UNIT 1
प्रकृति एवं क्षेत्र
राजनीतिक समाजशास्त्र को आमतौर पर राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र के बीच एक अलग सीमा क्षेत्र माना जाता है, लेकिन समय के साथ इसे अपने स्वयं के वास्तविक क्षेत्र के रूप में जोर देने की प्रवृत्ति में भिन्नताएं आयी हैं। एक केंद्रीय तत्व यह रहा है कि राजनीतिक समाजशास्त्र सामाजिक और राजनीतिक, समाज और राज्य के बीच के अंतर से संबंधित है। मुख्य ध्यान सामाजिक परिवर्तन की मास्टर प्रक्रियाओं पर दिया गया है, अर्थात्, राजनीतिक व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था में एक साथ परिवर्तन पर। राजनीतिक समाजशास्त्र के विकास में, तीन विकट क्षणों को प्रतिष्ठित किया जाता है: (अ) उन्नीसवीं सदी के मध्य में क्षेत्र का जन्म, जब समाज और राज्य के बीच अंतर स्थापित किया गया था, (b) द्वितीय विश्व के बाद राजनीतिक समाजशास्त्र का संस्थागतकरण लोकतंत्र की शर्तों पर विशेष जोर देने के साथ युद्ध, और (ग) राज्य-निर्माण के अध्ययन के प्रसार, शासन के टूटने और विकास की दुनिया भर में प्रवृत्ति।
राज्य और समाज के अंतर्संबंध पर बहस 19 वीं सदी में और 20 वीं सदी में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, सामाजिक विज्ञानों में भेदभाव और विशेषज्ञता के बढ़ते चलन और व्यवहारिक क्रांति के बढ़ते महत्व और अंतर के परिणामस्वरूप शुरू हुई। राजनीति विज्ञान में अनुशासनात्मक दृष्टिकोण को खोजने के क्रम में जर्मन और अमेरिकी विद्वानों के बीच राजनीतिक विज्ञान के सामाजिक-उन्मुख अध्ययन का एक नया चलन शुरू हुआ। इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप, राजनीतिक समस्याओं की समाजशास्त्रीय ख़ोज और जांच शुरू हुई। ये खोज और जांच न तो पूरी तरह से समाजशास्त्रीय थी और न ही पूरी तरह से राजनीतिक थी। इसलिए, ऐसे अध्ययनों को 'राजनीतिक समाजशास्त्र' के रूप में जाना जाता है। एक स्वतंत्र और स्वायत्त अनुशासन के रूप में 'राजनीतिक समाजशास्त्र' का उद्भव और अध्ययन एक उपन्यास घटना है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, 'राजनीतिक समाजशास्त्र' ने फंगे नीमा, सिमोंड नेउमा, हेन्स गर्थ, होरोविट्ज़, जेनोवेटस, सी. राइट्स मिल्स, ग्रियर ऑर्लिन्स, रोज़, मैकेंज़ी, लिपसेट. हैसट बट जैसे विद्वानों और विचारकों के लेखन में एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में लोकप्रियता हासिल की। लेकिन, यह विषय अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। अपने बाल-अवस्था के कारण, राजनीतिक समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम के तहत विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों में किन विषयों को शामिल किया जाना चाहिए और किन क्षेत्रों का पता लगाया जाना चाहिए, इस पर विद्वानों और लेखकों के बीच गंभीर मतभेद हैं। यहां तक कि विषय के नामकरण के बारे में भी कोई सहमति नहीं है। कुछ विद्वान इसे 'राजनीतिक समाजशास्त्र' कहते हैं, जबकि अन्य विद्वान इसे 'राजनीति विज्ञान' कहते हैं। एस. एन. आइसेन्टेड इसे 'राजनीतिक प्रक्रियाओं और राजनीतिक प्रणालियों का सामाजिक अध्ययन' कह कर पुकारते है। 'राजनीतिक समाजशास्त्र' वास्तव में समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के बीच घनिष्ठ संबंध का द्योतक है। समाजशास्त्री और राजनीतिक वैज्ञानिक इस विषय की अपने तरीके से व्याख्या करते हैं। जहां समाजवादी के लिए, यह समाजशास्त्र की एक शाखा है, जो समाज के भीतर या बीच में निर्दिष्ट शक्ति के कारणों और परिणामों से संबंधित है और उन सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों के बारे में है जो सत्ता या शक्ति में बदलाव लाते हैं; राजनीतिज्ञ के लिए, यह राजनीति विज्ञान की एक शाखा है जो संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के बजाय राजनीतिक उपतंत्र को प्रभावित करने वाले अंतर्संबंधों से संबंधित है। ये अंतर्संबंध राजनीतिक व्यवस्था और समाज की अन्य उप-प्रणालियों के बीच हैं। राजनेता सामाजिक तथ्यों में रुचि रखते हैं जो राजनीतिक तथ्यों की व्याख्या करते हैं, जबकि समाजशास्त्री सभी संबंधित घटनाओं को देखता है।
एक नया विषय होने के नाते, 'राजनीतिक समाजशास्त्र' को परिभाषित करना कुछ कठिन है। राजनीतिक समाजशास्त्र के तहत, हम सामाजिक जीवन के राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं के बीच बातचीत का विश्लेषण करते है हम राजनीतिक कारकों और सामाजिक कारकों और उनके प्रभाव और एक दूसरे पर प्रतिच्छेदन के आपसी संबंधों का अध्ययन करते हैं।
- हाउसे तथा हयूज “राजनीतिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक शाखा हैं जिसका सम्बन्ध मुख्य रूप से राजनीति और समाज में अन्त:क्रिया का विश्लेषण करना है।”
- जेनोविटस “व्यापकतर अर्थ में राजनीतिक समाजशास्त्र समाज के सभी संस्थागत पहलुओं की शक्ति के सामाजिक आधार से सम्बन्धित है। इस परम्परा में राजनीतिक समाजशास्त्र स्तरीकरण के प्रतिमानों तथा संगठित राजनीति में इसके परिणामों का अध्ययन करता हैं|”
- लिपसेट “राजनीतिक समाजशास्त्र को समाज एवं राजनीतिक व्यवस्था के तथा सामाजिक संरचनाओं एवं राजनीतिक संस्थाओं के पारस्परिक अन्त:सम्बन्धों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
- बेनडिक्स “राजनीति विज्ञान राज्य से प्रारम्भ होता है और इस बात की जांच करता है कि यह समाज को कैसे प्रभावित करता है। राजनीतिक समाजशास्त्र समाज से प्रारम्भ होता है और इस बात की जांच करता है कि वह राज्य को कैसे प्रभावित करता है।”
- पोपीनो “राजनीतिक समाजशास्त्र में वृहत् सामाजिक संरचना तथा समाज की राजनीतिक संस्थाओं के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।”
- सारटोरी “राजनीतिक समाजशास्त्र एक अन्त:शास्त्रीय मिश्रण है जो कि सामाजिक तथा राजनीतिक चरों को अर्थात् समाजशास्त्रियों द्वारा प्रस्तावित निर्गमनों को राजनीतिशास्त्रियों द्वारा प्रस्तावित निर्गमनों से जोड़ने का प्रयास करता है। यद्यपि राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र तथा समाजशास्त्र को आपस से जोड़ने वाले पुलों में से एक है, फिर भी इसे ‘राजनीति के समाजशास्त्र‘ का पर्यायवाची नहीं समझा जाना चाहिए।”
- लेविस कोजर “राजनीतिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध सामाजिक कारकों तथा तात्कालिक समाज में शक्ति वितरण से है। इसका सम्बन्ध सामाजिक और राजनीतिक संघर्षो से है जो शक्ति वितरण में परिवर्तन का सूचक है।”
- टॉम बोटोमोर “राजनीतिक समाजशास्त्र का सरोकर सामाजिक सन्दर्भ में सत्ता (Power) से है। यहां सत्ता का अर्थ है एक व्यक्ति या सामाजिक समूह द्वारा कार्यवाही करने, निर्णय करने व उन्हें कार्यान्वित करने और मोटे तौर पर निर्णय करने के कार्यक्रम को निर्धारित करने की क्षमता जो यदि आवश्यक हो तो अन्य व्यक्तियों और समूहों के हितों और विरोध में भी प्रयुक्त हो सकती है।”
राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान नहीं है, क्योंकि यह राजनीति विज्ञान की तरह ‘राज्य और शासन का विज्ञान’ (Science of state and Government) नहीं है। यह ‘राजनीति का समाजशास्त्र‘ भी नहीं है, क्योंकि यह कवेल सामाजिक ही नहीं राजनीति से भी समान रूप से जुड़ा है।
यद्यपि राजनीतिक समाजशास्त्र ‘राजनीति’ में दिलचस्पी रखता है, लेकिन यह राजनीति को एक नये दृष्टिकोण से और नये संदर्भ में देखता है। राजनीति को उस दृष्टिकोण से अलग करके देखता है जिसे परम्परावादी राजनीतिशास्त्री इसे देखते आये थे। राजनीतिक समाजशास्त्र इस मूल मान्यता पर आधारित है कि सामाजिक प्रक्रिया और राजनीतिक प्रक्रिया के बीच आकृति की एकरूपता व समरूपता विद्यमान है। राजनीतिक समाजशास्त्र ‘राजनीति’ और ‘समाज’ के मध्य अन्त:क्रिया (Interaction) का सघन अध्ययन है। यह सामाजिक संरचनाओं और राजनीतिक प्रक्रियाओं के मध्य सूत्रात्मकता (Linkages) का अध्ययन करता है। यह सामाजिक व्यवहार और राजनीतिक व्यवहार के मध्य पायी जाने वाली अन्त:क्रियात्मकता का अध्ययन है। यह हमें राजनीति को इसके सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में देखने का परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। राजनैतिक समाजशास्त्र की विवेचना हमेशा परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ को ध्यान मे रखकर की गयी है। राजनैतिक समाजशास्त्र की प्रकृति के सम्बन्ध में विद्वानों में एक मत नहीं है। कुछ विद्वान इसे विज्ञान मानते हैं तो कुछ इसकी वैज्ञानिकता पर सन्देह करते हुए इसे कला मानते हैं।
परम्परागत दृष्टिकोण के समर्थक और राजनैतिक विचारक राजनैतिक समाजशास्त्र को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखते हैं।
बकल का विचार था कि, "ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है।“
राजनीति के अंग्रेजी शब्द 'Politics ' की उत्पत्ति यूनानी भाषा के शब्द 'पोलिस' (Polis ) से हुई है, जिसका अर्थ है-नगर राज्य अर्थात् नगर राज्य एवं उससे सम्बन्धित जीवन, घटनाओं, क्रियाओं, व्यवहारों तथा संरचनाओं का अध्ययन अथवा ज्ञान ही राजनीति है। परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत राजनैतिक समाजशास्त्र को चार अर्थो में परिभाषित किया जाता है-
- राज्य के अध्ययन के रूप में
- सरकार के अध्ययन के रूप में
- राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में
- राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में
गार्नर के शब्दों में/राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य के साथ ही होता है।”
राजनैतिक समाजशास्त्र का परम्परागत दृष्टिकोण इसकी प्रकृति को कला के रूप में देखता है। बक्ल, कॉम्टे, मेटलेण्ड, एमास, बोयर्ड, ब्रोजन, बर्क आदि विचारक राजनैतिक समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं।
राजनैतिक समाजशास्त्र, विज्ञान नहीं है, इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:
- विज्ञान जैसे प्रयोग और पर्यवेक्षण सम्भव नहीं
- कार्य - कारण के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करना कठिन
- सर्वमान्य सिद्धान्तों का अभाव
आधुनिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ में राजनीति विज्ञान की प्रकृति:
राजनैतिक समाजशास्त्र के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक विद्वान इसे विज्ञान की श्रेणी में रखते हैं। वे इसे पूर्ण विज्ञान बनाने के पक्ष में हैं। बोदाँ, हाब्स, मान्टेस्क्यू ब्राइस, ब्लंट्शली, जेलिनेक, फाईनर व लोस्की जैसे राजनीति शास्त्री राजनैतिक समाजशास्त्र को विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं।
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनैतिक समाजशास्त्र का सम्बन्ध राज्य, सरकार तथा प्रशासन - व्यवस्था के अन्तर्गत समाज के विविध संदर्भो व सम्बन्धों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान तथा अध्ययन से है। आधुनिक दृष्टिकोण में राजनैतिक समाजशास्त्र को निम्नलिखित चार अर्थों में परिभाषित किया जाता है -
- राजनैतिक समाजशास्त्र मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है
- शक्ति का अध्ययन है
- राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है,
- निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है
आधुनिक राजनैतिक समाजशास्त्र राज्य और सरकार के औपचारिक अध्ययन के स्थान पर मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार, राजनीतिक प्रक्रियाओं एवं उन समस्त अनौपचारिक तत्वों के अध्ययन पर बल देता है जो राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार आधुनिक दृष्टिकोण परम्परागत दृष्टिकोण की अपेक्षा वैज्ञानिक और यथार्थवादी है।
राजनैतिक समाजशास्त्र की प्राकृतिक विज्ञान से तुलना करना गलत है। यह मूलतः एक सामाजिक विज्ञान है और इस दृष्टि से विज्ञान होने के सभी प्रमुख लक्षण इसमें पाये जाते हैं। राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:
- क्रमबद्ध व व्यवस्थित ज्ञान - जिस प्रकार विज्ञान क्रमबद्ध, व्यवस्थित व वर्गीकृत होता है उसी प्रकार राजनैतिक समाजशास्त्र राज्य, सरकार, राजनीतिक संस्थाओं, धारणाओं और विचारधाराओं का ज्ञान इसी रूप में प्रकट करता है।
- प्रयोग एवं पर्यवेक्षण सम्भव - राजनैतिक समाजशास्त्र चूंकि एक समाज विज्ञान है इसलिए इसमें प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति प्रयोगशालाओं में कठोर वैज्ञानिक प्रयोग तो नहीं किये जा सकते हैं, फिर भी इसमें कुछ प्रयोग किया जाना सम्भव है। अतीत में भी ऐसे अनेक प्रयोग हुए हैं।
- कार्य - कारण में पारस्परिक सम्बन्ध सम्भव - राजनैतिक समाजशास्त्र में विशेष घटनाओं के सम्बन्ध में कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
- भविष्यवाणी किया जाना सम्भव - राजनैतिक समाजशास्त्र में प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति सटीक एवं शत-प्रतिशत भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, किन्तु मौसम विज्ञान की भाँति भविष्यवाणी राजनीति विज्ञान में भी सम्भव है।
- सर्वमान्य सिद्धान्त - राजनैतिक समाजशास्त्र में विज्ञान की भाँति अनेक सर्वमान्य सिद्धान्तों को भी अस्तित्व है। उदाहरण के रूप में लार्ड एक्टन के इस कथन को सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है कि "शक्ति भ्रष्ट करती है और सम्पूर्ण शक्ति सम्पूर्ण भ्रष्ट करती है।'
परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनैतिक समाजशास्त्र में राज्य, सरकार एवं राजनीतिक संस्थाओं के संगठन व कार्यों का तथा व्यक्ति व राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन भी वैज्ञानिक पद्धति से किया जाना चाहिए।
यह दृष्टिकोण आदर्शवादी, दार्शनिक एवं कल्पनावादी है। इसमें मूल्यों, आदर्शों एवं नैतिकता को महत्त्व दिया गया है।
राजनैतिक समाजशास्त्र के क्षेत्र से तात्पर्य उसकी विषय-वस्तु से लिया जाता है। विभिन्न परम्परागत राजनीति विज्ञानियों एवं युनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परम्परागत राजनैतिक समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय - वस्तु को सम्मिलित किया जा सकता है-
- मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन
- राज्य का अध्ययन
- सरकार का अध्ययन
- स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन
- राजनीतिक दलों एवं दबाव समूहों का अध्ययन
- राजनीतिक दर्शन एवं विचारधाराओं का अध्ययन
- अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन
- कूटनीति का अध्ययन
- लोक प्रशासन का अध्ययन
- अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन
- अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन।
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनैतिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन किया जाना चाहिए तथा समस्त राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन भी व्यवहारवादी दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् राजनैतिक समाजशास्त्र के क्षेत्र में आधुनिक दृष्टिकोण का उदय हुआ जो अधिक व्यापक एवं यथार्थवादी है। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय-वस्तु सम्मिलित है
- मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन
- राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन
- शक्ति का अध्ययन
- अन्त: अनुशासनात्मक अध्ययन
- वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग
- विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन।
परंपरागत दृष्टिकोण और आधुनिक दृष्टिकोण दोनों के तुलना से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि:-
राजनीति विज्ञान के परम्परावादी विद्वान अपने अध्ययन विषय का सम्बन्ध ‘राज्य’ और ‘सरकार’ जैसी औपचारिक संस्थाओं से जोड़ते थे। राजनीति विज्ञान में व्यवहारवादी क्रान्ति के परिणामस्वरूप ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के राजनीतिक व्यवहार, हित समूहों की क्रियाओं तथा विभिन्न हित समूहों में संघर्ष के समाधान के लिए किया जाने लगा। डेविड ईस्टन ने इसे ‘किसी समाज में मूल्यों के प्राधिकारिक वितरण से सम्बन्धित क्रिया कहा है।’
संक्षेप में, राजनीति के अध्ययन से अभिप्राय केवल राज्य और सरकार की औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करना ही नहीं अपितु यह एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि सभी प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों में राजनीति पायी जाती है।
राजनीतिक समाजशास्त्र का उपागम सामाजिक एवं राजनीतिक कारकों को समान महत्व देने के कारण, समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र दोनों से भिन्न है तथा इसलिए यह एक पृथक् सामाजिक विज्ञान है। प्रो.आर.टी. जनगम के अनुसार राजनीतिक समाजशास्त्र को समाजशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र के अन्त:उर्वरक की उपज माना जा सकता है जो राजनीति को सामाजिक रूप में प्रेक्षण करते हुए, राजनीति पर समाज के प्रभाव तथा समाज पर राजनीति के प्रभाव का अध्ययन करता है।
संक्षेप, में राजनीतिक समाजशास्त्र समाज के सामाजिक आर्थिक पर्यावरण से उत्पन्न तनावों और संघर्षो का अध्ययन कराने वाला विषय है।
राजनीति विज्ञान की भांति राजनीतिक समाजशास्त्र समाज में शक्ति सम्बन्धों के वितरण तथा शक्ति विभाजन का अध्ययन हैं इस दृष्टि से कतिपय विद्वान इसे राजनीति विज्ञान का उप-विषय भी कहते है।
राजनैतिक समाजशास्त्र की परिभाषाओं का विश्लेषण करने से इस की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-
(1) राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें मात्र राज्य और सरकार की औपचारिक संरचनाओं का अध्ययन नहीं होता।
(2) यह समाजशास्त्र भी नहीं है क्योंकि इसमें मात्र सामाजिक संस्थाओं का ही अध्ययन नहीं किया जाता।
(3) इसमें राजनीति का समाजशास्त्रीय परिवेश में अध्ययन किया जाता है।
(4) इसमें राजनीतिक समस्याओं को आर्थिक और सामाजिक परिवेश में देखा जाता है।
(5) इसकी विषय-वस्तु और कार्यपद्धति को समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र, दोनों विषयों से लिया जाता है|
अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘राजनीतिक समाजशास्त्र‘ राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों के गुणों को अपने में समाविष्ट करते हुए यह दोनों का अधिक विकसित रूप में प्रतिनिधित्व करता है। एस.एस. लिपसेट इसी बात को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं : “यदि समाज-व्यवस्था का स्थायित्व समाजशास्त्र की केन्द्रीय समस्या है तो राजनीतिक व्यवस्था का स्थायित्व अथवा जनतन्त्र की सामाजिक परिस्थिति राजनीतिक समाजशास्त्र की मुख्य चिन्ता है।
‘लगभग सभी प्रकार के सम्बन्धों में राजनीति विद्यमान होती है। कालेज, परिवार और क्लब में भी विशेष रूप से राजनीति के दर्शन तब होते हैं जबकि हम एक व्यक्ति या समूह को दूसरे व्यक्ति या समूह पर अपनी इच्छा या वरीयता, उनके प्रतिरोध के बावजूद, थोपते हुए पाते हैं।’ ‘समूहों या वर्गों के बीच होने वाले संघर्षो में बल और शक्ति की उपस्थिति सभी प्रकार के राजनीतिक सम्बन्धों का एक अन्तर्निहित पहलू है।’ ‘राजनीति सम्पूर्ण समाज में व्याप्त होती है। यह प्रत्येक सामाजिक समूह, संघ, वर्ग और व्यवसाय में फैली होती है। ‘यहां तक की गैर संगठित समुदायों, जनजातियों, संघों और परिवारों की राजनीति भी राजनीति होती है और राजनीति समाजशास्त्र की विषय-वस्तु होती है। ‘राजनीतिक समाजशास्त्र की मूल मान्यता है कि प्रत्येक प्रकार का मानवीय सम्बन्ध राजनीतिक होता है।’
राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीतिक को राज्य की बंधी सीमाओं से मुक्त कर बाहर निकालता है और इस धारणा का प्रतिपादन करता है कि राजनीति केवल राज्य में नहीं बल्कि समाज के समग्र क्षेत्र में व्याप्त रहती है। राजनीतिक समाजशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में राजनीति केवल ‘राजनीतिक’ नहीं रह जाती है, यह गैर राजनीतिक और सामाजिक भी हो जाती है और इस प्रकार राजनीति के गैर-राजनीतिक और सामाजिक प्रकृति के प्रकाश में राजनीतिक समाजशास्त्र उस खाई को पाटने का प्रयास है जो समाज और राज्य के बीच काफी समय से चली आ रही थी। इस प्रकार राजनीतिक समाजशास्त्र सामाजिक प्रक्रिया और राजनीतिक प्रक्रिया में तादाम्य स्थापित करने का प्रयास है।
राजनीति समाजशास्त्र शक्ति की दृश्यसत्ता (Phenomenon of Power) को अपना प्रमुख प्रतिपाद्य विषय मानता है और यह स्वीकार नहीं करता कि शक्ति राज्य का एकमात्र एकाधिकार है। इसके बदले यह मानता है कि समाज के प्राथमिक और द्वितीयक समूह सम्बन्धों में शक्ति संक्रियाशील होती है। राजसमाजशास्त्री की दृष्टि में शक्ति न केवल आवश्यक रूप से सामाजिक है बल्कि सम्बन्धात्मक और परिणामात्मक अथवा मापनीय भी है। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी शक्ति सम्बन्ध में शक्ति धारक की तुलना में शक्ति प्रेषिती कम महत्वपूर्ण नहीं है। समाजशास्त्र तार्किक-वैधिक सत्ता (rational-legel authority) के लिए अपनी सुस्पष्ट वरीयता व्यक्त करता है। तार्किक-वैधिक सत्ता सुविचारित रूप से निर्मित और व्यापक स्तर पर स्वीकृत नियमों से कठोर रूप से बंधी होती है।
राजनीतिक समाजशास्त्री आधुनिक समाज में न केवल असीमित शक्ति के प्रयोग को असम्भव मानता है, बल्कि यह भी स्वीकार करता है कि आधुनिक समाज में राजसत्ता कुछ हाथों में सिमटी रहती है। इसकी यह भी मान्यता है कि समाज में राजशक्ति का असमतल बंटवारा ठीक उसी तरह होता है जिस तरह से समाज में संसाधनों का बंटवारा असमतल होता है और इस असमतल बंटवारे को व्यापक जनादेश के आधार पर प्राप्त सहमति और सर्वसम्मत्ति के माध्यम में वैधिक, औचित्यपूर्ण और स्थायी बनाया जाता है। स्थायित्व प्राप्त और औचित्यपूर्ण शक्ति सम्बन्धों के इसी सामान्य प्रतिरूप की पृष्ठभूमि में राजनीतिक समाजशास्त्र कुछ नितान्त आवश्यक प्रासंगिक प्रश्नों और समस्याओं पर विचार करता है। उदाहरण के लिए, राजनीतिक समाजशास्त्र नौकरशाही का अध्ययन नीतियों को लागू करने वाले प्रकार्यो को निष्पादित करने वाले राज्य के एक अपरिहार्य यन्त्र या तन्त्र के रूप में नहीं करता बल्कि एक ऐसेमहत्वपूर्ण सामाजिक समूह के रूप में करता है जिसकी आधुनिक समाज की बढ़ती हुई विषमताओं के संदर्भ में एक बहुत बड़ी प्रकार्यात्मक आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में राजनीतिक समाजशास्त्र नौकरशाही को इसके विशिष्ट राजनीतिक संदर्भ में नहीं, इसके वृहत्तर सामाजिक संदर्भ में समझना चाहता है।
संक्षेप में, राजनीतिक समाजशास्त्र इस बात की परीक्षा करने में अभिरूचि रखता है कि राजनीति सामाजिक संरचनाओं को और सामाजिक संरचनाएं राजनीति को कैसे प्रभावित करती हैं।