UNIT 3
विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका
विकासशील शब्दावली से आशय है, ”विकास की और अग्रसर” । यह सामान्यतया तृतीय विश्व के उन देशों के लिए प्रयुक्त होती है जो पराधीनता में अनेकों वर्षों तक जकड़े रहे और अपना स्वाभाविक विकास खो बैठे । औद्योगिक पिछड़ापन, आधारिक संरचना का अभाव तथा समाजिक सेवाओं की निम्न दशायें इनकी पहचान है ।
इन्हें जो प्रशासन विरासत में साम्राज्यवादियों से मिला, वह विकास कार्यों के स्थान पर मात्र नियामक कार्यों में ही प्रशिक्षित और अनुभवी था अत: स्वतंत्रता के बाद की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने में लड़खड़ा गया ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपनिवेशवाद के पतन से तृतीय विश्व में ऐसे अनेक राष्ट्र स्वतंत्र रूप से सामने आए जिनकी सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक स्थितियां कॉफी समानताएं रखती थी यद्यपि भिन्न-भिन्न देशों के अधीन रहने के कारण इनके राजनीतिक ढाँचों में अंतर रहा है तथा इतिहास, संस्कृति आदि के मामलों में भी कॉफी भिन्नताएं इनके मध्य पायी जाती है ।
इन राष्ट्रों में कोई भी राजनीतिक प्रणाली हो, राजनीतिक स्थिरता का अभाव बना हुआ है । कहीं लोकतंत्र शासन को अपनाया तो गया है लेकिन राजनीतिक दलों और नेताओं का लोकतांत्रिक तरीकों में कम विश्वास है । बहुधर्मी और बहुभाषी समाजों में राजनीतिक व्यवस्था और प्रशासन पर विभिन्न दबाव पड़ते है, सरकार को अपना बहुत सा समय इनसे उत्पन्न तनावों को नियंत्रित करने में खपाना पड़ता है ।
संक्षेप में इन देशों की विभिन्न विशेषताएं/लक्षण निम्नानुसार है:
1. राजनीतिक और विकासात्मक संरचना में अंतर के बावजूद सभी देशों के कुछ सामान्य लक्ष्य हैं जिन्हें प्राप्त करना है, जैसे आधारभूत संरचना का निर्माण,
सामाजिक सेवाओं का विस्तार, औद्योगिक और कृषि विकास ।
2. सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन, भारी आर्थिक विषमताएं, समाज का शोषणवादी चरित्र ।
3. राजनीतिक अस्थिरता ।
4. विभिन्न क्षेत्रों में अनेक विरोधाभासों का सह-अस्तित्व । रिग्स ने इन समाजों को ट्रांसीशिया (बाद में प्रिज्मेटिक) कहा जो कृषि से औद्योगिक अर्थव्यवस्था की तरफ बड़ रहे हैं ।
ईराशार कैन्सकी ने 5 प्रमुख लक्षण बताए:
1. राजनीतिक विशिष्ट वर्गों (सभी दलों) में विकास के मुद्दों पर आम एका होता है । ये सामान्य लक्ष्य होते हैं, कृषि और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि, जीवन स्तर उन्नत करना, विशेषकर पिछड़े तबकों को ऊपर उठाना तथा राष्ट्रीय एकीकरण इत्यादि ।
2. नेतृत्व के लिए लोक क्षेत्र का सहारा लिया जाता है, नौकरशाही पर निर्भरता अधिक रहती है, असफल लक्ष्यों की संख्या अधिक रहती है तथा नागरिक अशांति का बाहुल्य बना रहता है ।
3. आर्थिक नैराश्य के वातावरण में भाषायी, जातिय दंगे आदि होते रहते हैं ।
4. आधुनिक और परंपरागत अभिजन वर्गों के मध्य बड़ा अंतर मौजूद रहता है ।
5 भ्रष्टाचार, भाई-भतिजावाद, असंतुलित विकास, करिश्माई नेतृत्व तथा नौकरशाही की अधिक बड़ी भूमिका इसके अन्य लक्षण हैं ।
ऐसे समाजों में विद्यमान प्रशासन अनेक कमियों, समस्याओं से ग्रस्त है, यथा:
1. ऐसे समाजों में अधिकांश लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनायी गयी है, लेकिन प्रशासकगण अलोकतांत्रिक मनोवृत्ति से ग्रस्त हैं ।
2. जिस अनुपात में समाज की कक्षाएं बड़ रही है उस अनुपात में प्रशासनिक साधनों का विकास नहीं हो पा रहा है ।
3. नौकरशाही के आकार में अधिक वृद्धि हो गयी है, जबकि उसकी गुणवत्ता घटी हैं (पार्किसन लॉ इफेक्ट) ।
4. प्रशासकीय नैतिकता का अभाव सर्वत्र दृष्टिगत होता है, अर्थात जनता की अज्ञानता और अशिक्षा का फायदा उठाकर नीतियों-निर्णयों को इस तरह कार्यान्वित किया जाता है, जिनसे प्रशासन की स्वार्थ पूर्ति हो सके ।
5. जिसे नौकरशाही प्रवृत्ति कहा जाता है, वैसा उत्तरदायित्व विहिन प्रशासन विद्यमान है ।
6. ऐसा प्रशासनिक नेतृत्व विकसित नहीं हो पाया है जो राजनीतिक अस्थिरता के दौर में देश का नेतृत्व कर सके ।
7. प्रशासन में विशेषज्ञों के स्थान पर सामान्यज्ञों का बोलबाला है ।
8. विकास कार्यों के लिए आवश्यक निपुणता का प्रशासन में अभाव है । विशेषकर प्रबंधकीय क्षमता और तकनीकी योग्यता का अभाव है ।
9. प्रशासन विकास कार्यों के स्थान पर गैर उत्पादक और गैर विकासात्मक गतिविधियों में अधिक समय और धन खर्च करता है ।
10. प्रशासन का मॉडल स्वदेशी न होकर पश्चिमी देशों से उधार लिया गया है ।
11. रूप और वास्तविकता के बीच व्यापक विरोधाभास है, जिसे रिग्स ने ”रूपवाद” (Formalism) की संज्ञा दी ।
उक्त समस्याओं से ग्रसित विकासशील समाजों के प्रशासन के सामने दोहरी चुनौतियाँ हैं- एक तो उन्हें जनता की उठ रही मांगों को पूरा करना है, दूसरे अपनी औपनिवेशिक प्रवृत्तियों को त्यागकर उक्त उद्देश्य को पूरा करने योग्य स्वयं को बनाना है ।
- उसे कर्त्तव्यपरायण, कार्यकुशल और सक्रिय बनाने के अलावा संवेदनशील, उत्तरदायी तथा पेशेवर बनाने की भी जरूरत है । वह जनता को स्वामी मानकर सेवक के रूप में उसकी सेवा करें । ऐसा तभी संभव है जब वह अपने को जनता से, उनकी समस्याओं से भावनात्मक रूप से जोड़ ले।
- इन समाजों की सरकारों ने जो लोकतांत्रिक, समाजवादी लक्ष्य निर्धारित किये है उनके प्रति पूर्ण निष्ठा प्रशासन को रखना चाहिए ।
- नियोजन पद्धति के माध्यम से संतुलित विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति भी प्रशासन के रवैये पर निर्भर है, इस बात का अहसास उसे होना चाहिए ।
- त्वरित विकास हेतु नौकरशाही प्रवृत्ति वाली अड़ियल व्यवस्था त्यागकर कार्यकुशलता से पूर्ण निजी प्रबंध की प्रगतिशील कार्य पद्धतियों, खोजों आदि से लाभ उठाना होगा ।
- उसे यह स्वीकारना होगा कि विकसित देशों की सफलता में निजी क्षेत्र का योगदान अधिक रहा है, अत: वह अपने यहां इन क्षेत्रों के औद्योगिक, व्यवसायिक क्रियाकलापों में बाधक बनने के बजाय उन बाधाओं को दूर करें जो इनके विकास को अवरूद्ध किये हुए है । उसे निजी क्षेत्रों के साथ सहयोगात्मक और समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है ।
- इन देशों में प्रशासन में जनता की भागीदारी को बढ़ाना- राज्य के साथ प्रशासन का भी उत्तरदायित्व है ।
- प्रशासन को स्थानीय शासन संस्थाओं के साथ मित्रतापूर्ण बरताव करना चाहिए तथा अधिकारों के इन संस्थाओं की और हस्तांतरण को अपनी शक्तियों में कटौती के रूप में न देखकर राष्ट्र निर्माण में उनके अभिनवीकरण के रूप में लेना चाहिए ।
- उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी ऐसे समाजों में व्याप्त घोर असामनता के अभिशाप से लड़ने की है, वंचित तबकों के प्रति विशेष समर्थन व्यक्त करने की है तथा उन्हें समाज के शोषण चक्र से मुक्त कर खुली हवा में सांस लेने योग्य बनाने की है ।
- ऊंच-नीच, सामाजिक-आर्थिक विषमताओं की गहरी खाई को दूर करने का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व है । अर्थात विकासशील देशों में लोक प्रशासन की भूमिका गुणात्मक अधिक है ।
प्रश्न यह है कि इन मापकों को वर्तमान प्रशासन क्योंकर अपनाएगा ? जब तक प्रशासन की भर्ती व्यवस्था आरोपण से पूरी तरह मुक्त होकर उपलब्धि आधारित नहीं हो जाती, समाज में शिक्षा और जागरूकता अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच जाती और स्वयं राजनीतिक व्यवस्था अपनी इच्छाशक्ति में दृढ़ता और निष्पक्षता का समावेश नहीं करती हम मात्र प्रशासन से रूपान्तरण की अपेक्षा करके स्वयं के साथ धोखा ही करेंगे ।
विकास प्रशासन में प्रशासन के पारंपरिक उपागमों की तुलना में कई लाभदायक गुण हैं जैसे-
(1) विकास प्रशासन विकास की समस्याओं एवं इनके निदान के आवश्यक उपायों का व्यापक विश्लेषण करने के एक साधन की तरह कार्य करता है। इसके पूर्व विकास एवं कल्याण सरकारी कार्य-क्षेत्र में नहीं आते थे।
(2) विकास प्रशासन लोक प्रशासन के विकास में एक बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्य है। इसने लोक प्रशासन के क्षेत्र में लोकनीति, इसका कार्यान्वयन एवं मूल्योन्मुख लाकर लोक प्रशासन की सीमाओं को विस्तृत किया है।
(3) कार्यरत प्रशासकों और शिक्षाविदों के लिए इसका प्रत्यक्ष महत्त्व है। क्योंकि वे ही लोक विकास की समस्याओं एवं विकास प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न समस्याओं में प्रत्यक्ष रूप से उलझे हैं।
(4) विकास प्रशासन ने पश्चिमी मॉडल की अपर्याप्तताओं की ओर विद्वानों का ध्यान सफलतापूर्वक आकृष्ट किया है और विकास कार्यों के संदर्भ में उनकी अपर्याप्तता साबित की है। अतः इसने तुलनात्मक लोक प्रशासन के तुलनात्मक अध्ययनों के साथ-साथ लोक प्रशासन के सिद्धांत और व्यवहार की सार्विकता पर विचार खंडित किया है।
(5) विकास प्रशासन प्रशासनिक तंत्र पर संस्कृति के प्रभाव को भी मानता हैं और इसलिए विकास के राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पक्षों के तुल्यकालन एवं संक्रमण पर बल देता है।
(6) पश्चिमी मॉडलों की अपर्याप्तता को उजागर करते हुए व्यवहारों प्रशासन उनकी प्रशासनिक विधियों एवं व्यवहारों की अपर्यान्तताओं को भी उजागर करता है। चूंकि पश्चिमी मॉडल पूरब में प्रयोज्य नहीं रहे, अतः विकास प्रशासन देशज प्रशासनिक विधियों के विकास का समर्थन करता हैं। उदाहरण के लिए भारत ने विकास का पंचायती राज माँडल अपनाया है तो उसकी अपनी विधि है।
(7) विकास प्रशासन, प्रशासन के मानव कारकों पर ध्यान केंन्द्रित करता है। जिनकी पहले उपेक्षा की जा रही थी। यह इस अर्थ मे अधिक लोकतांत्रिक है कि यह निचले स्तर से विचारों का प्रवाह एंव विकास प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी भी प्रोत्साहित करता है जो कि विकास प्रशासन की सफलता के लिए अनिवार्य है।
विकास प्रशासन की विशेषताएं :- विकास प्रशासन सरकार का कार्यात्मक पहलू है जो लक्ष्योन्मुखी होता हैं विकास प्रशासन केवल जनता के लिए प्रशासन नहीं है बल्कि यह जनता के साथ कार्य करने वाला प्रशासन है। संक्षेप, मे विकास प्रशासन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) परिवर्तनशील : विकास प्रशासन का केन्द्रबिन्दु परिवर्तनशीलता है। यह परिवर्तन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक है। विकासशील देशों में प्रशासन को निरन्तर परिवर्तनों के दौर से गुजरना पड़ता है। इस प्रकार परिवर्तनशीलता विकास प्रशासन की बहुमूल्य पूँजी है जिसके सहारे वह सक्रिय बना रहता है।
(2) विकासात्मक प्रकृति: फेनसोड ने ठीक ही कहा है कि विकास प्रशासन नवीन सुधारों तथा अभिनवकरणों पर निर्भर करता है। इसकी प्रकृति विकासात्मक कार्यक्रमों को लेकर चलने की होती हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से पिछडे़ समाज का विकास करना है।
(3) प्रजातान्त्रिक मूल्यों से सम्बन्धित विकास प्रशासन जन-आकांक्षाओं की पूर्ति के प्रति प्रयन्तशील रहता है। साथ ही विकास प्रशासन प्रजातान्त्रिक मूल्यों से सम्बद्ध रहता है, क्योंकि इसमें मानव अधिकारों और मूल्यों के प्रति सम्मान, जनहित का उद्देश्य तथा उत्तरदायित्व की भावना निहित रहती है। चूँकि विकास प्रशासन का सम्बन्ध सरकारी प्रशासन द्वारा किये जाने वाले प्रयासों से है और सरकारी प्रयास जनकल्याण और प्रजातान्त्रिक मूल्यों से जुड़े रहते हैं, अतः विकास प्रशासन द्वारा किये जाने वाले प्रयासों से है और सरकारी प्रयास जनकल्याण और प्रजातान्त्रिक मूल्यों से जुड़े रहते हैं, अतः विकास प्रशासन को प्रजातान्त्रिक मूल्यों से पृथक नहीं किया जा सकता।
(4) आधुनिकीकरण: विकासशील देशों के विकास के लिए आधुनिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक हो गया है। साथ ही आज के आधुनिक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु विकास प्रशासन को अपने आपको योग्य बनाना पड़ता है। इसके लिए प्रशासनिक आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना पड़ता है। प्रशासनिक आधुनिकीकरण के लिए विकास प्रशासन विकसित देशों से मापदण्ड और तकनीक प्राप्त करता हैं।
(5) प्रशासनिक कुशलता: कुशलता प्रशासन की सफलता की कुंजी है। विकास प्रशासन में प्रशासनिक कुशलता को इसलिए महत्त्व दिया जाता है कि इसके अभाव में विकास के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करना सम्भव नहीं है। विकास प्रशासन इस बात के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है कि प्रशासनिक विकास के माध्यम से प्रशासन की कार्यकुशलता में वृद्धि की जाये।
(6) आर्थिक विकास : आर्थिक विकास और विकास प्रशासन का परस्पर महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है। प्रशासनिक विकास के लिए आर्थिक विकास भी आवश्यक हैं। विकासशील देशों की विभिन्न आर्थिक योजनाएं एवं विकास सम्बन्धी कार्यक्रम विकास प्रशासन के सहयोग से ही लागू किये जाते हैं। विकास प्रशासन ऐसे प्रशासनिक संगठन की रचना करता है जो देश की आर्थिक प्रगति को सम्भव बनाता है तथा आर्थिक विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। राष्ट्र के विकास के लिए आर्थिक योजनाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती हैं और उन्हें लागू करने मे विकास प्रशासन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं
(7) परिणामोन्मुखी: विकास प्रशासन का परिणामोन्मुखी होना इसकी एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता है। विकास प्रशासन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह निर्धारित सीमा के अन्तर्गत कार्यों को सम्पन्न करें और परिणाम अच्छे हों। इसमें परिणाम को अधिक महत्त्व दिया जाता हैं |