के ज्ञान’ की उपेक्षा करता है । इस तरह लोक प्रशासन के उद्देश्य के ‘विषय वस्तु उपागम’ का उदय हुआ|
- यह उपागम सेवाओं और प्रशासनिक एजेंसी के कार्यों पर जोर देता है । यह दलील देता है कि एक एजेंसी की सारभूत समस्याएँ उसकी विषय सामग्री पर निर्भर करती हैं (जैसे सेवाएँ और काम) जिससे उसका सरोकार होता है ।
इसलिए, लोक प्रशासन को महज तकनीकों का अध्ययन नहीं करना चाहिए बल्कि प्रशासन के सारभूत सरोकारों का अध्ययन भी करना चाहिए । लेकिन POSDCORB उपागम और विषय वस्तु उपागम एक-दूसरे का विरोध नहीं करते, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं । वे साथ मिलकर लोक प्रशासन के अध्ययन के उचित विस्तार क्षेत्र का निर्माण करते हैं ।