UNIT 3
राजनैतिक संस्कृति
राजनैतिक संस्कृति की अवधारणा राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में बिल्कुल नई संकल्पना हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राजनैतिक विश्लेषकों ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि समान राजनैतिक संरचनात्मक ढांचे वाली राजनैतिक व्यवस्था में अन्तर क्यों आ जाता हैं तथा राजनैतिक विकास की दिशाएं भी अलग-अलग क्यों हो जाती हैं। इसके लिए राजनैतिक विश्लेषकों ने भारत, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान,घाना, मिश्र आदि विकसित व विकासशील देशों की राजनैतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन शुरु किया और अन्त में चौंकाने वाले निष्कर्ष निकाले। राजनैतिक विश्लषकों ने राज-व्यवस्थाओं का जिस निष्ठा व गहराई के साथ अवलोकन किया, उसी के कारण यह तथ्य उभरकर हमारे सामने आया कि राजनैतिक विकास की विभिन्न दिशाओं में जाने का कारण इन देशों की राजनैतिक संस्कृति का स्वरूप हैं। पराधीन राजनैतिक संस्कृति के कारण विकासशील देशों का राजनैतिक विकास राजनैतिक व्यवस्था के मार्ग में बाधा बन रहा हैं, जबकि विकसित व सहभागी राजनैतिक संस्कृति विकसित देशों में राजनैतिक विकास को राजनैतिक व्यवस्था के विकास के अनुकूल बना रही हैं। इस प्रकार धीरे धीरे राजनैतिक संस्कृति की अवधारणा राजनीति विज्ञान की लोकप्रिय अवधारणबन गई और राजनैतिक विकास के समाजवैज्ञानिक पहलुओं का आधार भी।
इसी कारण लुसियन पाई ने लिखा हैं- “प्रत्येक विशिष्ट समाज में एक सीमित और स्पष्ट राजनैतिक संस्कृति होती हैं जो राजनैतिक प्रक्रिया को अर्थ, स्वरूप और ढांचा प्रदान करती हैं।”
कुछ ही समय में राजनीति विज्ञान में पारसन्स, मैनहीन, सिडनी बर्मा, लुसियन पाई, ऑमण्ड, बीर, उलम आदि विद्वानों ने राजनैतिक संस्कृति को राजनीति विज्ञान में तुलनात्मक विश्लेषण का मेरुदण्ड बना दिया। आज राजनैतिक संस्कृति ही एकमात्र ऐसी अवधारणाहैं जो राजनीति विज्ञान में तुलनात्मक अध्ययन का विकसित दृष्टिकोण प्रस्तुत करने में सक्षम हैं।
राजनैतिक संस्कृति की अवधारणा, संस्कृति के विचार पर आधारित हैं। संस्कृति में किसी देश के लोगों के व्यवहार, मान्यताएं,विश्वास, स्वामी भक्ति, साहित्य, परम्पराएं, कला-कौशल, सामाजिक मूल्य, नैतिकता आदि बातें शामिल होती हैं।” इसी तरह राजनैतिक विद्वानों ने राजनैतिक संस्कृति को राजनैतिक समाज के मूल्यों, विचारों व आदर्शों का समूह कहा हैं। इस अवधारणा को सबसे पहले ऑमण्ड ने 1956 में प्रयुक्त किया था। सामान्य तौर पर राजनैतिक संस्कृति किसी राज्य के अन्दर बसने वाले लोगों की उन सामूहिक अन्तर्भावनाओं का नाम हैं जिन्हें राजनैतिक व्यवस्था की प्रतिक्रियाओं के रूप में व्यक्त किया जाता हैं। इसे विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने ढंग से निम्न तरह से परिभाषित किया हैं :
- लूशियन पाई के अनुसार- “राजनैतिक संस्कृति उन अभिवृतियों, विश्वासों तथा मनोभावों का समुच्चय हैं, जो राजनैतिक प्रक्रिया को अर्थ व सुव्यवस्था प्रदान करता हैं। वह राजव्यवस्था के व्यवहार को नियन्त्रित करने वाली अन्तर्निहित पूर्व धारणाओं तथा नियमों की भी व्याख्या करता हैं।”
- ऑमण्ड व पॉवेल के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति किसी भी राजनैतिक प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति व्यक्तियोंके व्यवहारों तथा अभिमुखीकरण की पद्धति हैं।”
- फाईनर के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति मुख्यत: शासकों, राजनैतिक संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं की वैधता से सम्बन्धित हैं।”
- नेटल के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति का अर्थ राज्य-सत्ता से सम्बन्धित ज्ञान मूल्यांकन और संचारण के प्रतिमान या प्रतिमानों में से हैं।”
- डेविज व लेविस के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति किसी निर्दिष्ट समाज के अन्दर राजनैतिक कार्यों के प्रति अभिमुखीकरण की पद्धति हैं।
- पारसन्स के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति का सम्बन्ध राजनैतिक उद्देश्यों के प्रति किया गया अनुकूलन है।”
- राय मैक्रीडस के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति का अर्थ एक मानव-समूह के द्वारा स्वीकृत सामान्य लक्ष्यों और सामान्य नियमों से होता है।”
- सिडनी वर्बा के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति में अनुभववादी विश्वासों, अभिव्यकतात्मक प्रतीकों और मूल्यों की वह व्यवस्था शामिल है जो उस दशा को परिभाषित करती है जिसमें राजनैतिक क्रिया सम्पन्न होती है।”
- रोवे के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति व्यक्तिगत मूल्यों, विश्वासों तथा संवेगात्मक अभिवृतियों का प्रतिमान है।”
- रोज एवं डोगन के अनुसार-”राजनैतिक संस्कृति की अवधारणा ऐसे मूल्यों, विश्वासों और मनोभावों को संक्षेप में व्यक्त करनेकी सुविधाजनक रीति है, जो राजनैतिक जीवन को अर्थ प्रदान करती है।”
- बीयर व उलम के अनुसार-”समाज की सामान्य संस्कृति के कई पहलुओं का सम्बन्ध इस बात से होता है कि सरकार किस प्रकार चलाई जानी चाहिए और इसे क्या करने की कोशिश करनी चाहिए। संस्कृति के इस क्षेत्र को हम राजनैतिक संस्कृति कहते हैं।”
इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि राजनैतिक संस्कृति, राजनैतिक व्यवस्था के प्रति लोगों की अभिवृति व रुचि है जो राजनैतिक विश्वास की भावना पर आधारित है।
राजनैतिक संस्कृति राजनैतिक समाज के लोगों की राजनैतिक व्यवस्था के प्रति अभिरुचियों, मूल्यों व राजनैतिक समाज के लोगों की राजनैतिक व्यवस्था के प्रति अभिरुचियों, मूल्यों व विश्वासों पर आधारित है। राजनैतिक संस्कृति में आत्मपरकता का गुण होने के कारण यह व्यक्तिगत अभिविकास या अनुकूलन का हिस्सा होती है। यह अनुकूलन ज्ञानात्मक, भावनात्मक तथा मूल्यात्मक होता है। ज्ञानात्मक अनुकूल का सम्बन्ध लोगों की राजनैतिक व्यवस्था के प्रति जानकारी से, भावनात्मक अनुकूलन का सम्बन्ध लोगों के द्वारा राजनैतिक व्यवस्था के मूल्यों व निर्णयों से होता है। राजनैतिक संस्कृति के निर्धारक तत्व कुछ इस प्रकार हैं:-
- इतिहास ,धार्मिक, विश्वाश,भगौलिक परिस्थितिया , समाजिक-आर्थिक परिवेश , विचारधाराएँ, शिछा , भाषा तथा रीती-रिवाज आदि राजनैतिक संस्कृति के निर्धारक तत्व हैं।
- किसी भी व्यवस्था की राजनैतिक संस्कृति का निर्माण एवं विकास उस देश की ऐतिहासिक परम्पराओं व प्रचलित मूल्यात्मक प्रणालियों के द्वारा ही होता हैं।
- धर्म राजनैतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- देश की भौगोलिक स्थिति, उपलब्ध संसाधन, जनसंख्या की प्रकृति की उस देश की राजनैतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।
- देश की सामाजिक, धार्मिक, जातिगत विभिन्नता, औद्योगीकरण व रूढ़िवादिता आदि से भी राजनैतिक संस्कृति की प्रकृति निर्धारित होती हैं।
- राजनैतिक संस्कृति के निर्माण में विचारधाराओं का प्रभाव महत्वपूर्ण होता हैं।
- वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति, मीडिया व प्रेस, शिक्षा का स्तर, भाषा, रीतिरिवाज आदि राजनैतिक संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
राजनैतिक संस्कृति एक विकासशील व गत्यात्मक अवधारणा है। इसकी प्रकृति परिवर्तनशील तथा विकासोन्मुखी होती है। इसका निर्माण ऐतिहासिक विकास की पृष्ठभूमि में होता है। राजनैतिक व्यवहार और राजनैतिक संस्कृति का आपस में गहरा सम्बन्ध है। इससे व्यक्ति और समूह के राजनैतिक आचरण का बोध होता है। यह प्रगतिशील और समन्वयकारी होने के कारण रुढ़िवादी समाज की सांस्कृतिक विरासत होती है। यह राजनैतिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाले दबाव समूह व राजनैतिक दलों की गतिविधियों से भी काफी प्रभावित होती रहती है। इसके ऊपर कुछ आन्तरिक तथा बाह्य शक्तियों का भी प्रभाव पड़ता है। राजनैतिक संस्कृति में समयानुसार परिवर्तन, संशोधन, सुधार एवं विकास होता रहता है। राजनैतिक संस्कृति का विशेष स्वभाव इसकी गतिशीलता है, जड़ता नहीं। एक राजनैतिक संस्कृति कई उप-संस्कृतियों को भी समेटे रखती है। इसे राजनैतिक एकता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इसके अनेक रूप होते हैं और यह राजनैतिक व्यवहार को अंगीकार करने में सक्षम होती है।
राजनैतिक संस्कृति की इस प्रकृति को इसकी विशेषताओं में भी देखा जा सकता है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-
- राजनैतिक संस्कृति एक व्यक्तिपरक धारणा है, क्योंकि इसमें लोगों के विचारों विश्वासों व मूल्यों का अध्ययन किया जाता है।
- राजनैतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है, क्योंकि यह राजनैतिक व्यवहार के अनेक तत्वों को अपने में समेटे रहती है।
- राजनैतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का ही एक अंश होती है, क्योंकि इसमें लोगों के राजनैतिक मूल्य व विश्वास ही शामिल होते हैं।
- राजनैतिक संस्कृति का स्वरूप प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था में अलग-अलग होता है, क्योंकि राजनैतिक संस्कृति के घटकों को प्रत्येक देश में अन्तर पाया जाता है।
- राजनैतिक संस्कृति एक अमूर्त नैतिक अवधारणा है।
- राजनैतिक संस्कृति एक गत्यात्मक व परिवर्तनशील अवधारणा है।
- राजनैतिक संस्कृति व राजनैतिक विकास में गहरा सम्बन्ध होता है।
- राजनैतिक संस्कृति राजनैतिक समाजीकरण व आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है। अड़ियल प्रकार की राजनैतिक संस्कृति राजनैतिक आधुनिकीकरण, समाजीकरण व विकास का मार्ग अवरुद्ध कर देती है।
- भूगोल, परम्पराएं, इतिहास, आदर्श, जीवन मूल्य, जलवायु, सामाजिक तथा आर्थिक तत्व, राष्ट्रीय प्रतीक आदि तत्व राजनैतिक संस्कृति के निर्माण में योगदान देते हैं।
- राजनैतिक संस्कृति जन-सामान्य के राजनैतिक व्यवहार को प्रभावित करती है।
- सन् 1950-60 के दशक में विभिन्न विचारकों ने अपने देश की राजनैतिक व्यवस्था का अध्ययन राजनैतिक संस्कृति उपागम द्वारा प्रारम्भ किया।
- लोकततन्त्नात्मक शासन प्रणाली के लिए उचित एवं उपयुक्त सामाजिक परिवेश राजनैतिक संस्कृति के द्वारा ही विकसित किया जा सकता हैं।
- राजनीति संस्कृति वे लोकतंत्र के मध्य सम्बन्धों पर सर्वप्रथम आनुभविक अनुसंधान गेब्रियल आमण्ड व सिडनी बर्बा ने 1963 ई. में लिखित प्रसिद्ध रचना "पांच देशों में नागरिक
- संस्कृति, राजनैतिक दृष्टिकोण और लोकतंत्र" के रूप में प्रस्तुत किया।
राजनैतिक व्यवस्था के तीन घटक होते हैं- मूल्य, विश्वास और संवेदनात्मक अभिवृत्तियां। प्रत्येक देश की राजनैतिक संस्कृति का निर्माण इन्हीं घटकों से होता है। इन घटकोंकी अनुक्रिया ही किसी राजनैतिक व्यवस्था को सामान्य या विशिष्टता की तरह ले जाती है। इसी कारण राजनैतिक संस्कृति कोराजनैतिक व्यवस्था की प्रकृति का नियामक कहा जाता है। राजनैतिक संस्कृति के घटकों का मूल्यांकन करके ही राजनैतिकसंस्कृति की प्रकृति का भी निर्धारण किया जा सकता है। ये घटक हैं:-
- मूल्य अभिवृत्तियां
प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक बातों में रुचि रखने वाले सदस्यव्यवस्था के मूल्यों से अवश्य प्रभावित होते हैं। ये अभिवृतियां राजनैतिक समाज के सार्वजनिक लक्ष्यों से सम्बन्धित विश्वासव आस्थाएं होती हैं। प्रत्येक राजनैतिक समाज में कुछ राजनैतिक मूल्य होते हैं, जैसे एक निश्चित अवधि के बाद निर्वाचन होने चाहिए; जनता का विश्वास खो देने पर सरकार को अपना पद छोड़ देना चाहिए, किसी व्यक्ति को कानून के बाहर कोई दण्ड नहीं मिलना चाहिए। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि सभी लोगों की रुचि इन मूल्यों में समान हो। किसी की रुचि तो सामाजिक न्याय व समानता में हो सकती है, किसी की रुचि राजनैतिक स्थिरता में हो सकती है तथा किसी की कानून केशासन में हो सकती है। इसलिए राजनीति संस्कृति के आधार पर राजनैतिक व्यवस्थाओं की
कार्यप्रणाली या व्यवहार में भिन्नता का कारण मूल्य अभिरुचियों में पाया जाने वाला अन्तर है। जब जनता तथा शासक वर्ग की मूल्य अभिवृतियां असमानहो जाती हैं तो राजनैतिक व्यवस्था पर संकट के बादल छा जाते हैं।
2. विश्वास अभिवृतियां
जनता की राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विश्वास की अभिवृतियां राजनैतिक मूल्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। इसके अन्तर्गत वे तथ्य हैं कि लोगों का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विश्वास की मात्रा तथा प्रकृति क्या है। किसी व्यक्ति को वोट डालने में विश्वास हो सकताहै तथा किसी का नहीं। इस विश्वास के आधार पर ही शासक व शासित बने पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं। इसी विश्वास में अन्तर आ जाने पर राजनैतिक संस्कृतियों में मात्रात्मक अन्तर आ जाता है और जनता का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विश्वास का स्वरूप भी बदल जाताहै। इसी से राजनैतिक व्यवस्था का संचालन प्रभावित होता है। अत: राजनैतिक विश्वास ही राजनैतिक संस्कृति के माध्यम से राजनैतिक व्यवस्था का नियामक व संचालन बना रहता है।
3. संवेदनात्मक अभिवृतियां
इसका सम्बन्ध लोगों की राजनैतिक व्यवस्था के प्रति मनोवृतियोंया मनोभावों से होता है। किसी व्यक्ति को तो अपने देश या व्यवस्था पर गर्व हो सेता है तो किसी को घृणा भी हो सकती है। किसी देश में दबाव समूहों को हेय दृष्टि से देखा जाता है तो किसी देश में उसका सम्मान किया जाता है। 1971 मेंभारत-पाक विभाजन भी संवेदनात्मक मनोवृति का परिणाम था। ब्रिटेन में लोगों का संसदीय शासन प्रणाली में विश्वास है और वे उसको सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, जबकि भारत में संसदीय शासन प्रणाली के प्रति लोगों का दृष्टिकोण अधिक अच्छा नहीं है। इसका प्रमुख कारण संवेदनात्मक अभिवृतियों में पाया जाने वाला अन्तर ही है।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि राजनीति संस्कृति के घटकों में पाया जाने वाला अन्तर राजनैतिक संस्कृति में मात्रात्मक भेद पैदा करता है और यही भेद आगे चलकर राजनैतिक व्यवहार की भिन्नता के रूप में प्रकट होता है।
आमण्ड ने चार प्रकार की राजनैतिक संस्कृतियों का उल्लेख किया हैं-
- आंग्ल अमेरिकी राजनैतिक व्यवस्था,
- महाद्वीपीय यूरोपीय राजनैतिक व्यवस्था,
- गैर-पश्चिमी अथवा पूर्व औद्योगिक राजनैतिक व्यवस्था तथा
- सर्वाधिकारवादी राजनैतिक व्यवस्था।
वाइसमैन ने तीन प्रकार की विशुद्ध राजनैतिक संस्कृतियों
1) संकुचित,
2) पराधीन,
3) सहभागी एवं
तीन मिश्रित राजनैतिक संस्कृतियों यथा
- संकुचित पराधीन,
- सहभागी तथा
- संकुचित सहभागी राजनैतिक संस्कृति का उल्लेख किया हैं।
राजनैतिक संस्कृति में पाई जाने वाली मात्रात्मक विशेषताएं अपने अनेक रूपों का परिचय स्वयं ही दे देती हैं। प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था में लोगों का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति लगाव, विश्वास व मूल्य अलग अलग ढंग का होता हैं। कहीं पर लोग राजनैतिक व्यवस्था के प्रति गहरा लगाव रखते हैं और राजनैतिक प्रक्रिया में सक्रिय सहभागिता रखते हैं तो कहीं पर इसका सर्वथा अभाव पाया जाता हैं।
राजनैतिक समाज के सदस्यों की राजनैतिक सहभागिता ही प्राय: राजनैतिक संस्कृति की प्रतीक का निर्धारण करती हैं। निरन्तरता या सातत्य की दृष्टि से राजनैतिक संस्कृति परम्परागत व आधुनिक दो प्रकार की हो सकती हैं। जहां परम्पर व आधुनिकता में संघर्ष चलता रहता हैं वहां पर राजनैतिक संस्कृति का नवीन रूप भी अस्तित्व में आ जाता हैं जिसे मिश्रित संस्कृति कहा जा सकता हैं। विचारवादियों की दृष्टि में राजनैतिक संस्कृति-प्रजातन्त्रीय, साम्यवादी, समाजवादी व एकतन्त्रवादी हो सकती हैं।
भौगोलिक आधार पर यह पर्वतीय, मैदानी, सामुद्रिक, आकाशीय तथा धु्रवीय हो सकती हैं। विश्व में पूंजीवादी, सर्वहारा, काली, पीली या श्वेत संस्कृतियों का भी इतिहास में वर्णन मिलता हैं। एकरूपता की दृष्टि से इसे संकुचित, प्रजाभावी तथा सहभागी संस्कृति में बांटा जाता हैं। इस विभाजन का आधार लोगों का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति अभिमुखीकरण माना जाता हैं। एस. ई. फाइनर ने राज-संस्कृति को प्रौढ़, विकसित, निम्न तथा पूर्व-फ्रांसीसी क्रान्ति सम-न्यूनतम स्तरीय चार भागों में बांटा हैं। ऑमण्ड ने भी राजव्यवस्थओं में जनसहभागिता के संदर्भ में इसे तीन भागों में बांटा हैं। उसने आगे राजनैतिक संस्कृति के तीन अन्य प्रकार भी बताए हैं। इससे स्पष्ट हो जाता हैं कि राजनैतिक संस्कृति विभिन्न आधारों पर अनेक प्रकार की होती हैं।
राजनैतिक संस्कृति के प्रमुख रूप निम्नलिखित हो सकते हैं :-
- संख्या व शक्ति के आधार पर
इस आधार पर राजनैतिक संस्कृति के दो भेद माने जाते हैं :-
अभिजनात्मक संस्कृति – यह संस्कृति इस मान्यता का परिणाम हैं कि प्रत्येक शासन में गिने चुले लोग ही सत्ता के वास्तविक धारक होते हैं और उनका राजनैतिक व्यवस्था तथा लोगों की जीवन शैली पर व्यापक प्रभाव होता हैं। भारत में नेहरू व गांधी जी ने जिस संस्कृति को जन्म दिया वह अभिजनात्मक होते हुए भी उससे अधिक थी। यह संस्कृति समाज में विशिष्ट वर्ग के हितों की पोषक होने के साथ-साथ जनसामान्य के प्रति अपना दृष्टिकोण ईमानदारी को बनाए रखती हैं।
जनसंस्कृति – यह संस्कृति लोकतन्त्रीय अवस्थाओं को समेटे हुए हैं। यह जन-आस्था एवं रचनात्मक वृत्तियों की द्योतक हैं। इसमें राजनैतिक प्रक्रिया में जनसाधारण की उपेक्षा नहीं की जा सकती और प्रत्येक स्तर पर जनता की भावनाओं की ख्याल रख जाता हैं। विकसित देशों में यह अभिन्न संस्कृति के साथ ही मिलकर चलती हैं। विकासशील देशों में इस प्रकार की संस्कृति का अधिक प्रचलन बढ़ रहा हैं।
2. निरन्तरता व सातत्व की दृष्टि के आधार पर
इस आधार पर राजनैतिक संस्कृति को तीन भागों में बांटा जा सकता हैं:-
- परम्परागत राजनैतिक संस्कृति (Traditional Political Culture)
- आधुनिक राजनैतिक संस्कृति (Modern Political Culture) :-
- मिश्रित राजनैतिक संस्कृति (Mixed Political Culture)
परम्परावादी संस्कृति का सम्बन्ध जनसामान्य से होता हैं, जबकि आधुनिक राजनैतिक संस्कृति का सम्बन्ध विशिष्ट वर्गीय शासकों से होता हैं। ब्रिटेन तथा भारत में मिश्रित संस्कृति पाई जाती हैं। क्योंकि यहां परम्परा व आधुनिकता का सुन्दर मिश्रण हैं। ब्रिटेन में कुलीनतन्त्रीय राजनैतिक ढांचे का तादात्म्य ऐसे सामाजिक व आर्थिक ढांचे के साथ किया गया हैं कि उसमें विशिष्ट वर्ग व जनसाधन दोनों के हितों का पोषण हो जाता हैं। विकासशील देशों में इसी प्रकार की संस्कृति हैं। सर्वाधिकारवादी देशों में विशिष्ट वर्गीय हितों की पोषक आधुनिक व परम्परावादी दोनों संस्कृतियां ही पाई जाती हैं। ऑमण्ड-कोलमैन का मानना हैं कि सभी राजनैतिक समाजों में राजनैतिक संस्कृति का मिश्रित रूप ही पाया जाता हैं।
3. राजनैतिक सहभागिता के आधार पर
इस आधार पर वर्गीकरण करने वाले प्रमुख विद्वान ऑमण्ड व वर्बा हैं। उनका कहना हैं कि प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था में जनता सहभागिता चाहती हैं। लेकिन सभी व्यवस्थाओं में पूर्ण व सक्रिय राजनैतिक सहभागिता का होना आवश्यक नहीं हैं। इसलिए इस आधार पर कि जनसहभागिता का स्तर क्या हैं। लोग राजनीति के प्रति उदासीन हैं या सक्रिय, राजनैतिक संस्कृति को शुद्ध रूप में तीन भागों में बंट जाता हैं :-
- संकीर्ण-राजनैतिक संस्कृति – इस प्रकार की राजनैतिक संस्कृति कम विकसित तथा परम्परागत राजनैतिक समाजों मेंं पाई जाती हैं। इसका प्रमुख कारण यह होता हैं कि इन समाजों में कम विशेषीकरण के कारण सभी भूमिकाएं शासक-वर्ग द्वारा ही अदा की जाती हैं। इसमें जनता राजनीति के प्रति प्राय: उदासीन ही रहती हैं। राजनैतिक नेता ही धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक भूमिकाओं का एक साथ निर्वहन करते हैं। इसमें जनता की तरफ से राजनीति के प्रति कोई मांग या निवेश नहीं होता और न ही निर्गतों की तरफ उसका ध्यान रहता हैं।
- पराधीन-राजनैतिक संस्कृति – इस प्रकार की राजनैतिक संस्कृति का जन्म उन समाजों में होता हैं, जहां जनता राजनीति के प्रति अर्कमण्य रहती हैं और वह शासकीय आदेशों को विवशतावश चुपचाप सहन करती हैं और उनका पालन करती रहती हैं। यह राजनैतिक संस्कृति आश्रित उपनिवेशों में ही विद्यमान थीं। इस प्रकार की संस्कृति में जनता निवेशों से तो दूर रहती हैं, लेकिन निर्गतों पर ध्यान रखती हैं। इस संस्कृति में लोगों का राजनैतिक अभिमुखीकरण व्यवस्था से लेने के स्तर पर ही सक्रिय होता हैं। सार रूप में इसमें जनता की राजनैतिक सक्रियता प्राय: सीमित प्रकृति की होती हैं। कई बार इस प्रकार की संस्कृति निर्गतों के परिणामों के रूप में महान् आन्दोलनों की जनक भी बन जाती हैं। इस संस्कृति को प्रजामूलक संस्कृति भी कहा जाता हैं।
- सहभागी-राजनैतिक संस्कृति – इस प्रकार की राजनैतिक संस्कृति उन समाजों में पाई जाती हैं, जहां जनता को राजनैतिक सहकारिता के पूरे अवसर प्रदान किए जाते हैं। इस संस्कृति में जनता निदेशों व निर्गतों पर समान नजर रखती हैं। इस प्रकार की संस्कृति विकसित देशों में पाई जाती हैं। इसमें लोगों का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति लगाव व विश्वास उच्च स्तर का बना रहता हैं। इसमें जनता अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनी रहती हैं। इसे प्रजातन्त्रीय राजनैतिक संस्कृति भी कहा जाता हैं।
उपरोक्त शुद्ध रूपों के अतिरिक्त भी मिश्रित रूप में ऑमण्ड व वर्बा ने राजनैतिक संस्कृति को तीन भागों में बांटा हैं :-
1. संकीर्ण-पराधीन राजनैतिक संस्कृति
2. पराधीन-सहभागी राजनैतिक संस्कृति
3. संकीर्ण सहभागी राजनैतिक संस्कृति।
a) संकीर्ण-पराधीन राजनैतिक संस्कृति – यह संस्कृति मिश्रित प्रकृति की होती हैं। इसमें दोनों प्रकार की राजनैतिक संस्कृतियों की विशेषता पाई जाती हैं। इसमें दोनों प्रकार के व्यक्ति पाए जाते हैं। कुछ व्यक्ति तो राजनीति के प्रति लगाव रखते हैं और कुछ दूर रहते हैं।
b) पराधीन-सहभागी राजनैतिक संस्कृति – यह संस्कृति पराधीन राजनैतिक संस्कृति तथा सहभागी राजनैतिक संस्कृति के गुणों से परिपूर्ण रहती हैं। यह संस्कृति उन समाजों में पाई जाती हैं जहां लोगों का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति लगाव होता हैं। इसमें कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो केवल निवेशों और निर्गतों के प्रति ही रुचि रखते हैं। इस संस्कृति का उदय राजनैतिक व्यवस्था में जनसहभागिता की वृद्धि की शुरुआत के साथ हुआ।
c) संकीर्ण-सहभागी राजनैतिक संस्कृति – इस प्रकार की संस्कृति में शासक वर्ग ही जनता को प्रभावित नहीं करता बल्कि जनता भी शासकीय नीतियों को प्रभावित करती हैं। इसमें जन इच्छा का पूरा सम्मान किया जाता हैं। यह संस्कृति संकीर्ण व सहभागी राजनैतिक संस्कृति दोनों की विशेषताएं समेटे रहती हैं।
4. गुणात्मक स्वरूप के आधार पर
एस.ई. फाइनर ने अपनी पुस्तक ‘The Man on Horxe Back’ में राजनैतिक संस्कृति के चार प्रकार बताये हैं :-
- प्रौढ़ राजनैतिक संस्कृति – यह संस्कृति ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया तथा नीदरलैण्ड में पाई जाती हैं। इसमें राजनैतिक सर्वसम्मति व संगठन की मात्रा बहुत ऊँची होती हैं। इसमें सैनिक शक्ति का प्रयोग करने से परहेज किया जाता हैं। इसके अन्तर्गत शासन की सर्वोच्च सत्ता पर नागरिक सरकार का ही अधिकार रहता हैं। यह संस्कृति राजनैतिक स्थिरता वाले देशों में भी पाई जाती हैं।
- विकसित राजनैतिक संस्कृति – यह संस्कृति मिस्र, अल्जीरिया और क्यूबा जैसे देशों में पाई जाती हैं। इस प्रकार की राजनैतिक संस्कृति राजनैतिक स्थिरता के साथ-साथ सैनिक खतरों से भी भयभीत रहती हैं। ऐसे परिवेश में आम जनता को शक्ति का भय दिखाकर शान्त कराने का प्रयास किया जाता हैं, लेकिन क्रान्ति या तख्ता पलट की संभावनाएं सदा ही बनी रहती हैं। इसमें नागरिक सरकार पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं।
- निम्न राजनैतिक संस्कृति – यह सस्कृति उन राजनैतिक समाजों में पाई जाती हैं, जहां लोकमत सशक्त नहीं होता। इसी कारण इसमें जन-विरोध की भावना का अभाव पाया जाता हैं। इसकी संस्कृति वाले देशों में राजनैतिक संस्थाएं बहुत ही कमजोर स्थिति में रहती हैं। इसमें जनता सुशासन की कामना तो रखती हैं, लेकिन उनका यह स्वप्न पूरा नहीं होता। इस व्यवस्था में लोकतन्त्रीय आस्थाओं पर सैनिक तानाशाही का शिकंजा कसा रहता हैं। जनाधार के बंटे होने के कारण यह संस्कृति वियतनाम, सीरिया, बर्मा, इन्डोनेशिया, पाकिस्तान आदि देशों में पाई जाती हैं।
- पूर्व-फ्रांसीसी क्रांति-सम अल्पस्तरीय राजनैतिक संस्कृति – यह संस्कृति उन देशों में पाई जाती हैं, जहां सरकार जनता के विचारों की मनमानी अवहेलना कर सकती हैं। फ्रांसीसी क्रांति से पहले फ्रांस में यह संस्कृति विद्यमान थी। आज इस संस्कृति के लिए कोई स्थान नहीं हैं।
5. शासन-व्यवस्था जनित संवेगों के आधार
इस आधार पर ऑमण्ड ने राष्ट्रों की राजनैतिक व्यवस्था, भौगोलिक प्रणाली, विकासशील प्रवृति आदि के आधार पर राजनैतिक संस्कृति को चार भागों में बांटा हैं :-
- आंग्ल-अमेरिकी राजनैतिक व्यवस्था – यह संस्कृति ब्रिटेन और अमेरिका में पाई जाती हैं। इसमें राजनैतिक साध्यों व साधनों पर आम सहमति पाई जाती हैं। इसमें आदिकालीन व वर्तमान धर्म-निरपेक्ष मान्यताओं का सुन्दर मेल होता हैं। इस संस्कृति से सम्बन्धित देशों में वैयक्तिक स्वतन्त्रता, अधिकार व सुरक्षा को विशेष म्ळत्व दिया जाता हैं। इसमें समाज का स्वरूप बहुलवादी होता हैं। इसमें सत्तावादी शासन की सम्भावनाएं कम होती हैं और यहां पर भूमिकाओं का स्थायित्व भी रहता हैं। इसमें विशेषीकरण तथा विभेदीकरण का गुण भी पाया जाता हैं।
- महाद्वीपीय-यूरोपीय राजनैतिक व्यवस्था – यह राजनैतिक संस्कृति फ्रांस, इटली, स्वीडन, नार्वे, जर्मनी आदि कम विकसित पश्चिमी लोकतन्त्रीय देशों में पाई जाती हैं। इस राजनैतिक संस्कृति में न तो जनता अपने नेताओं के प्रति पूर्ण आश्वस्त होती हैं और न ही नेतागण अपने लोगों पर पूर्ण रूप से निर्भर रहते हैं। इस प्रकार की संस्कृति में जनता की बजाय राजनैतिक प्रक्रिया में दबाव समूहों की भूमिका अधिक रहती हैं। इस प्रकार की संस्कृति कई उप-संस्कृतियों को भी जन्म देती हैं।
- अपश्चिमी एवं आंशिक रूप से पूर्व औद्योगिक राजनैतिक व्यवस्था – इस प्रकार की व्यवस्था में शासन प्रणाली पर एक ही दल का प्रभुत्व रहने के कारण राजनैतिक संस्कृति की एकता परिलक्षित होती हैं। इसमें शक्ति के आधार पर सत्ता व शासन को औचित्यपूर्ण बनाए रखा जाता हैं। इसमें नौकरशाही का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसमें जन-सहभागिता के नाम पर जनता के साथ धोखा किया जाता हैं। इसमें अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता हैं। इस प्रकार की संस्कृति चीन व अन्य साम्यवादी देशों में पाई जाती हैं।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता हैं कि विभिन्न आधारों पर राजनैतिक संस्कृति अनेक प्रकार की होती हैं। उपरोक्त वर्गीकरण के अतिरिक्त भी कुछ विद्वानों द्वारा राजनैतिक संस्कृति के कुछ अन्य रूप भी बताए हैं। उन्होंने पंथ-निरपेक्ष, नागरिक, सैद्धान्तिक, समरूप, खण्डित आदि राजनैतिक संस्कृतियों का भी वर्णन किया हैं। लेकिन ये रूप भी उपरोक्त विवरण के अन्तर्गत ही घुलकर रह जाते हैं। इनके पृथक विवेचन की कोई आवश्यकता नहीं हैं। यह बात तो सत्य हैं कि प्रत्येक देश किसी न किसी प्रकार की राजनैतिक संस्कृति से जुड़ा हुआ हैं। आज सभी देशों में राजनैतिक संस्कृति के साथ-साथ उपराजनैतिक संस्कृतियां भी उभर रहीं हैं। अत: ऑमण्ड-कोलमैन का कथन सही हैं कि आज विश्व में राज-व्यवस्थाओं में राजनैतिक संस्कृति का मिश्रित रूप ही पाया जाता हैं। राजनैतिक संस्कृति तुलनात्मक राजनैतिक संस्थाओं के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण विचारधारा हैं।