UNIT 6
राजनैतिक भर्ती
राजनैतिक भूमिकाओं में व्यक्तियों को भर्ती करना राजनैतिक भर्ती प्रक्रिया कहलाता हैं| राजनैतिक भर्ती वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह को सक्रिय राजनैतिक भूमिकाओं में शामिल किया जाता है। सभी राजनैतिक व्यवस्था में विविध प्रकार की भूमिकाएं और संपादन के लिए विभिन्न प्रकार के पद मौजूद होते हैं| इस परिपेक्ष का सबसे अहम सवाल यह है कि राजनैतिक व्यवस्था प्रक्रियात्मक की उत्कृष्ट स्थिति को कैसे प्राप्त करें? वहां राजनैतिक भूमिकाओं का स्वरूप क्या हो? उनका संचालन कैसे हो? इसके संचालन का सूत्र किसके पास हों? भूमिकाओं के निष्पादन के लिए लोगों की भर्ती का आधार क्या है? इन प्रश्नों का बहुत महत्व है| सच तो यह हैं कि सभी राजनैतिक व्यवस्थाओं की सफलता की कुंजी वहां के राजनैतिक भर्ती की भूमिकाओं के निष्पादन में निहित होती है|
मानव संसाधन प्रबंधन में, ” भर्ती ” एक समय और लागत लगा कर प्रभावी ढंग से नौकरी की भर्ती प्रक्रिया को लागू करने के लिए सर्वश्रेष्ठ और सबसे योग्य उम्मीदवार को खोजने और किराए पर लेने की प्रक्रिया है। इसे “संभावित कर्मचारियों की तलाश करने और उन्हें संगठन में नौकरियों के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया” के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है।
राजनैतिक भर्ती आम भर्तियों से बिलकुल अलग होती हैं| विभिन्न राजनैतिक भूमिकाओं में भर्ती कुछ इस तरह से हो सकती है:-
- सार्वभौमिक या सामान्य मानदंडों के आधार पर जैसे कि लोगो के समूहो द्वरा चयन, चुनाव के द्वारा, या क्षमता और प्रदर्शन के कुछ प्रमाणों के आधार पर, या जाति, धर्म, जनजाति, जातीयता, आनुवंशिकता, मित्रता, पारिवारिक संबंध और इस तरह के अन्य विशिष्ट विचारों के रूप में।
- अधिकांश आधुनिक राजनैतिक प्रणालियों में व्यक्तियों को विभिन्न भूमिकाओं में भर्ती करने के लिए उनकी क्षमता और प्रदर्शन ही महत्वपूर्ण मापदंड हैं, हालांकि विशेष मानदंड में अनौपचारिक रूप से भर्ती प्रक्रिया द्वारा कोई प्रवेश कर सकता हैं|
- पद किसी भी संदर्भ में राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। नेतृत्व की प्रकृति और गुणवत्ता काफी हद तक, भर्ती की प्रक्रिया पर निर्भर करती है, भर्ती की नि: शुल्क, निष्पक्ष और खुली व्यवस्था सक्षम नेताओं के चयन को सुनिश्चित कर सकती है।
- अधिकांश राजनैतिक प्रणालियों में चुनाव, भर्ती के सबसे सार्वभौमिक मानदंडों में से एक है। हमारे सर्वेक्षण में अधिकांश छात्र कार्यकर्ता चुनाव के आधार पर नेतृत्व के पदों को मानते हैं, छात्र सरकार और राजनीति में नेतृत्व की भूमिका की धारणा के लिए छात्र संघ का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण औपचारिक चैनल है।
- इस प्रकार चुनावी प्रक्रिया परिसर की राजनीति का एक प्रमुख घटक है। “राजनैतिक भर्ती की मशीनरी स्वाभाविक रूप से अनंत के अधीन है|"
किसी भी राजनैतिक व्यवस्था के अंतर्गत भर्ती का तात्पर्य विभिन्न पदों पर राजनैतिक भूमिकाओं के निष्पादन के लिए की जाने वाली बहाली से है| इसके दायरे में औचित्य पूर्ण राजनैतिक सत्ता, शक्ति, और प्रभाव का इस्तेमाल करने वाले राजनैतिक पद धारक जैसे- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, मेयर आदि एवं प्रशासनिक पदों पर होने वाली भर्तियां शामिल हैं |इसके साथ-साथ राजनैतिक भर्ती का अभिप्राय उस प्रकार्य से भी है जिसके माध्यम से व्यवस्था में राजनैतिक भूमिकाओं का निष्पादन करने वाले लोगों को राजनीति की मुख्यधारा में शामिल किया जाता है | इस अर्थ में राजनैतिक समाजीकरण का स्वाभाविक परिणाम, व्यवस्थागत राजनैतिक प्रक्रिया में, लोगों को शामिल होने एवं राजनैतिक भूमिकाओं के निर्माण कार्य के लिए लोगों की भर्ती से है| इस संदर्भ में भर्ती का अभिप्राय किसी भी राजनैतिक व्यवस्था में लोगों का औपचारिक रूप से राजनीति में पारंगत होना है| प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था की लोकप्रियता, सफलता, स्थायित्व एवं स्तर में वृद्धि का पूरा दारोमदार वहां की राजनैतिक भर्ती की स्थिति और प्रतिशत में वृद्धि पर निर्भर करता है|
राजनैतिक भर्ती को विभिन्न विद्वानो ने कुछ इस तरह से परिभाषित किया हैं:-
- पॉवेल के अनुसार- पावेल राजनैतिक भर्ती शब्द का उपयोग उस फ़ंक्शन के संदर्भ में करते हैं जिसके माध्यम से राजनैतिक प्रणाली की भूमिकाएं भरी जाती हैं|
- आलमंड के अनुसार- आलमंड के शब्दों में “भारतीय राजनैतिक भर्ती वह राजनैतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनैतिक भूमिका निभाने वालों वालों का राजनैतिक व्यवस्था में विधिवत प्रवेश होता है|”
- प्रो. एडविन फ्लिप्पो (Prof. Edwin Flippo) के अनुसार,- ‘‘राजनैतिक भर्ती सम्भावित प्रत्याशियों की खोज करने तथा उन्हें संगठन कार्यों के लिए उत्प्रेरित करने की प्रक्रिया है।’’
- प्रो. ब्यूल (Prof. Buell) के अनुसार, ‘‘किसी राजनैतिक पद के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध प्रार्थियों की सक्रिय खोज करना ही राजनैतिक भर्ती है।’’
- डेल एस. बीच (Dale S. Beach) के अनुसार- “राजनैतिक भर्ती एक प्रक्रिया है जो राजनैतिक व्यवस्था के पर्यावरण को सीधे तौर पर प्रभावित करता है|”
- जोसेफ लापालोमबरा के शब्दों में- राजनैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भूमिकाओं के निर्वाहन हेतु विशिष्ट व्यक्तियों को इसमें शामिल करने के लिए सभी निर्धारित उपायों को राजनैतिक भर्ती कहा जाता है|
- रश एवं अल्ताफ की दृष्टि में -राजनैतिक भर्ती एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी पद की भूमिका को प्राप्त करने या इस हेतु पंजीकरण कराने का प्रयास करता है |
उपयुक्त विवेचनाओं से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कोई भी राजनैतिक समाज केवल प्रशासकों द्वारा संचालित नहीं होता है अपितु व्यवस्था के सामाजिक जीवन के विविध क्षेत्रों का नियमन भी आवश्यक है, जिसका मुख्य आधार आधेय लोगों के पारस्परिक संबंध, विश्वास ,आस्था, निष्ठा, सहयोग, समन्वय, व्यक्तिगत कौशल आदि है| इस परिपेक्ष में राजनैतिक भर्ती का आशय है सामाजिक व्यवस्था का नियमन करने वाली गतिविधियों के संचालन हेतु लोगों का चयन करना|
- प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था कुछ मूल्यों, मान्यताओं, निष्ठा व विश्वासों को वहन करती है, साथ-साथ परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप नए मूल्यों को भी अपने में समावेशित करती रहती है|
- व्यवस्थागत राजनैतिक भर्ती के प्रसंग में परंपरागत मूल्यों और अभिनव मूल्यों के बीच सामंजस्य बिठाते हुए राजनैतिक भूमिकाओं का निर्वहन किया जाता है|
- इस पूरे संदर्भ में राजनैतिक समाजीकरण प्रक्रिया की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है| दरअसल राजनैतिक समाजीकरण प्रक्रिया राजनैतिक भर्ती के लिए आधार भूमि उपलब्ध कराती है |
- आलमंद द्वारा प्रतिपादित प्रतिमान में राजनीति भर्ती को निवेश प्रकार्य के दायरे में शामिल किया गया है| इसका अभिप्राय व्यवस्था द्वारा समाज को नियमित करने एवं पर्यावरण में होने वाले बदलाव के अनुरूप अनुकूलित करने के कार्य में राजनैतिक भर्ती प्रक्रिया का उल्लेखनीय योगदान होता है|
- जिस प्रकार राजनैतिक संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी सामाजिक मूल्यों, शिक्षा को हस्तांतरित करके सभी राजनैतिक व्यवस्थाओं की रूपरेखा को स्थायित्व प्रदान करती है ठीक उसी प्रकार राजनैतिक व्यवस्था के अस्तित्व को राजनैतिक भर्ती की मौजूद भूमिका सर्वाधिक प्रभावित करती हैं|
राजनैतिक भूमिकाओं के संपादन एवं निर्वहन के लिए सदस्यों का चयन ही राजनैतिक भर्ती है| यह एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नागरिकों को व्यवस्थागत राजनैतिक व्यवस्था प्रक्रियाओं एवं राजनैतिक अभिजनो के प्रति राजनैतिक चेतना का संचार होता है| लोगों में राजनैतिक विषयों, मुद्दों समस्याओं, नीतियों, निर्णयों के प्रति संज्ञानात्मक, भावनात्मक एवं मूल्यांकन क्षमता में वृद्धि होती है तथा सदस्यों का राजनैतिक दृष्टिकोण स्पष्ट होता हैं|
प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक भर्ती का दायरा काफी विस्तारित होता है, जिसमें राजनैतिक अभिजन वर्ग अधिकारी तंत्र एवं जनसाधारण द्वारा निभाई जाने वाली समिति भूमिकाएं शामिल होती है | संकुचित अर्थ में, भर्ती का अभिप्राय सिर्फ उन लोगों की भर्ती से संबंधित है जो राजनैतिक नेता की भूमिकाओं का निर्वहन करते हैं| संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि भर्ती अवधारणा के प्रकृति के संबंध में संकुचित एवं व्यापक दोनों दृष्टिकोण का अस्तित्व मौजूद है|
सभी व्यवस्थाओं में राजनैतिक भर्ती प्रक्रिया के अंतर्गत दो पहलू सम्मिलित होते हैं- भर्ती करने वाला और भर्ती होने वाला| भर्ती करने वाला अधिकारी या इकाई पद से प्रासंगिक योग्यताओं एवं निर्धारित शर्तों के आलोक में आवश्यक विषयों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पदों पर योग्य व्यक्तियों की भर्ती का निर्णय लेता है, वही भर्ती होने वाला व्यक्ति, पद पर नियुक्त होने के लिए अपनी योग्यता कार्य कौशल की क्षमता एवं अपनी राजनैतिक निष्ठा चयनकर्ता के प्रति व्यक्त करता है| राजनैतिक भर्ती से संबंध कतिपय प्रमुख विधियों या प्रकारों की चर्चा निम्नांकित है:-
- निर्वाचन विधि (Election method)- लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में राजनैतिक भर्ती का सबसे प्रबल और लोकप्रिय माध्यम निर्वाचन विधि है| इस विधि के अंतर्गत व्यवस्था द्वारा निर्धारित विभिन्न पदों पर एक निश्चित काल अवधि के लिए जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन विधि के आधार पर राजनैतिक भर्ती प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है| भर्ती की इस विधि का आधार व्यस्त मताधिकार का अधिकार होता है जिसमें वैधानिक मानकों के आधार पर एवं संविधान द्वारा निर्धारित उम्र सीमा तथा योग्यता के लिए प्रस्तावित शर्तों के आधार पर कोई भी नागरिक चुनाव में अपनी उम्मीदवारी सुनिश्चित करा सकता है और किसी भी राजनैतिक दल या निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतर सकता है | सिर्फ सरकारी कर्मचारियों पदाधिकारियों को ऐसी खुली भर्ती प्रतियोगिता में शामिल होने की वैधानिक रूप से मनाही है| वही मतदाता के लिए भी संविधान द्वारा विधिसम्मत आधार पर कुछ वैधानिक योग्यताएं निर्धारित की गई है, मसलन व्यस्त नागरिक होने की उम्र सीमा, मताधिकार के प्रयोग के दौरान गैर सामाजिक विध्वंसक गतिविधियों पर कानूनी प्रतिबंध एवं मतदाता होने के लिए संविधान द्वारा निर्धारित नागरिकता की आवश्यक शर्तों की उपस्थिति आदि|
निर्वाचन विधि सामान्यतया दो प्रकार की होती है- प्रत्यक्ष निर्वाचन विधि एवं अप्रत्यक्ष निर्वाचन विधि|
- प्रत्यक्ष निर्वाचन विधि- जब जनसाधारण प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है तो उसे प्रत्यक्ष निर्वाचन विधि की संज्ञा दी जाती है| भारत इंग्लैंड अमेरिका कनाडा आदि राज्यों में व्यवस्थापिका के प्रथम सदन के लिए राजनैतिक भर्ती की यह विधि अपनाई जाती है |अमेरिका में द्वितीय सदन सीनेट के सदस्यों के चयन के लिए निर्वाचन की यही विधि अपनाई जाती है|
- अप्रत्यक्ष निर्वाचन विधि- इस विधि में मतदाताओं द्वारा एक ऐसे निर्वाचक मंडल का चुनाव किया जाता है जो राजनैतिक प्रतिनिधियों का चयन करता है| अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव ऐसे ही निर्वाचक मंडल द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से संपन्न होता है| भारत के राष्ट्रपति का चुनाव भी अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है| दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मतदाता निर्वाचक मंडल के सदस्यों का चुनाव करते हैं और निर्वाचक मंडल के सदस्य राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं|
2. वंशानुगत विधि- यदि राजनैतिक पदों पर भर्ती का आधार वंशानुगत हो तो इसे वंशानुगत विधि के रूप में चिन्हित किया जाता है| प्राय वंशानुगत विधि के आधार पर राजनैतिक सत्ता प्राप्त करना राजतंत्र की खासियत है| लोकतंत्र में राजनैतिक भर्ती का माध्यम प्रत्यक्ष या परोक्ष निर्वाचन या मनोनयन होता है| इंग्लैंड का राजा पद वंशानुगत आधार पर भरा जाता है| जापान के सम्राट पद पर भर्ती का आधार भी वंशानुगत है|
3. बल प्रयोग विधि- बल प्रयोग द्वारा की जाने वाली राजनैतिक भर्ती को बलात राज्य परिवर्तन की संज्ञा दी जाती है| इस कार्रवाई द्वारा किसी राजनैतिक व्यवस्था के शासक या निर्वाचित सरकार को संवैधानिक तंत्र के विफल होने का हवाला देकर से हटा दिया जाता है और किसी न किसी रूप में शक्ति के प्रयोग द्वारा अधिनायक तंत्र स्थापित कर दिया जाता है| इस राजनैतिक भर्ती के लिए सैन्य बल का प्रयोग किया जाता है| इस विधि के अंतर्गत सत्तालोलुप व्यक्ति या समूह प्रचलित शासन व्यवस्था को धराशाई करके सत्ता पर कब्जा कर लेता है और उसका उपयोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए करता है| राजनैतिक व्यवस्था में सैनिक विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होने पर सेना के सर्वोच्च पदाधिकारी निर्वाचित शासकों को बल प्रयोग द्वारा हटा कर स्वयं अधीनस्थ अधिकारियों को मुख्य राजनैतिक पदों पर प्रतिस्थापित कर देते हैं| ऐसी भर्ती द्वारा अस्तित्व में आई सत्ता के संचालन का सूत्र सैनिक अधिकारियों के हाथ में होता है |पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में लंबे समय तक कायम रहा सैनिक शासन इस राजनैतिक भर्ती का बेहतर उदाहरण है|
4. जाति जनजाति एवं अल्पसंख्यक आधार पर भर्ती- भारतीय राजनैतिक व्यवस्था में व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के कुछ राजनैतिक पदों को जाति, जनजाति और अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक आधार पर आरक्षित किया गया है और इन आरक्षित पदों पर निर्वाचन नियुक्ति या मनोनयन आरक्षण के आधार पर संपन्न होता है| सरकारी सेवाओं में भी इन्हीं वैधानिक मानदंडों के आधार पर पदों को आरक्षित किया जाता है और निर्धारित मानकों को माध्यम बनाकर इन पदों पर भर्ती की जाती है| राजनैतिक भर्ती की इस प्रक्रिया का उद्देश्य समाज में कमजोर पिछड़े वर्गों एवं अल्पसंख्यकों को व्यवस्थागत राजनीति की मुख्यधारा में शामिल करना है|
राजनैतिक भर्ती के प्रसंग में दो सिद्धांत प्रचलित हैं सामान्य सिद्धांत और विशिष्ट सिद्धांत| यह राजनैतिक व्यवस्था की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वहां राजनैतिक भर्ती के लिए दोनों में से कौन सा सिद्धांत अपनाया जाए| राजनैतिक व्यवस्था में की जाने वाली राजनैतिक भर्ती प्रक्रिया का कार्य इन्हीं सिद्धांतों के आलोक में किया जाता है, जिसे निम्नांकित रूप से स्पष्टतया समझा जा सकता है:-
- सामान्य सिद्धांत- समान्य सिद्धांत के तहत राजनैतिक भर्ती का आधार राजनैतिक योग्यता, राजनैतिक कार्य क्षमता एवं राजनैतिक उपलब्धियां होती है| लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामान्यतया राजनैतिक भर्ती के लिए इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है| इस सिद्धांत के तहत अपने राजनैतिक व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों के आधार पर उम्मीदवार चुनाव में मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करके निर्वाचन प्रक्रिया द्वारा राजनैतिक वैधानिक पदों पर बहाल किए जाते हैं| राजनैतिक भर्ती का यह सिद्धांत नागरिकों को राजनीति में दिक्षित करने का महान कार्य करता है| लोकतांत्रिक इकाइयों के लिए वैधिक आधार पर नियतकालिक चुनाव की व्यवस्था की जाती है जो राजनैतिक भर्ती के इस सिद्धांत के आलोक में विविध पूर्वक संपन्न कराया जाता है|
- विशिष्ट सिद्धांत- सहभागिता मूलक लोकतांत्रिक भर्ती प्रक्रिया से अलग राजनैतिक भर्ती का विशिष्ट सिद्धांत राजनैतिक भूमिकाओं के निर्वहन के लिए शासक के परिवार के लोगों के समूहों के सदस्यों या किसी विशेष समुदाय के सदस्यों की राजनैतिक भर्ती का प्रारूप प्रस्तुत करता है | भर्ती का यह सिद्धांत आदि व्यवस्थाओं एवं राजतंत्र व्यवस्थाओं में प्रचलित होता है, जिसमें भर्ती के लिए कुछ निश्चित नियमों का पालन किया जाता है |सहभागिता मुल्क लोकतांत्रिक प्रक्रिया के महत्व वाली आधुनिक व्यवस्था में भर्ती के इस सिद्धांत का राजनैतिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है|
आलमंड द्वारा विभिन्न राजनैतिक व्यवस्थाओं में भर्ती की मौजूदा प्रक्रियाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए राजनैतिक भर्ती के चार प्रधान माध्यमों का उल्लेख किया गया है जो कि इस प्रकार से हैं -1. राजनैतिक दल 2. प्रांतीय एवं स्थानीय सरकार 3. नागरिक प्रशासन और 4. सेना
- राजनैतिक दल- उदारवादी एवं सर्वाधिकारवादी दोनों राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक दल राजनैतिक भर्ती का प्रमुख माध्यम है| इस प्रसंग में जनसाधारण को राजनीति के लिए दीक्षित करना, उसे राजनीति के प्रति संज्ञान लेने की क्षमता विकसित करना, राजनैतिक भूमिकाओं के लिए जागरूक बनाना ही राजनैतिक दल के प्रमुख कार्य हैं|
- प्रांतीय सरकार एवं स्थानीय इकाईया- सभी राजनैतिक व्यवस्थाओं में प्रांतीय सरकार एवं स्थानीय इकाईया राजनैतिक भर्ती का मुख्य साधन है| वस्तुतः यह केंद्रीय एवं स्थानीय नेतृत्व के बीच सेतु का निर्माण करते हैं| प्रांतीय एवं स्थानीय सत्ता, केंद्रीय सत्ता और अवाम के बीच राजनैतिक तालमेल बैठाने में, राष्ट्रीय नीतियों के प्रति जनसाधारण में जागरूकता पैदा करने में, आर्थिक सामाजिक विकास के लिए योजना तैयार करने में, मुख्य भूमिका निभाते हैं|
- नागरिक प्रशासन- नागरिक प्रशासन यानी नौकरशाही व्यवस्थागत राजनैतिक भर्ती प्रक्रिया में महत्वपूर्ण माध्यम की भूमिका अदा करती है| स्थानीय से प्रांतीय एवं राष्ट्रीय स्तर तक सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक विकास की योजनाओं की रूपरेखा तैयार करने, राजनीति घोषणाओं को प्रारूपों का अमलीजामा पहनाने, एवं योजनाओं घोषणाओं तथा जनता की मांगों को नीतियों व निर्णयों की शक्ल में रूपांतरित होने पर उन नीतियों को लागू करने के हेतु एक सशक्त माध्यम की भूमिका निभाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है|
- सेना- वैसे तो राजनीति के प्रति तटस्थ दृष्टिकोण बनाए रखने की वैधानिक हिदायत मोटे तौर पर प्रत्येक देश की सेना को दी जाती है, लेकिन बावजूद इसके विकासशील देशों में संवैधानिक शासन तंत्र के बार-बार अस्थिर होने की वजह से इन देशों में व्यवस्थित शासन संचालन एवं सक्रिय राजनीति में सेना का महत्व हमेशा बना रहता है| इन व्यवस्थाओं में सेना के राजनैतिक महत्व के कई कारण है| मसलन सेना का सामाजिक लोगों की अपेक्षा अधिक साधन संपन्न होना, तकनीकी कार्य कौशल में पूरी तरह समर्थ होना एवं तीव्र सामाजिक संघर्षों पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से सेना का समर्थन होना आदि|
यह ब्रिटिश पद्धति पर आधारित है । लोक सेवा आयोग 2 चरणों में विभिन्न उच्च सेवाओं के लिए भर्ती करता है । इसके पहले चरण में प्रारंभिक परीक्षा वस्तुनिष्ठ परीक्षा के रूप में होती है । सामान्य अध्ययन का प्रश्न-पत्र 150 अंक का होता है जबकि ऐच्छिक विषय 300 अंक का होता है ।
यह छंटनी परीक्षा है इसके अंक मुख्य परीक्षा में नहीं जोड़े जाते है दूसरे चरण में लिखित परीक्षा और साक्षात्कार होता है । लिखित परीक्षा में 8 प्रश्न-पत्र होते हैं जो कि दीर्घ या लघु उत्तरीय प्रश्नों का बना होता है, प्रत्येक 300 अंक का ।
इसमें एक भारतीय भाषा, अंग्रेजी प्रश्न-पत्र और सामान्य अध्ययन के चार प्रश्न-पत्र अनिवार्य होते हैं, बाकी 4 ऐच्छिक विषयों के होते हैं । 1993 से निबंध का प्रश्न जोड़ा गया है । साक्षात्कार 300 अंक का होता है जो पहले 250 अंकों का था ।
भारत में भर्ती पद्धति की आलोचना (Criticism of Recruitment System in India):
लोकतंत्र समर्थक कहते हैं, कि प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों का भी जनता द्वारा चुनाव होना चाहिए तथा जनता को उन्हें वापस बुलाने का अधिकार भी मिलना चाहिए। फ्रान्स की प्रिफेक्ट प्रणाली इसका उदाहरण हैं। बहरहाल यह विशाल राज्यों में अव्यवहारिक और समय साध्य तो हैं ही, प्रशासनिक कुशलता के लिए हानिकारक भी हैं। अत: प्रशासनिक पदों पर भती हेतु लोकसेवा आयोग, स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड, मैरिट सिस्टम प्रोटेक्श्न बोर्ड, मैरिट सिस्टम प्रोटेक्श्न बोर्ड, लोक उद्दयम चयन परिषद जैसी संस्थाएं कायम की जाती हैं।
यदि भारत में भर्ती पद्धति की आलोचना की बात की जाए, तो कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार होंगे:-
1. कल्पना का अभाव । एपीलबी के शब्दों में, ऐसा लगता है कि रिक्त पदों के विज्ञापन वकीलों ने लिखे हैं ।
2. पुरानी घिसी-पिटी पद्धति तथा रटंत विधा पर आधारित ।
3. मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का अभाव । गोरेवाला ने साक्षात्कार के स्थान पर मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की वकालत की ।
4. राजनैतिक दृष्टिकोण ।
5. पदोन्नति मात्र विभागों में ही होती है ।
6. साक्षात्कार पद्धति दोषपूर्ण है ।