UNIT 4
राजनैतिक विकास एवं आधुनिकरण
विकास से आशय उच्चतर, पूर्णतर और अधिकतम परिपक्वतापूर्ण स्थिति की ओर बढ़ना है। यह एक विशिष्ट दिशा में परिवर्तन की गति है। इस संकल्पना को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नवोदित देशों के मार्गदर्शन के उद्देश्य से विकसित किया गया, जो अपने सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक विकास की और अग्रसर थे। लेकिन विकास के सन्दर्भ में आरम्मिक संकेत उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान और बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में मिलते हैं।
राजनैतिक विकास की संकल्पना मुख्यत: उदारवादी परम्परा की देन है । राजनीति विकास की संकल्पना शुरू-शुरू मैं अमेरिकी राजनीति विज्ञान के अंतर्गत 1960-1970 के मध्य ‘प्रिसन्टन विश्वविद्यालय मैं हुआ। (इसका उद्देश्य नवोदित एवं विकासशील देशों की राजनैतिक प्रक्रिया का विश्लेषण करना था। )
राजनैतिक विकास की प्रक्रिया को राज्य के अस्तित्व से ही प्रारंभ माना जाता है| राजनैतिक विकास अपने आप में लक्षय नहीं है, वह एक अनवरत प्रक्रिया है| पाई की दृष्टि में राजनैतिक विकास की दिशा का पहला कदम राष्ट्रवाद आधारित राज्य व्यवस्था का विकास करना था जो तभी संभव था जब आदर्श लोकतांत्रिक संस्कृति का प्रसार धीरे-धीरे सभी देशों में हो जाए|
आमंड पावेल- राजनैतिक विकास राजनैतिक संरचनाओ की अभिवृद्धि, विभिन्नीकरण, विशेषीकरण और राजनैतिक संस्कृति का बढ़ा हुआ लोकिकीकरण है|
मैकेंजी- राजनैतिक विकास समाज के उच्च स्तरीय अनुकूलन को संमजित करने की क्षमता है|
जेम्स कोलमैन एवं लुसियन पाई का प्रतिरूप –
- राजनैतिक विकास आर्थिक विकास की राजनैतिक पूर्व शर्त के रूप में- अर्थशास्त्रियों ने राजनैतिक विकास को आर्थिक विकास का परिणाम आना किंतु पाई का मानना है कि यह एक नकारात्मक दृष्टिकोण है|
- औद्योगिक समाजों के लिए विशिष्ट राजनीति के रूप में राजनैतिक विकास- पाई इसे अस्वीकृत करते हुए कहते हैं कि इसमें उन शक्तियों जैसे कारकों की अवहेलना की गई है जो निहित स्वार्थों की प्रधानता के लिए खतरा बन सकते हैं|
- राजनैतिक आधुनिकीकरण के रूप में राजनैतिक विकास- पाई के अनुसार इसकी अवहेलना की गई है कि पिछड़े और विकासशील देशों की अपनी ऐतिहासिक परंपराएं हैं जिन्हें वे हर चीज को पश्चिमी और आधुनिक का अनुकरण कर पाने की खातिर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे|
- राष्ट्रीय राज्य के रूप में राजनैतिक विकास- राष्ट्रवाद राजनैतिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक शर्त तो है लेकिन यह कोई पर्याप्त शब्द नहीं है|
- प्रशासकीय और वैज्ञानिक विकास के रूप में राजनैतिक विकास- प्रशासनिक और कानूनी व्यवस्था का गहरा संबंध है अतः प्रभावपूर्ण नौकरशाही की स्थापना आवश्यक है लेकिन पाई का मानना है कि यदि प्रशासन पर अधिक जोर दिया तो इससे राज्य व्यवस्था में असंतुलन पैदा हो जाएगा|
- बहुसंख्यक जन समुदाय के योगदान के रूप में राजनैतिक विकास- पाई का मानना है कि ऐसे दृष्टिकोण से भ्रष्टाचारी ज़्नोततेजकों का प्रभाव बढ़ जाएगा|
- लोकतंत्र के निर्माण के रूप में राजनैतिक विकास- विकास और लोकतंत्र को परस्पर आबद्ध और अभिन्न नहीं मारनना चाहिए क्योंकि यह दोनों भीन्न बातें हैं|
पाई के अनुसार राजनैतिक विकास के 3 लक्षण-
- समानता (equality) वह प्रक्रिया जिसमें शासित लोग नागरिकों का दर्जा प्राप्त कर लेते है और समानता के स्तर पर शासन की गतिविधियों मैं भाग लेने लगते है|
- क्षमता (capacity) वह प्रवृत्ति जिसमें शासन जनसाधारण की मांगों का सामना करने मे अधिक कार्यकुशल सिद्ध होता है।
- विभेदीकरण (differentiation) वह प्रक्रिया जिसमें राजनैतिक प्रणाली के विशिष्ट कृत्यों को सम्पन्न करने के लिए विशिष्ट सरचनातए उभकर आती है।
- ईस्टन का सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त व दावे के बावजूद आमण्ड की सरचनात्मक एप्रोच पाश्चत्य देशो तक सीमित थी ।
- स्टीफन क्लार्कसन का मार्क्सवादी लेनिनवादी उपागम ‘केवल साम्यवादी देशो के अध्धयन मैं उपयोगी ।
ऐसे मैं तृतीय विश्व के देशों की राज्य -व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए ‘राजनैतिक विकास सिद्धान्त का अध्ययन हुआ।
अधिकांश राजनीतिशास्त्रियों ने राजनैतिक विकास का अर्थ राजनैतिक आधुनिकीकरण से लिया है और 'इस आधार पर राजनैतिक आधुनिकीकरण की तीन विशेषताएँ मानी जाती हैं
- राजनैतिक संरचनाओं के विभेदीकरण मे वृद्धि
- केंद्रीय प्रशासन की कार्यविधियों का निरन्तर विस्तार
- परम्परावादी अभिजन की बढ़ती हुई अवनति
राजनैतिक संरचनाओं मे विविधता के कारन केंद्रीय प्रशासन पर व्यापक समूहों का प्रभाव पड़ने लगता है , जिससे नयी संरचनाओं का विकास होता है, और उसकी छमता मे वृद्धि होती है।
ऐतिहासिक दृस्टि से आधुनिकीकरण की प्रक्रिया दो अवस्थाओं से होकर गुजरती है :-
मर्यादित आधुनिकीकरण, , जिसमें मध्यम वर्ग का उत्थान हुआ तथा निर्णय निर्माण केन्द्रों में उनकी भागीदारी प्रारम्भ हुई तथा वैज्ञानिक प्रगति तथा लौकिकता का विकास भी हुआ।
जन आधुनिकीकरण, जिसमें उत्थान का चरण मध्यम वर्ग से आगे जाकर आम जनता तक पहुंच गया। कई समाज वर्तमान समय में ऐसे हैं, जिन पर ये दोनों प्रक्रियाएँ एक साथ चल रही हैं जिसके कारण राजनैतिक व्यवस्थाओं के समक्ष अत्यधिक दबाव है।
राजनैतिक आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्राचीन सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिबद्धताएँ क्षीण होने अथवा टूटने लगती हैं और मनुष्य समाजीकरण या व्यवहार के नये प्रतिमानों को स्वीकार करने के लिए तत्पर दिखायी देता है। इस प्रक्रिया को लोगों की साक्षरता, शिक्षा का प्रसार, सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय, जनसंचार के बढ़ते साधन आदि के द्वारा मापा जा सकता है।
हंटिग्टन 'राजनैतिक विकास को राजनैतिक संगठनों और क्रियाविधियों का संस्थायन मानते हैं।” यह संस्थायन राजनैतिक व्यवस्था की अनुकूलनशीलता, जटिलता, स्वायत्तता और संसकतता की दिशा और उसके स्तर से प्राप्त होता है। अनुकूलनशीलता का आशय व्यवस्था द्वारा सफलतापूर्वक चुनौतियों से निपटना, जटिलता से आशय राज्य में अलग-अलग कार्यों हेतु अलग-अलग संस्थाओं का होना, स्वायत्तता का आशय राजनैतिक व्यवस्था का अन्य व्यवस्थाओ से स्वतन्त्र होना तथा संसक्तता का आशय व्यवस्था में सहमति का पाया जाना है।
विभिन्न पाश्चात्य राजनीतिशास्त्रियों की रचनाओं का गहन अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि राजनैतिक विकास का अर्थ राजनैतिक आधुनिकीकरण और राजनैतिक संस्थायन दोनों से है। 'राजनैतिक विकास की व्याख्या उस प्रक्रिया के सन्दर्भ में की है जो राजनैतिक व्यवस्थाओं के प्रकार्यों का विस्तार करती है तथा राजनैतिक एकीकरण का वह स्तर जो इन प्रकार्यों के विस्तार के; लिए आंबश्यक है। 'राजनैतिक विकास को आधुनिकीकरण औरं औद्योगीकरण का मिश्रण भी माना जाता है” जिसमें औद्योगीकरण से आशय विज्ञान और तकनीकी का अधिकतम विकास है।
राजनैतिक आधुनिकीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया हैं। जिसके कई आयाम हैं- मनोवैज्ञानिक स्तर पर यह लोगों के मानकों, मूल्यों और अभिवृत्तियों में परिवर्तन है। बौद्धिक स्तर पर यह पर्यावरण के विषय में ज्ञान, साक्षरता व जनसंचार माध्यमों द्वारा इसका प्रसार है। जननांकीय स्तर पर यह लोगों के जीवन स्तर में सुधार से सम्बन्धित है। सामाजिक स्तर पर राजनैतिक व्यवस्था के प्रति निष्ठा तथा आर्थिक स्तर पर कृषि का विकास, औद्योगीकरण का विकास एवं आर्थिक क्रियाकलापों में वृद्धि से सम्बन्धित है।
डेविड एप्टर राजनैतिक आधुनिकीकरण को केन्द्र बिन्दु से परिधि तक भूमिकाओं का स्थानान्तरण मानते हैं। उन्होंने इसकी चार अवस्थाओं को चिन्हित किया है –
(1) सम्पर्क व नियन्त्रण की अवस्था, जिसमें उत्साह व साहस से कार्य करने की इच्छा प्रबल होती है। इस प्रकार की अवस्था में प्रौद्योगिकी का विस्तार, व्यापार के नए अवसरों का सृजन तथा प्रदेशों का अभिग्रहण सम्मिलित है।
(2) अभिक्रिया एवं प्रतिक्रिया की अवस्था, जिसमें पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभाव सम्मिलित है, जिसमें विदेशी संभ्रान्त वर्ग ने नए शहरी केन्द्रों का निर्माण किया तथा नए प्रकार के सम्बन्धों का विकास और नए हितों का उदय हुआ।
(3) खण्डन और स्वतन्त्रता की अवस्था, जिसमें राजनीति में और अधिक जटिल संघों का उदय हुआ। राष्ट्रवादी आन्दोलनों का आधार व्यापक हुआ तथा चुनौतियों का सामना करने के लिए उपनिवेशी ताकतों ने धीरे -धीरे अपने लोकतन्त्र को स्थापित करने की प्रणाली अपनायी|
(4) नए उत्पादन समाधानों के तलाश की खोज, जिसमें औपनिवेशिक स्वतन्त्रता के बाद नवोदित देशों द्वारा आर्थिक वृद्धि को तीब्र करने तथा परिवर्तन के प्रति जागृत होना समाहित है।
(1) सत्ता की विवेकपूर्णता, जिसमें सत्ता में निर्णय लेने की क्षमता हो। लोगों की मांगों की पूर्ति करने की क्षमता हो तथा अनुचित मांगों को ठुकराने की भी क्षमता का विकास हो।
(2) विभेदीकृत राजनैतिक संरचना, जिसमें प्रत्येक कार्यो के लिए अलग-अलग संस्था की स्थापना हो तथा इन संरचनाओं में प्रत्येक संरचना विशेषीकृत हो तथा इनमें एक-दूसरे से समन्वय भी हो।
(3) राजनैतिक सहभागिता, जिसके अन्तर्गत राजनीति के प्रति लोगों में उदासीनता न हो बल्कि वे व्यापक रूप से निर्णय निर्माण में भाग ले तथा निर्णयों को व्यापक रूप से प्रभावित करें।
जे. एल. वुडवर्ड तथा एल््मो रोपर राजनैतिक सहभागिता में निम्न पॉच गतिविधियों को मानते हैं-
- चुनावों में वोट डालना,
- दबाव समूहों का बतौर सदस्य बनकर सहयोग करना,
- जन प्रतिनिधियों से सीधे सम्पर्क करके,
- राजनैतिक पार्टियों की गतिविधियों में भाग लेना,
- लोगों से सम्पर्क करके जनमत का निर्माण करना।