UNIT 5
संगठन – अर्थ एवं सिद्धांत
संगठन के सिद्धांतों का तात्पर्य उन प्रक्रियाओं तकनीकों और नियमों से लगाया जाता है जिनके आधार पर संगठन संचालित किए जाते हैं
परिचय➖ यह सत्य है कि आज तक संगठन के कोई सर्वमान्य सिद्धांत नहीं बन पाए हैं यह भी निश्चित है कि संगठन के सिद्धांत भौतिक विज्ञान के नियम नहीं है यह तो अनुभवजन्य सिद्धांत है फिर भी सिद्धांत अवश्य हैं
इन सिद्धांतों को संगठन के मूल तत्व संगठन के आंतरिक संचालन की समस्या, प्रबंध की समस्या अथवा प्रशासकीय संगठन की प्रावैधिक या तकनीकी समस्याएं भी कहा जाता है
फेयोल के अनुसार➖ ऐसे सत्य सिद्धांत मान ले गए हैं जिन पर भरोसा किया जा सकता है
ए.डी.ह्वाइट के अनुसार➖ यह व्यवहार के कार्य नियमों का सुझाव देते हैं जो विस्तृत अनुभव के कारण मान्य हो गए हैं
संगठन के कितने सिद्धांत हैं अथवा किन किन सिद्धांतों का संगठन में पालन करना आवश्यक है
इसके बारे में विद्वानों में एकमत नहीं है➖
मूने और रैले ने 4 सिद्धांतों➖
1- समन्वय,
2- पदसोपान,
3- कार्यात्मक
4- सिद्धांत और सूत्र व स्टाफ
हेनरी फेयोल ने 14 सिद्धांतों➖
1- श्रम विभाजन,
2- अधिकार और उत्तरदायित्व 3-अनुशासन ,
4- आदेश की एकता,
5- निर्देश की एकता ,
6- व्यक्तिगत हित
7- सामान्य हित से गोण,
8- पारिश्रमिक,
9- केंद्रीकरण
10- स्केलर श्रृंखला
11- सुव्यवस्था
12- समता
13- पदावधि की स्थिरता
पांच तत्वों➖
1- योजना
2- संगठन
3- आदेश
4- समन्वय और
5- नियंत्रण
गुलिक ने POSDCORB के रूप में संगठन के सात तत्वों का विकास किया है वह हैं➖
1- P-योजना,
2- O-संगठन,
3- S-स्टाफिंग,
4- D-निर्देशन,
5- CO-समन्वय,
6- R-प्रतिवेदन और
7- B-बजट बनाना
उर्विक ने 8 सिद्धांतों➖
1- उद्देश्य
2- अनुरूपता
3- उत्तरदायित्व
4- पद सोपान
5- नियंत्रण का क्षेत्र
6- विशेषीकरण
7-समन्वय
8- परिभाषा या निर्धारण का सिद्धांत
गुलिक ने➖ कार्य विभाजन या विशेषीकरण, विभागीय संगठनों के आधार, पदसोपान द्वारा समन्वय, सोद्देश्य समन्वय,समिति के अंतर्गत समन्वय,विकेंद्रीकरण, आदेश की एकता, स्टाफ और सूत्र प्रत्यायोजन तथा नियंत्रण का क्षेत्र सिद्धांतों का विकास किया
उक्त विभिन्न विद्वानों द्वारा व्यक्त विचारों का विश्लेषण करने पर संगठन के प्रमुख सिद्धांतों का हम यहां अध्ययन करते हैं जो निम्न प्रकार हैं➖
1- पदसोपान
2- आदेश की एकता
3- प्राधिकार और उत्तरदायित्व
4- समन्वय
5- नियंत्रण का क्षेत्र
6- पर्यवेक्षण
7- केंद्रीकरण या विकेंद्रीकरण 8-प्रत्यायोजन
पदसोपान :- संगठनात्मक सिद्धांतों में पदसोपान प्रमुख सिद्धांत है शास्त्रीय चिंतक हेनरी फेयोल द्वारा इसे स्केलर चेन जब की मूरे और रेल द्वारा इसे स्केलर प्रोसेस कहा गया है
पदसोपान का परिचय➖ प्रशासन में ढांचे का निर्माण पदसोपान प्रणाली के आधार पर होता है यह संगठन में कार्यरत कर्मचारियों के मध्य संगठन के कार्य और सत्ता का विभाजन है इस विवाचन के फलस्वरुप सत्ता पर आधारित एक ऐसे प्रशासनिक ढांचे का निर्माण होता है जिसमें उच्च अधिकारी और निम्न अधिकारियों के मध्य संबंधोंका वर्णन एक सोपानात्मक ढांचे में दर्शाया जाता है
वास्तव में पदसोपान उच्च और अधीनस्थ कर्मचारियों के मध्य स्पष्ट विभेदो का नाम है
पद सोपान का अर्थ➖ पदसोपान का शाब्दिक अर्थ है श्रेणीबद्ध प्रशासन अंग्रेजी में इसे हाय शर्कीकहते हैं जिसका मतलब है निरंतर उच्चतर शासन अथवा नियंत्रण इस अर्थ में प्रत्येक उच्च अधिकारी अपने तात्कालिक अधीनस्थ कर्मचारी को आज्ञा देता है अथार्थ उच्चतर का निम्न स्तर पर शासन! संगठन में प्राधिकार और उत्तरदायित्व के आधार पर पदों और कर्तव्य की उत्तरोत्तर व्यवस्था करना ही पदसोपान है
यह नियंत्रण और निर्देशन की केंद्रीय कृत व्यवस्था है श्रम विभाजन प्रत्यायोजन नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र आदेश की एकता उचित प्रक्रिया का सिद्धांत पदसोपान से जुड़े सिद्धांत हैं
पदसोपान की परिभाषा➖ कोई संगठन पदसोपान के सिद्धांत पर आधारित है ,कहने का तात्पर्य यह है कि उसमें सत्ता नीचे से शिखर की ओर उतरती चली जाती है। इस संबंध में अर्थ आलम और एल.डी.ह्वाइट की परिभाषा उल्लेखनीय है।
अर्थ आलम के अनुसार ➖ पदसोपान निम्न और उच्च व्यक्तियों का श्रेणी बंद रूप में व्यवस्थित संगठन है
एल. डी. ह्वाइटके अनुसार ➖ पदसोपान संगठन के ढांचे में ऊपर से लेकर नीचे तक उत्तरदायित्व के अनेक सोपानों द्वारा उच्च और अधीनस्थ संबंधों का सार्वभौमिक प्रयोग ही है
पदसोपान की विशेषताएं :-
1- संगठन अनेक क्रमिक इस तरह से युक्त होता है
2- सत्ता नीचे से शिखर की ओर उतरती चली जाती है
3- ऊपर का पदाधिकारी कभी भी नीचे के साथ संपर्क स्थापित करते समय मध्यस्थ पदाधिकारी की उपेक्षा नहीं कर सकता
4- इसमें प्रशासनिक संरचना एक सिड़ी के समान रहती है और समस्त कार्यवाही क्रमिक रूप में अथवा चरणों में व्यक्त रहती है
5- प्रत्येक कार्य उचित माध्यम द्वारा होता है
6- इसमें संगठन का आकार पिरामिड जैसा होता है
7- प्रत्येक स्तर पर कार्मिकों के दायित्व और अधिकारों का स्पष्ट रुप से निर्धारण किया जाता है
8- इसके अंतर्गत उचित प्रक्रिया के सिद्धांत का पालन किया जाता है
9- इसके अंतर्गत सांगठनिक इकाइयों के मध्य कार्य का विभाजन किया जाता है
10- यह आदेश की एकता के सिद्धांत का पालन करता है
11- ऐसा संगठन पिरामिडाकार होता है इसके शीर्ष पर एक विभागाध्यक्ष या शीर्षथ पदाधिकारी होता है वह सब प्रकार की सर्वोच्च सत्ता रखता है
12- पूरे प्रशासनिक क्रियाकलाप को इकाईयों और उप इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है
13- इसके अनुसार बनाए गए संगठन में सत्ता आदेश और नियंत्रण क्रमशः 1-1 स्तर से गुजरते हुए ऊपर से नीचे की ओर जाते हैं
14- विभिन्न इकाइयों में पारस्परिक समन्वय बना रहता है सत्ता का अंतिम अधिकार सर्वोच्च शिखरस्थ अधिकारी के पास होता है, अतः विभिन्न इकाइयों द्वारा किए जाने वाले कार्यों और गतिविधियों में बड़ी सुगमता से समन्वय स्थापित हो जाता है |
पदसोपान के प्रकार :- पिफनर,प्रेस्थस और शैडवुड मैं पदसोपान प्रणाली के चार प्रकार बताए हैं➖
- कार्य आधारित पद सोपान– कार्य आधारित पद सोपान में कर्मचारी का स्थान उसके द्वारा किए जा रहे कार्यों और उसके अधिकारों और कर्तव्यों द्वारा निर्धारित होता है
- प्रतिष्ठा आधारित पद सोपान– प्रतिष्ठा आधारित पद सोपान में स्थिति कार्यों और उत्तरदायित्व के आधार पर ना होकर व्यक्ति के पद के आधार पर होती है
- कुशलताओं का पद सोपान– कुशलताओं के पद सोपान में योग्यता और दक्षता पर बल दिया जाता है
- वेतन आधारित पद सोपान– वेतन आधारित पदसोपान में सर्वोच्च वेतन पाने वाला सर्वोच्च शिखर पर और निम्न वेतन पाने वाला निम्न शिखर पर होता है
पदसोपान प्रणाली के गुण➖
1- आदेश की एकता के सिद्धांत का पालन करता है
2- नेतृत्व का निर्धारण
3- समग्रीकरण
4- उचित मार्ग द्वारा कार्य
5- यह संगठन में प्रत्यायोजन को आसान बनाता है
6- यह संगठन में आदेश, संचार और फीडबैक का मार्ग सुनिश्चित करता है
7- यह संगठन में समन्वय और अनुशासन को स्थापित करता है 8-यह संगठन की सभी इकाइयों और पद स्तरों को एक इकाई के रूप में एकीकृत करता है
9- उच्च इस तरह पर कार्यभार को कम करता है और विकेंद्रीय कृत निर्णयन को स्थापित करता है
इस प्रणाली के आधार पर एक व्यक्ति केवल एक ही व्यक्ति के अधीन रहकर कार्य करता है संगठन को विभिन्न स्तरों में विभाजित करके यह निश्चित कर दिया जाता है कि कौन किसका नेतृत्व करेगा
विभिन्न इकाइयां परस्पर एकीकृत और सुसंबंध होती है प्रत्येक कार्य अपने निर्धारित मार्ग अथवा उचित माध्यम द्वारा संपन्न होता है इस प्रक्रिया द्वारा अधिकारी अपने अधीनस्थ को कुछ शक्तियां प्रत्यायोजित कर सकता है इसके द्वारा ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर संचार का महत्व प्रशस्त होता है समूचे विभाग की कार्यवाहियों में संबंध में स्थापित होता है
पदसोपान प्रणाली के दोष➖
1- यह संगठन में लालफीताशाही (कार्य में अनावश्यक देरी )लाता है
2- यह संगठन में नवाचार और सर्जनात्मकता को हतोत्साहित करता है
3- यह संगठन में उच्चस्थ- अधीनस्थ संबंधों को स्थापित करता है जो मानवीय गरिमा के विरुद्ध है
4- इसमें अधीनस्थों को पहल शक्ति प्राप्त ना होने से उन में उत्साह और मनोबल क्षीण प्रकृति का होता है
5- यह संगठन में कठोरता को स्थापित करता है
6- यह औपचारिक संबंधों पर आधारित होता है
7- इस में लचीलेपन का अभाव पाया जाता है
कार्य करने में उचित माध्यम की प्रक्रिया अपनाने पर अनावश्यक विलंब होता है, पदसोपान से लालफीताशाही और नौकरशाही में वृद्धि होती है
नियमों पर कठोरतापूर्वक बल दिए जाने के कारण सोहार्द पूर्ण मानवीय संबंधों का विकास नहीं हो पाता इससे प्रशासनिक संगठन में लचीलेपन का अभाव पैदा होता है जिससे संगठन के लोगों में आपसी जीवंत संबंधों का भली-भांति विकास नहीं हो पाता |
यहा नियंत्रण का तात्पर्य है कि➖संगठनात्मक कार्यों का निष्पादन निर्धारित मानकों और योजना अनुसार हो रहा है या नहीं जबकि विस्तार का संबंध अधीनस्थ कार्मिकों की संख्या से है ,इस प्रकार नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र का तात्पर्य है अधीनस्थों कि वह अधिकतम संख्या जिसे वह एक उच्च अधिकारी प्रभावशाली रूप से निर्देशित नियंत्रित और पर्यवेक्षित कर सकता है
नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र का उद्भव ग्रेक्यूनास के ध्यान के विस्तार क्षेत्र से हुआ है कभी सेन्य संगठनों में प्रयुक्त की जाने वाली यह संकल्पना आज ग्रेक्यूनास के योगदान से प्रबंध के सिद्धांत के रूप में स्थापित हो चुका है
नियंत्रण का क्षेत्र परिचय➖ नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र प्रशासन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है इस संबंध में यह कहा जा सकता है कि कुछ समय पूर्व तक उसे अति पुनीत सिद्धांत माना जाता रहा है नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र उन अधीनस्थों या संगठन की इकाई की संख्या है जिनका निर्देशन प्रशासन स्वयं करता है
अर्थ और परिभाषा➖ नियंत्रण की सीमा क्षेत्र का विस्तार का संबंध इस बात से है कि उच्च पदाधिकारी अपने अधीन कितने कर्मचारियों के कार्य का नियंत्रण कर सकता है नियंत्रण की सीमा निगरानी की सीमा है
संगठन में सोपानों की संख्या वास्तव में इससे निर्धारित होती है नियंत्रण का विस्तार या सीमा इन अधीनस्थों या संगठन की इकाइयों की संख्या है जिनका निर्देशन प्रशासन स्वयं करता है
“”इसे ध्यान के विस्तार का क्षेत्र””भी कहते हैं
नियंत्रण के क्षेत्र की सीमा रेखा➖मानकीय क्षमता की भी सीमाएं होती है यह नियंत्रण का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत कर दिया जाए तो उसके परिणाम असंतोषजनक होते हैं इसीलिए नियंत्रण की सीमा से हमारा तात्पर्य है कि अधीनस्थ कर्मचारियों की वह संख्या जिसके कार्यों का अधीक्षण एक अधिकारी क्षमता पूर्वक कर सकता है
दूसरे शब्दों में नियंत्रण की सीमा से आशय अधीनस्थ कर्मचारियों की संख्या से जिस पर उच्च अधिकारी प्रभावशाली नियंत्रण स्थापित कर सकता है
नियंत्रण की सीमा रेखा के संबंध में विद्वानों में मत भिन्नता है➖
- सर इयान हैमिल्टन➖ इस सीमा में तीन से चार अधीनस्थों को स्वीकार करते हैं
- लार्ड हाल्डेन और ग्राहम वालास➖मानते हैं कि एक उच्चाधिकारी 10-12 अधीनस्थों को नियंत्रित कर सकता है
- ग्रेक्यूनास और हेनरी फेयोल के अनुसार➖ यह संख्या 5-6 हो सकती है जबकि
- उर्विक➖ उच्च स्तर पर पांच या छह और अधीनस्थ स्तरों पर 8 या 12 के मध्य नियंत्रण की सीमा मानते हैं
नियंत्रण की समस्या पद सोपान क्रम वाले संगठनों में पाई जाती इसका महत्व निम्न बिंदुओं से स्पष्ट होता है➖
1- किसी संगठन के स्तरों की संख्या का निर्धारण इससे होता है
2- पदसोपान और नियंत्रण के क्षेत्र में निकट का संबंध है
3- अधिकारियों के नियंत्रण क्षेत्र को ध्यान में रखकर सीढ़ियों का निर्धारण
4- कर्मचारियों पर प्रभावशाली नियंत्रण की युक्ति
5- विलंब और अकुशलता पर रोक तथा कार्य की गुणवत्ता नियंत्रण और निरीक्षण पर निर्भर
6- सांगठनिक लक्ष्य की प्राप्ति को सुनिश्चित करता है
7- इस संगठन में बेहतर कार्य निष्पादन को सुनिश्चित करता है
8- संगठन में समन्वय और एकरूपता को स्थापित करता है
9-संगठन में अनुशासन के वातावरण को स्थापित करता है
10- यह संगठन में साम्राज्य निर्माण की प्रगति पर अंकुश स्थापित करता है
नियंत्रण के क्षेत्र के सिद्धांत
नियंत्रण के क्षेत्र के निम्नलिखित सिद्धांत माने गए हैं-
- योग्यतम व्यक्ति की भी नियंत्रण और निरीक्षण की शक्ति और सामर्थ्य सीमित रहती है
- जितना बड़ा उत्तरदायित्व होता है सक्रिय नियंत्रण क्षेत्र उतना ही संकुचित होता है
- एक ही प्रकार के कार्य करने वाले कर्मचारियों के मामले में नियंत्रण क्षेत्र अपेक्षाकृत विस्तृत होता है
नियंत्रण के क्षेत्र के सिद्धांत के गुण ( Properties of the field of control area)
नियंत्रण के क्षेत्र के सिद्धांत में निम्नलिखित गुण विद्यमान हैं➖
1-नियंत्रण का क्षेत्र जितना छोटा होगा उतना ही लाभप्रद होगा
2-छोटे नियंत्रण क्षेत्र से प्रधान अधिशाषी पर भार कम होगा भ्रम और विलंब कम होंगे
3-नियंत्रण के क्षेत्र को सीमित कर देने में सक्रिय नियंत्रण का विस्तार होगा तथा कार्यकुशलता बढ़ेगी
4-प्रशासकीय मनोबल ऊंचा उठेगा
संक्षेप में➖कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक मशीनों द्वारा प्रशासन को अधिक प्रगति से बड़ी मात्रा में उचित और शुद्ध तथ्य तथा सूचनाएं प्राप्त होती हैं यांत्रिक स्वचालन से नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र की सीमा निसंदेह बढ़ गई है और एक अधिकारी के लिए अब एक से अधिक कर्मचारी के लिए कार्य को नियंत्रित करना संभव हो गया है
नियंत्रण क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कारक
गुलिक मतानुसार➖ नियंत्रण क्षेत्र के निर्धारक तत्वों में कार्य ,समय और स्थान है
प्रोफेसर जियाउद्दीन खान➖ चार तत्व को स्वीकार करते हैं जो नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र को प्रभावित करते हैं
1- वैयक्तिक पृष्ठभूमि
2- मानवीय पृष्ठभूमि
3- प्राविधिक पृष्ठभूमि
4- संगठनात्मक पृष्ठभूमि
सामान्यतः नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र को निम्न तत्व प्रभावित करते हैं➖
1-कार्य-कार्य की सरल प्रकृति, दैनिक प्रकृति के कार्य व पद्धतियों के मानकीकरण की स्थिति में नियंत्रण का क्षेत्र विस्तृत किया जा सकता है
2-समय– यदि संगठन पुराना है तो उसकी परंपराएं और रीति-रिवाज विकसित होंगे कार्मिक कार्यों के संपादन के अभ्यस्त होंगे।ऐसी स्थिति में नियंत्रण का क्षेत्र विस्तृत रखा जा सकता है लेकिन संगठन नव स्थापित है तो उसमें समस्याओं के पुनरावृति होगी उसके रीति रिवाज और परंपरा विकसित होने से नियंत्रण का क्षेत्र छोटा रखना ही उचित रहता है
3-स्थान–संगठन की इकाइयां भौगोलिक रूप से दूर अवस्थित नहीं होने पर उन पर प्रभावी पर्यवेक्षण रखा जा सकता है अतः नियंत्रण का विस्तार विस्तृत रहता है विपरीत स्थिति में यह छोटा होगा
4-व्यक्तित्व– यदि संगठन में नियंत्रण कर्ता और अधीनस्थ दोनों योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व से युक्त हैं तो नियंत्रण क्षेत्र विस्तृत होगा और विपरीत स्थिति में नियंत्रण का क्षेत्र छोटा रखना ही उपयुक्त होगा
5-प्रत्यायोजन की मात्रा– यदि संगठन में उच्च अधिकारी प्रत्यायोजन अधिक मात्रा में करता है तो उसके पास समय की उपलब्धता होगी परिणाम स्वरुप वह अधिक अधीनस्थों को नियंत्रित कर सकता है
6-विकेंद्रीकरण–विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया में नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र अधिक रहता है
7-पर्यवेक्षण तकनीके–आधुनिक पर्यवेक्षण तकनीकों-फेक्स, टेलीफोन का प्रयोग करने पर यह विस्तृत रूप में होगा लेकिन परंपरागत तकनीकों के द्वारा पर्यवेक्षण किया जा रहा है तो यह क्षेत्र सीमित रूप में होगा
8-अन्य कारक– उचित संप्रेषण व्यवस्था, स्पष्ट नियोजन, स्टाफ अभिकरणों की सेवाएं इत्यादि नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र को विस्तृत करते हैं
इसके अतिरिक्त अधीक्षक और मुख्य अधिशासी की क्षमता , स्फूर्ति भी नियंत्रण के क्षेत्र को प्रभावित करते हैं
फ्रांसीसी ए.वी.ग्रेक्यूनास प्रबंध की सलाहकार और मनोवैज्ञानिक थे इन्होंने संगठन में कार्यरत उच्च अधिकारियों और अधीनस्थों के संबंधों का तुलनात्मक विश्लेषण अध्ययन किया अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर अपने लेख Relation in organization में निम्न विचार दिये
ध्यान का विस्तार क्षेत्र➖ग्रेक्यूनास कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति का एक सुनिश्चित ध्यान क्षेत्र होता है और इस क्षेत्र में कार्यरत कार्मिकों की गतिविधियों पर ही वह उचित और प्रभावी ढंग से ध्यान केंद्रित कर सकता है
ग्रेक्यूनास के मतानुसार➖ व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं सीमित होती हैं यदि इस ध्यान क्षेत्र का उल्लंघन किया जाएगा तो दायित्व के पालन में समस्या उत्पन्न होगी परिणाम स्वरुप शक्ति का ह्वास होगा और प्राप्त परिणाम खतरनाक साबित होंगे
नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र के संबंध में ग्रेक्यूनास का फार्मूला
ग्रेक्यूनास ने नियंत्रण के क्षेत्र की जटिलता को गणितीय सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया
ग्रेक्यूनास मानता है कि➖ नियंत्रण के क्षेत्र को केवल उच्चस्थ अधीनस्थों के एकल संबंध ही प्रभावित नहीं करते बल्कि इनके बीच निर्मित संबंध भी प्रभावित करते हैं इनका मानना है कि अधीनस्थों की संख्या में गणितीय दर(1,2,3,4…….) से वृद्धि होती है लेकिन इनके मध्य संबंधों में वृद्धि गुणोत्तर दर(2,4,6,8,10…..)से होती है
ग्रेक्यूनास तीन प्रकार के संबंधों का उल्लेख करते हैं➖
1-प्रत्यक्ष एकल संबंध–उच्चस्थ के अधीक्षकों के साथ संबंध=n(अधीनस्थों की संख्या)
2-प्रति संबंध–अधीनस्थों के परस्पर अंतर्संबंध=n(n-1)
3-प्रत्यक्ष समूह संबंध– उच्चस्थ के अधीनस्थ के साथ संभावित संबंध=n(2n-1)
ग्रेक्यूनास द्वारा कुछ संबंधों की व्याख्या के लिए निम्न सूत्र प्रतिपादित किया है➖
Total Relationship=n(2n/2+n-1)
माना किसी अधिकारी के अधीन तीन व्यक्ति कार्य करते हैं तो कुछ संभावित संबंधों की संख्या निम्न प्रकार से है
n(2n/2+n-1)=3(2³/2+3-1)
=3(8/2+3-1)
=3(4+2)
=18