UNIT 5
राजनैतिक समाजीकरण
5.1. राजनैतिक समाजीकरण की परिभाषा
विश्व की राजनैतिक व्यवस्थाओं का अवलोकन करने से जो महत्वपूर्ण बात हमारे सामने आती है, वह राजनैतिक व्यवहार की विभिन्नता है। इसका प्रमुख कारण राजनैतिक संस्कृतियों में पाए जाने वाले अन्तर को माना जाता है। राजनैतिक संस्कृति की विभिन्नता के कारण ही भारत और ब्रिटेन में संसदीय व्यवस्थाओं का कार्य-व्यवहार आपस में काफी प्रतिकूल है। राजनैतिक संस्कृति का सम्बन्ध राजनैतिक समाज के लोगों के राजनैतिक व्यवस्था के प्रति पाए जाने वाले विचारों व धारणाओं से होता है। इन विचारों और धारणाओं में पाया जाने वाला अन्तर ही विभिन्न राजनैतिक व्यवस्थाओं के राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विचार और धारणाओं में अन्तर का प्रमुख कारण राजनैतिक व्यवहार में अन्तर ला देते हैं। लोगों की राजनैतिक संस्कृति या अमुक राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विचार और धारणाओं में अन्तर का प्रमुख कारण राजनैतिक समाजीकरण ही है, क्योंकि यह राजनैतिक संस्कृति व राजनैतिक व्यवस्था दोनों का नियामक होता है।
राजनैतिक संस्कृति को राजनैतिक व्यवस्था के अनुरूप बनाने में राजनैतिक समाजीकरण का ही विशेष योगदान होता है। राजनैतिक समाजीकरण ही राजनैतिक विकास व राजनैतिक आधुनिकीकरण का भी महत्वपूर्ण उपकरण है। मनुष्य को राजनैतिक मानव बनाने में इसकी भूमिका सबसे बढ़कर है। इसी कारण राजनैतिक समाजीकरण की अवधारणा राजनीति विज्ञान की एक अति महत्वपूर्ण अवधारण बन गई है।
राजनैतिक समाजीकरण की अवधारणा समाजीकरण पर आधारित है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जो मनुष्य को बाल्यकाल से अन्तिम क्षणों तक जीवन के सभी क्षेत्रों का ज्ञान उपलब्ध कराती रहती है। यह एक सतत् प्रक्रिया है। इसका सर्वप्रथम अभिकर्ता परिवार है। मनुष्य जैसे जैसे बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे उसके समाजीकरण का क्षेत्र भी बढ़ता जाता है। संसार में ऐसी कोई औपचारिक संस्था नहीं है,
जहां समाजीकरण की विशेष शिक्षा दी जाती हो। मनुष्य परिस्थितियों से सीखता है। यमनुष्य का समाज के कार्यों के प्रति रुझान बहुमुखी प्रकृति का होता है, इसी कारण समाजीकरण की प्रक्रिया भी बहुमुखी है। समाजीकरण को परिभाषित करते हुए जॉनसन ने लिखा है-”समाजीकरण एक प्रशिक्षण है जो प्रशिक्षार्थी को समाज में उसकी भूमिका निभाना सिखाता है।” गिलिन और गिलिन ने कहा
है-”समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति समूह के स्तरों के अनुसार समूह की गतिविधियों के अनुकूल उसकी परम्पराओं का पालन करके और स्वयं सामाजिक अवस्थाओं की अनुकूल करके, समूह के क्रियाशील सदस्य के रूप में विकसित होता है।” इस तरह समाजीकरण एक सतत् व विस्तृत प्रक्रिया है। राजनैतिक समाजीकरण तो उसका एक विशेष भाग है।
एक संकल्पना व प्रक्रिया के रूप में विभिन्न विद्वानों ने राजनैतिक समाजीकरण की परिभाषाएं दी हैं :-
- ऑमण्ड व पॉवेल के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनैतिक-संस्कृतियों का अनुरक्षण और उनका
परिवर्तन किया जाता है तथा लोगों को राजनीति में दीक्षित करने के लिए उनके विचारों का निर्माण किया जाता है।” - एलेन आर0 बाल के अनुसार-”राजनैतिक व्यवस्था के बारे मेंं लोगों का दृष्टिकोण और विश्वास की स् थापना तथा विकास राजनैतिक
समाजीकरण कहलाता है।” - डेनिस कावानाग के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति राजनीति के प्रति आकर्षित होता है और
उसे सीखता एवं विकसित करता है।” - पीटर एच0मर्कल के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण राजनैतिक व्यवस्था के द्वारा व्यवहार प्रतिमान और राजनैतिक अभिवृत्तियां
प्राप्त करना है।” - ऑस्टीन रेने के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण, समाजीकरण का वह भाग है जो आम आदमी का राजनैतिक व्यवस्था के प्रति
दृष्टिकोण विकसित करता है।” - राबर्टस के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण वह विधि है जिसके द्वारा व्यक्ति राजनैतिक लक्ष्यों के प्रति अभिवृति सीखता
है। समाज विश्वासों और स्तरों को नई पीढ़ी को देता है।” - रुश व अल्थॉफ के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति राजनैतिक व्यवस्था के बारे में
जानकारी प्राप्त करता है जो राजनैतिक ज्ञान और राजनैतिक घटनाओं के विषय में उसके सम्बन्धों को सुनिश्चित करती है।” - रॉबर्ट लेवाइन के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण व्यक्ति की राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक व्यवस्था में सहभागिता
के लिए मूल्यों, आदतों और प्रेरणा का साधन है।” - एरिक रो के अनुसार-”राजनैतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राजनैतिक संस्कृति के मूल्य, विश्वास और भावनाएं आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाए जाते हैं।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजनैतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनैतिक संस्कृतियों को बनाए रखा जाता है और उनमें परिवर्तन भी किया जाता है। यह सीखने की वह प्रक्रिया है जिससे लोगों के राजनैतिक मूल्यों, विश्वासों और भावनाओं का निर्माण होता है। एक संकल्पना के रूप में यह लोगों के राजनैतिक मूल्यों, विश्वासों, अभिवृतियों व विचारों का समुच्यय है।
राजनैतिक समाजीकरण राजनैतिक संस्कृति से जुड़ी हुई प्रक्रिया है जो सतत् रूप में चलती रहती है। यह प्रत्येक देश की राजनैतिक व्यवस्था के व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। यह राजनैतिकरण, राजनैतिक सहभागिता व राजनैतिक भर्ती से अधिक व्यापक संकल्पना भी है। इसमें व्यक्ति की राजनैतिक अभिवृतियों, विश्वासों व मान्यताओं का अभिमुखीकरण शामिल है। इससे ये मान्यताएं मूल्य व विश्वास दूरी पीढ़ी तक भी जाते हैं। इससे व्यक्ति का राजनैतिक समाज के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण बनता है और उसका समाज, राष्ट्र और शासक वर्ग के प्रति निष्ठा का भाव भी विकसित होता है। राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया सामान्यतया आकस्मिक रूप में कार्य करती है। यह इतने शांत और सौम्य रूप में संचालित होती है कि लोगों को इसकी खबर भी नहीं होती। इसके अन्तर्गत वे औपचारिक एवं अनौपचारिक राजनैतिक प्रशिक्षण भी शामिल होते हैं जो राजनैतिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। राजनैतिक समाजीकरण एक ऐसा विचार भी है जो राजनैतिक स्थायित्व के लक्ष्य को प्राप्त करने की भी अपेक्षा रखता है। इसका उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों का प्रशिक्षण और विकास करना है जिससे वे राजनैतिक समाज के अच्छे सदस्य बन सकें। राजनैतिक समाजीकरण व्यक्तियों के मन में मूल्यों, मानकों और अभिविन्यासों का विकास करता है, जिससे उनमें राजनैतिक व्यवस्था के प्रति विश्वास की भावना पैदा हो सके और वे अपने अच्छे कार्यों द्वारा अपने उत्तराधिकारियों पर अमिट छाप छोड़ सके। राजनैतिक समाजीकरण ही वह कड़ी है जो समाज और राजनैतिक व्यवस्था को जोड़ती है।
राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया उस समय से शुरु हो जाती है, जब बच्चा अपने चारों ओर के व्यापक पर्यावरण के बारे में जानने लगता है। इसी अवस्था में ‘बच्चों में’ समाजीकरण का गुण प्रवेश कर जाता है जो आगे चलकर परिवार, स्कूल, स्वैच्छिक समूह, मित्र-मण्डली, राजनैतिक संरचनाओं आदि के द्वारा पूर्ण विकसित हो जाता है। इससे समाजीकरण का प्रकट व अप्रकट रूप उभरने लगता है। जब व्यक्ति के राजनीति के प्रति अभिवृतियां जागृत की जाती हैं तो प्रकट रूप उभरता है। जैसे राजनैतिक दलों द्वारा व्यक्ति को अपने चुनावी कार्यक्रमों में आकर्षित करना व अपने कार्यक्रमों की जानकारी दोनों का कार्य दिया जाता है तो यह प्रकट समाजीकरण होता है। लेकिन जब जनसम्पर्क के साधनों, मित्र मंडलियों, स्कूलों आदि से स्वत: ही बनने लगती है और व्यक्ति को इसका पता बाद में लगता है तो यह अप्रकट राजनैतिक समाजीकरण होता है।
राजनैतिक समाजीकरण के अर्थ एवं प्रकृति को समझ लेने के बाद इसकी विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं :-
- राजनैतिक समाजीकरण एक जीवन भर चलने वाली सतत् प्रक्रिया है।
- यह एक सार्वभौम प्रक्रिया भी है, क्योंकि यह सभी राजनैतिक समाजों में चलती रहती है।
- इसका राजनैतिक संस्कृति से गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि राजनैतिक संस्कृति का अनुरक्षण व अगली पीढ़ी को राजनैतिक संस्कृति
से परिचित कराने का कार्य राजनैतिक समाजीकरण द्वारा ही होता है। - यह प्रकट तथा अप्रकट दोनों रूपों में होता है।
- इसकी प्रक्रिया औपचारिक भी हो सकती है और अनौपचारिक भी।
- यह व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करती है।
- इसका राजनैतिक परिवर्तन से भी गहरा रिश्ता है। यह राजनैतिक परिवर्तन के बाद भी जारी रहता है।
- यह सीखने की प्रक्रिया है, जिसका पर्यावरण से गहरा सम्बन्ध है।
- यह राजनैतिकरण, राजनैतिक सहभागिता व भर्ती से अधिक व्यापक संकल्पना है।
- यह समाजीकरण की प्रक्रिया का ही एक अंग है।
- यह धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है।
- यह समाज और व्यवस्था को जोड़ने वाली कड़ी है।
- राजनैतिक समाजीकरण की प्रथम इकाई परिवार है।
- राजनैतिक समाजीकरण राजनैतिक व्यवस्था के पुनर्निर्माण का आधार होता है।
- राजनैतिक समाजीकरण सत्ताधारकों का जन्मदाता है।
प्रकट या प्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण
जब व्यक्ति प्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनैतिक मूल्यों, संस्कृति, विचारों व झुकाव को ग्रहण करता है तो उसे प्रकट या प्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण कहा जाता है। जब राजनैतिक व्यवस्था सम्बन्धी जानकारी, अभिमुखीकरण और मूल्यों का जान-बूझकर स्पष्ट रूप से सम्प्रेषण या संचरण होता है तो प्रकट राजनैतिक समाजीकरण का जन्म होता है। इस प्रकार के राजनैतिक समाजीकरण में शैक्षिक
संस्थाओं को माध्यम बनाकर राजनैतिक समाज अपने उद्देश्य पूरा करना चाहता है। चीन में माओ की विशुद्ध राजनैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने का यही उद्देश्य है। इसी तरह रूस में भी लम्बे समय तक लेनिन और माक्र्स के क्रान्तिकारी विचारों को स्कूली व कॉलेज स्तर की शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाए रखा गया। इन सभी का उद्देश्य प्रकट राजनैतिक समाजीकरण से ही जुड़ा हुआ है।
अप्रकट या अप्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण
जब राजनैतिक अभिमुखीकरणों, प्रतिमानों और सत्ता सम्बन्धों के प्रति मनुष्य की अभिवृतियों का निर्माण स्वत: ही होता है, तो उसे अप्रकट या अप्रत्यक्ष राजनैतिक समाजीकरण कहा जाता है। यह समाजीकरण स्वत: ही होता जाता है। इसमें प्रायोजित कार्यक्रमों की आवश्यकता
नहींं पड़ती। अप्रकट राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ चलती रहती है। यह जीवन-भर चलने वाली प्रक्रिया या कार्यक्रम है। यह धीरे-धीरे चलता रहता है और इसके परिणाम अधिक स्थाई व दूरगामी होते हैं।
पुरातन राजनैतिक समाजीकरण
यह समाजीकरण रूढ़िवादी राजनैतिक समाजों में पाया जाता है जो राजनैतिक जागृति व चेतना से हीन है। इसमें लोगों का रूढ़िवादी मूल्यों, विश्वासों व परम्पराओं से गहरा लगाव होता है। इसमें राजनैतिक सत्ता में शीघ्रता से बदलाव नहीं होता। परम्परावादी होने के कारण इसमें व्यक्ति विशेष के पास ही राजनैतिक सत्ता रहती है और वही राजनैतिक सत्ता व शक्ति का नियामक बना रहता है। इसमें सामाजिक परिवर्तन व राजनैतिक आधुनिकीकरण को विद्रोह माना जाता है। यह केवल कबाइली समाजों में ही पाया जाता है।
आधुनिक राजनैतिक समाजीकरण
यह समाजीकरण सभ्य व उन्नत राजनैतिक समाजों में पाया जाता है। इसमें व्यक्ति को बाल्यकाल से ही राजनैतिक व्यक्ति बनाने के प्रयास किए जाते हैं। इसमें व्यक्ति को राजनैतिक समस्याओं और राजनैतिक संस्थागत संरचनाओं का ज्ञान शुरु से कराया जाता
है। ताकि वह परिपक्व होकर राजनैतिक सत्ताधारक बन सके। इस प्रक्रिया में पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्रों आदि जनसम्पर्क के साधनों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इससे व्यक्ति में राजनैतिक व्यवस्था के प्रति मूल्य व विश्वासों में वृद्धि होती है और उसकी राजनैतिक चेतना व लगाव इस कद्र तक बढ़ जाता है कि वह राजनैतिक व्यवस्था का अभिन्न अंग बन जाता है।
राजनैतिक समाजीकरण के अभिकरण
राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया प्रत्येक राजनैतिक समाज में चलती रहती है। इसको गतिशील बनाए रखने में अनेक तत्वों का योगदान होता है। ये तत्व सभी राजनैतिक समाजों में समान प्रकृति के नहीं होते। राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया के चलने का कोई निश्चित समय नहीं होता। एलेन बाल ने कहा है कि “राजनैतिक समाजीकरण ऐसी प्रक्रिया नहीं है जो बाल्यकाल के प्रभावग्रस्त योग्य वर्षों तक सीमित हो, बल्कि यह तो सारे व्यस्क जीवन के दौरान चलती रहती है।” इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस लम्बी प्रक्रिया में व्यक्ति पर अनेक कारकों का प्रभाव भी अवश्य पड़ेगा। आइये जानते इसका प्रभाव कहा और कैसे पड़ेगा -
परिवार
परिवार व्यक्ति की प्रथम पाठशाला है। व्यक्ति परिवार से ही अनेक सामाजिक सद्गुणों के साथ-साथ राजनैतिक विचारधारा भी ग्रहण करता है। परिवार का बाल्यकाल में व्यक्ति पर सर्वाधिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।
परिवार ही समाजीकरण व राजनैतिक समाजीकरण का महत्वपूर्ण अभिकरण है। इस अभिकरण की व्यक्ति के राजनैतिक समाजीकरण में भूमिका परिवार विशेष की राजनैतिक व्यवस्था के प्रति लगाव पर निर्भर करती है। आज परिवार की राजनैतिक समाजीकरण में पहले की अपेक्षा भूमिका में वृद्धि हुई है। लेकिन मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कुछ भागों में आज भी गांव राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया से पूरी तरह नहीं जुड़ पाए हैं। जहां आर्थिक विकास की समस्या है, वहां भी राजनैतिक समाजीकरण में परिवार या ग्रामीण समाज का कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं रहता।
शिक्षण संस्थाएं
शिक्षा राजनैतिक व्यवहार का महत्वपूर्ण चर है। बच्चे को राजनैतिक समाज
की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने में स्कूल व कॉलेज स्तर की शिक्षा का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। बच्चा स्कूली स्तर से ही अपने देश की राजनैतिक घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करने लगता है और कॉलेज स्तर तक पहुंचते-पहुंचते उसका राजनीति के प्रति लगाव अधिक हो जाता है। अत: शिक्षण संस्थाएं भी राजनैतिक समाजीकरण का महत्वपूर्ण साधन है।
मित्र-मण्डली
प्रत्येक देश में शिक्षण संस्थाओं के दौरान ही बच्चों के हमजोली या लंगोटिए समूह बन जाते
हैं जो बाद में खुलकर विचार विमर्श करते हैं व गप्पे हांकते हैं। ये समूह अनौपचारिक होते हैं। इन समूहों में बच्चा विचार-विमर्श की गई बात को आत्मसात् कर लेता है। अध्यापक द्वारा बताई गई बातों तथा समाचार-पत्रों से प्राप्त राजनैतिक घटनाओं की जानकारी पर ये हमजोली समूह खुलकर चर्चा करते हैं। चुनावों के समय ये हमजोली समूह कुछ-न-कुछ राजनैतिक गतिविधियां
अवश्य करते हैं।
राजनैतिक समाजीकरण तथा राजनैतिक व्यवस्था में गहरा सम्बन्ध है। राजनैतिक समाजीकरण ही वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति का राजनैतिक व्यवहार भी निश्चित होता है और राजनैतिक व्यवस्था का भी। आज राजनैतिक आधुनिकीकण और विकास का सबसे प्रबल आधार राजनैतिक समाजीकरण ही है। यह राजनैतिक व्यवस्था को स्थिरता व कुशलता प्रदान करने का भी कार्य करता है। यह राजनैतिक व्यवस्था में भर्ती, सहभागिता आदि का नियामक होता है। राजनैतिक समाजीकरण व्यक्तियों के मन में मूल्यों, मानकों और अभिवृतियों का विकास करता है जिससे उनके मन में राजनैतिक व्यवस्था के प्रति गहरा लगाव पैदा होता है। यह सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्थाओं को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। इसके अभाव में न तो राजनैतिक व्यवहार में स्थायित्व आ सकता है और न ही राजनैतिक व्यवस्था में। सर्वाधिकारवादी समाज राजनैतिक समाजीकरण पर विशेष ढंग से जोर देता है। लेनिन ने लिखा है-”शिक्षण संस्थाओं और युवकों के प्रशिक्षण को क्रांतिकारी ढंग से नए सिरे से ढालने पर ही हम सुनिश्चित कर पाएंगे कि युवा पीढ़ी के प्रयासों के परिणामस्वरूप समाज की पुन:र्रचना होगी जो परम्परागत समाज से भिन्न होगी।” इस प्रकार राजनैतिक समाजीकरण के साधनों को आरोपित करने के प्रयास के कारण ही सर्वसत्ताधिकारी राज-व्यवस्था लोकतन्त्रीय राज-व्यवस्था से भिन्न है। अत: निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजनैतिक व्यवस्था भी राजनैतिक समाजीकरण
की नियामक होती है।
उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता हैं कि राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया राजनीति विज्ञान की नई संकल्पना है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उजागर हुई है। यह राजनैतिक विकास व आधुनिकीकरण को गति देती है और राजनैतिक संस्कृति का अनुरक्षण करती है। व्यक्ति के राजनैतिक व्यवहार को राजनैतिक व्यवस्था की प्रकृति के अनुरूप बनाकर यह राजनैतिक व्यवस्था
में स्थायित्व व कार्यकुशलता का गुण भी पैदा करता है। राजनैतिक भर्ती व सहभागिता को क्रियान्वित करके राजनैतिक समाजीकरण ही राजनैतिक विकास व आधुनिकीकरण के लक्ष्य को पूरा करता हैं मनुष्य को राजनैतिक मानव बनाने में राजनैतिक समाजीकरण जो भूमिका अदा करता है, वह कार्य अन्य किसी व्यवस्था द्वारा सम्भव नहीं है। एक सतत् प्रक्रिया के रूप में यह राजनैतिक व्यवहार व राजनैतिक व्यवस्था दोनों का नियामक होता है। इसका राजनैतिक संस्कृति, राजनैतिक विकास, राजनैतिक आधुनिकीकरण व राजनैतिक व्यवहार से गहरा सम्बन्ध रहता है। अपने विभिन्न अभिकरणों के माध्यम से यह नियामक बना रहता है। अत: राजनैतिक समाजीकरण की संकल्पना राजनैतिक विज्ञान में काफी महत्व रखती है।