UNIT 7
राजनैतिक भागीदारी
राजनैतिक भागीदारी की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए इसके शाब्दिक अर्थ को समझना आवश्यक है | यह दो शब्दों से 'राजनीति' और 'भागीदारी' से बना है| आमतौर पर राजनीति किसी भी समाज की जरूरत होती है, जो मानव के सार्वजनिक जीवन से संबंधित है, जिसमें दो या दो से अधिक पार्टियों के बीच अनवरत संघर्ष होते रहते हैं या फिर उनके बीच एक नियमित मतभेद होता है और इसे हल करने के लिए सरकार या कानून का होना अति आवश्यक हो जाता है| इस प्रकार यदि देखा जाए तो शासन और उससे संबंधित गतिविधियों को हम मोटे तौर पर राजनीति कह सकते हैं| लेकिन व्यापक अर्थों में इसमें व्यक्ति के सार्वजनिक जीवन से संबंधित सभी गतिविधियां शामिल हो जाती है | आमतौर पर राजनैतिक भागीदारी का मतलब राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने से हैं| राजनैतिक भागीदारी समय, परिवर्तन और संबंधित राज्यों की भूमिका के साथ बदल जाती है|
48 वीं शताब्दी में तानाशाही या कुलीनतंत्र के विकास के विकल्प के रूप में लोकतंत्र के विकास के कारण भागीदारी के महत्व को स्वीकार किया गया है। इसलिए मूल रूप से, यह एक आधुनिक परिकल्पना है। हालांकि, बहुत प्राचीन सभ्यताओं, जैसे कि ग्रीस, में लोकतंत्र और राजनैतिक भागीदारी मौजूद थी।
विश्व की प्राय सभी राजनैतिक व्यवस्थाओं के लिए राजनैतिक सहभागिता या भागीदारी एक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण घटक है| राजनैतिक सहभागिता जनतांत्रिक शासन प्रणाली की बुनियाद है क्योंकि इसका संचालन जनता के द्वारा किया जाता है |एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य समाज में अपने संबंधों का जाल बढ़ाता है तथा अपनी राजनैतिक व्यवस्था को विकसित करता है| वह अपने जीवन का प्रारंभ प्रभाव संबंधों के माध्यम से करता है | समाज के सभी लोग राजनैतिक व्यवस्था में समान अभिरुचि नहीं दिखाते हैं|
प्रजातांत्रिक व्यवस्था का भविष्य मुख्य रूप से सरकार के निर्माण एवं निर्धारण में जनता की सहभागिता पर निर्भर करता है | देश की संवैधानिक व्यवस्था के संचालन में जनता की सहभागिता जितनी अधिक होगी, उतना ही प्रजातंत्र स्वस्थ और पुष्ट होगा | जनता की सहभागिता दो तरह से प्रजातंत्र को पुष्ट करती है| प्रथम -शासन में रहने वाले जनप्रतिनिधियों को अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रखते हुए उन्हें उत्तरदायित्व की भावना से विमुख नहीं होने देती है और द्वितीय- जनता खुद को राष्ट्रीय समस्या एवं शासन कार्यों के प्रति सचेत रखती है | यदि संवैधानिक संरचना को प्रजातंत्र का शरीर माना जाए तो राजनैतिक सहभागिता उसकी आत्मा है|
विश्व की लगभग सभी राजनैतिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में राजनैतिक सहभागिता या भागीदारी एक आवाश्यक एवं महत्वपूर्ण घटक हैं| यदि हम यह कहें कि राजनैतिक सहभागिता लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली की आधारशिला हैं, क्योंकि इसका संचालन जनता के लिए और जनता के द्वारा किया जाता हैं| राजनीतिक भागीदारी का तात्पर्य है जनता द्वारा सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने के लिए स्वैच्छिक गतिविधियों को अपनाना हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से नीतियों को बनाने वाले व्यक्तियों के चयन को प्रभावित करती है। इन गतिविधियों के उदाहरणों में चुनावों में मतदान करना, एक राजनीतिक अभियान में मदद करना, किसी उम्मीदवार या पार्टी को धन दान करना, अधिकारियों से संपर्क करना, याचिका करना, विरोध करना और मुद्दों पर अन्य लोगों के साथ काम करना शामिल है।
क्रॉस-नेशनल डेटा से पता चलता है कि अमीर और बेहतर शिक्षित लोग कम सुविधा वाले लोगों की तुलना में अधिक दरों में भाग लेते हैं, हालांकि यह संबंध उन देशों में कमजोर है जहां मजबूत दल या अन्य राजनीतिक संगठन वैकल्पिक संसाधन प्रदान करते हैं। सिविक वोलंटरिज़्म मॉडल से जुड़े शोध ने यह प्रमाणित किया है कि लोग राजनीतिक गतिविधि कौशल को स्थानांतरित करते हैं जो वे संगठनों में प्राप्त करते हैं। सिविक वॉलंटरिज़्म मॉडल और अन्य हालिया अध्ययनों ने यह भी प्रदर्शित किया है कि लोग भर्ती या लामबंदी के जवाब में अधिक भाग लेते हैं। (दोनों शब्द एक व्यक्ति द्वारा दूसरे की गतिविधि को बढ़ाने के प्रयासों का उल्लेख करते हैं।) पॉलिटिकल एक्शन प्रोजेक्ट ने यह साबित किया हैं कि लोगों ने विरोध और पारंपरिक भागीदारी दोनों को शामिल होने के लिए अपनी 'राजनीतिक कार्रवाई प्रदर्शनों' का विस्तार किया है।
एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य समाज में अपने सम्बन्धों का जाल बढ़ाता हैं तथा अपनी राजनैतिक व्यवस्था को विकसित करता हैं|वह अपने जीवन का प्रारम्भ ही सम्बन्धों के माध्यम से करता है।
राजनीतिक सहभागिता का जो स्वरूप होगा उसी के अनुरूप संवैधानिक संरचना का भी स्वरूप होगा| यद्यपि अधिकतर देशों में राजनैतिक शक्ति केवल कुछ लोगों में ही केंद्रित होती है| फिर भी यह सत्ताधारी लोग चाहे वह कितने ही सबल क्यों ना हो जनसाधारण को राज्य के मामलों में राजनीतिक सहभागिता के लिए प्रेरित करते हैं ताकि राजनीतिक सत्ता को सफल बनाया जा सके तथा राजनीतिक व्यवस्था में स्थायित्व एवं निरंतरता बनाए रखी जा सके|
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि जितने अधिक नागरिकों की राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक सहभागिता होती हैं, राजनैतिक सत्ता को उतना ही अधिक स्थायित्व प्राप्त होता है| यदि किसी समाज में ज्यादातर लोगों को राजनीतिक सहभागिता के अधिकार से वंचित कर दिया जाए तो उस समाज में भयानक स्थिति उत्पन्न हो जाती है| यही कारण है कि जनतंत्र में राजनीतिक सहभागिता को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है| राजनीतिक सहभागिता एक ऐसी छतरी है जिसके माध्यम से स्वेच्छाचारी शासक भी अपने निरंकुश एवं एकतरफा निर्णयों को छिपाने का प्रयास करता है| यद्यपि राजनीतिक सहभागिता का अध्ययन लोकतंत्र के अध्ययन से जुड़ा हुआ है किंतु ऐसी बात नहीं है कि लोकतंत्र ही केवल राजनीतिक सहभागिता का अवसर प्रदान करता है|
"आज के दौर में लगभग सभी राजनैतिक दल चाहे वे चाहें वे अधिनायकवादी हों या लोकतांत्रिक, रूढ़िवादी या प्रतिक्रियावादी हों, अपने नागरिकों को राजनीति में भाग लेने का अधिकार देती हैं और इस आधार पर, वे अपने देश को लोकतांत्रिक शासन का पूरा दर्जा देती हैं।"
मैक्गलोस्की ने भी कहा हैं कि "अपनी ऐतिहासिक आस्था के बावजूद व्यापक भागीदारी प्रजातन्त्र के लिए कोई विचित्र वस्तु नहीं हैं आधुनिक जन-अधिनायक वादों (साम्यवादी एवं फासीवादी) में भागीदारी पर इससे कहीं अधिक बल दिया जाता है।“
प्रत्येक नागरिक को राजनैतिक क्षेत्र में संलिप्त करने की दिशा में नताओं की इच्छा ना केवल चुनाव में सर्वसम्मति वोट प्राप्त करने के प्रयासों में दिखाई देती है बल्कि यह जनसमूह को युवा वर्गों, जनता के दलों, श्रम संघों, लोक परिषदो, सहकारी संघों, मनोरंजन व संस्कृति संबंधित संस्थाओं, अध्ययन केंद्रों, सम्मेलनों, जुलूस, रैलियों तथा आयोजित लोक प्रदर्शनों आदि के व्यापक संगठनों में भी देखी जा सकती है|
उपर्युक्त बातों के अध्ययन के पश्चात हम कह सकते हैं कि राजनैतिक सहभागिता राजनैतिक व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण संकल्पना कहीं जा सकती है। इसके अभाव में राजनैतिक समाज एक राज्य नाम मात्र ही रहेगा और कुछ नहीं|
राजनैतिक सहभागिता एक जटिल तत्व है तथा इसे प्रभावित करने वाले कारक युग तथा देश के बदलने के साथ-साथ परिवर्तित होते है। यही कारण है कि एक ही काल में भिन्न-भिन्न देशों में और एक ही देश में भिन्न-भिन्न काल में राजनैतिक भागीदारी भिन्न-भिन्न होती है। राजनैतिक सहभागिता के अन्तर्गत सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जनता क्यों और कैसे तथा किन कारणों से राजनीति में भाग लेते है। राबर्ट लेन ने इस प्रश्न पर विचार किया है कि राजनीति से मनुष्य को क्या लाभ है। " राजनैतिक सहभागिता के प्रमुख कारकों को हम निम्नलिखित रूपों में रख सकते है:-
- मनोवैज्ञानिक कारक : राजनैतिक व्यवस्था को निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक कारक प्रभावित करते हैं।
- एकाकीपन : आई.ई. लेन के अनुसार सामान्य राजनैतिक विश्वास, सामान्य क्रोध, सहानुभूति और कष्ट जैसे संवेदन राजनीति में भाग लेने के लिए आधार तैयार करते हैं। सामान्य हित छोटी बातों के अवसर बढ़ाते हैं व सामान्य क्रियाएँ मैत्री के बंधन बनाती है। राजनीति एकाकी मनुष्य को अन्य लोगों के साथ रहने का अवसर प्रदान करती है-राजनीति बहाना हो सकती है, आवश्यकता एकाकीपन का भय हो सकती है। इसी कारण राजनैतिक नेता मृत्यु पर्यन्त राजनैतिक कार्य नहीं छोड़ते हैं क्योंकि छोड़ते ही वे अकेले हो जाते हैं और उन्हें अपना जीवन भार लगने लगता है। यही कारण है कि व्यक्ति का एकाकीपन राजनैतिक सहभागिता को प्रेरित करता है।
- अचेतन संघर्ष और तनाव :राजनैतिक सहभागिता में अचेतन मनोवैज्ञानिक तत्वों का भी योगदान हो सकता है। उदाहरण के लिए राजनैतिक सहभागिता अचेतन स्तर पर उत्पन्न होने वाले तनावों और मानसिक संघर्षों को अभिव्यक्त करने का साधन हो सकती है। राजनैतिक सहभागिता से तनाव दो प्रकार से दूर हो सकता है। एक वह व्यक्ति आंतरिक संघर्ष से हट जाए। दूसरा वह आंतरिक संघर्ष को अभिव्यक्त करने का माध्यम बन जाए। दोनों ही स्थिति में वह आंतरिक तनाव को बाहर निकालता है। वास्तव में राजनैतिक सहभागिता राजनैतिक नेता को जीवन का ऐसा तरीका बताती है, जिससे वह आंतरिक संघर्षों से दूर रह सके।
- शक्ति की खोज : मनुष्य सदैव शक्ति चाहता है, उसे शक्तिशाली कहलाने में आनंद का अनुभव होता है। बहुधा शक्ति की यह प्रेरणा अचेतन स्तर पर काम करती है। किसी भी समाज में राजनैतिक कार्यों को जितना अधिक मूल्य दिया जाएगा। उतना ही वे लोगों को आकर्षित करेंगे। इसका उदाहरण भारत में देखा जा सकता है। यहाँ राजनैतिक नेता की स्थिति, यश, सामर्थ्य तथा धन भी जीवन के अन्य क्षेत्रों के नेताओ की अपेक्छा अधिक होती है
- बदले की भावना / क्रोध : मनुष्य कई बार अचानक जीवन में आये बदलाव से भी राजनीति में अपनी सहभागिता बनाने लगता है।
2. सामाजिक कारक :
मनोवैज्ञानिक कारकों के अतिरिक्त सामाजिक कारक भी राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करने का कार्य करते है। सामाजिक कारक अनेक है और वे व्यक्ति के सामाजिक परिवेश के संबन्धित है तथा इनका व्यक्तियों सामाजिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। इनमें सर्वधिक महत्वपूर्ण कारक है- शिक्षा, व्यवसाय, आय, आयु, आवास, गतिशीलता, लिंग, धर्म, प्रजाति और वर्ग इत्यादि। विभिन्न देशों में आधुनिक सामाजिक अनुसन्धानों से राजनैतिक सहभागिता पर उपरोक्त कारकों का प्रभाव पड़ता है तथा महत्वपूर्ण निष्कर्ष भी निकले है। उदाहरण के लिए देखा गया है कि उच्च शिक्षा, ऊँचा व्यवसाय ऊँची आय, पुरूष लिंग, स्थायी आवास प्रमुख धर्म और कभी - कभी अल्प मत भी, प्रमुख प्रजाति और उच्च वर्ग से सम्बन्धित व्यक्तियों का राजनैतिक सहभागिता अधिक होता है। प्रमुख सामाजिक कारक निम्न है :
(i) शिक्षा :- राजनैतिक सहभागिता के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण घटक है। शिक्षा का प्रभाव इसलिए होता है कि शिक्षा मनुष्यों की रूचियों का दायरा बढ़ा देती है। शिक्षित व्यक्ति में नागरिक कर्तव्य व उत्तरदायित्व के प्रति जागरूकता बढ़ जाती है। उसमें अधिक भागीदारी और योग्यता होती है। अतः व्यक्तियों में राजनैतिक सहभागिता की अधिक सक्रियता होती है और वह अपने विचारों को आसानी से प्रसारित कर सकता है। यही कारण है कि पश्चिम के जनतन्त्रों में अधिकतर राजनैतिक नेता उच्चशिक्षा प्राप्त होते हैं, किन्तु अन्य देशों में इसके विपरीत भी स्थिति दिखलाई पड़ती है।
(ii) व्यवसाय :- व्यापारियों तथा टैक्नीकल नौकरियों में व्यक्तियों को भी राजनीति पर ध्यान देना पड़ता है क्योंकि उनके व्यवसायों पर राजनीति का प्रभाव पड़ता है। कुछ व्यवसायों में लगे व्यक्तियों को परस्पर मिलने का अधिक अवसर मिलता है क्योंकि उन्हें बहुत कुछ एक सी समस्याओं से ही सरोकार होता है। ये लोग राजनीति में अधिक भाग लेते है। उदाहरणस्वरूप प्राध्यापक या सरकारी नौकरी तथा प्रशासनिक अधिकारी आदि व्यवसायिक वर्गों के लोगों में लगभग प्रत्येक देश में सर्वाधिक सहभागिता होती है। जिन व्यवसायों में लोगों को इतना अधिक कार्य में संलग्न रहना पड़ता है कि उन्हें राजनीति की ओर ध्यान देने का अवसर ही नही मिलता अथवा अवकाश बहुत कम मिलता है, उनमें भी राजनैतिक सहभागिता व सक्रियता कम पायी जाती है। "
(iii) आय :- शिक्षा व व्यवसाय के अतिरिक्त आय का राजनैतिक सहभागिता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है क्योंकि अधिक आय से अवकाश बढ़ता है चिन्ताएं नहीं रहती और व्यक्ति को राजनीति में सक्रिय होने का अधिक मौका प्राप्त होता है। इसी कारण अधिकतर देशों में राजनैतिक नेता उच्च वर्ग से आते है। विकसित देशों में ऐसा ही होता है किन्तु विकासशील व अविकसित देशों में मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय नेताओं को भी आगे बढ़ते देखा जा सकता है।
(iv) सामाजिक स्थिति :- उपरोक्त सामाजिक कारकों के अतिरिक्त सामाजिक स्थिति का भी राजनैतिक सहभागिता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सामान्य रूप से निम्न सामाजिक स्थिति के लोगों की तुलना में उच्च सामाजिक स्थिति के लोगों में अधिक राजनैतिक सहभागिता दिखने को मिलती है किन्तु इसमें लिंग और आयु का प्रभाव स्पष्ट प्रभाव पड़ता है क्योंकि पुरूषो की तुलना में महिलाओं की तथा वयस्को की तुलना में अवयस्को की राजनैतिक स्थिति निम्न होती है और इसलिए उनमें राजनैतिक भागीदारी भी सीमित होती है। एक ओर तो निम्न प्रस्थिति वर्ग के सदस्यों के समूह केन्द्रता के अभाव के कारण राजनैतिक भागीदारी नहीं रहता और दूसरी ओर समय व पैसे के अभाव के कारण ये स्वयं के लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं होते है। यही वे प्रमुख कारण है जिनके फलस्वरूप उच्चवर्ग प्रस्थिति में राजनैतिक सहभागिता का स्तर निम्न वर्ग प्रस्थिति की अपेक्षा उच्च रहता है।
(v) आयु :- राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करने वाले सामाजिक कारको में आयु भी एक महत्वपूर्ण कारक है। आयु का व्यक्ति की राजनैतिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। विभिन्न आयु में बालकों और वृद्वों की तुलना में मध्य आयु में अधिक सुरक्षा, भागीदारी, स्थायित्व, योग्यता तथा उत्तरदायित्वशीलता पाई जाती है।
(vi) स्थायी निवास - राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करने वाला एक अन्य सामाजिक कारक स्थायी निवास है। यह एक सामान्य बात है कि किसी भी गांव, चुनाव क्षेत्र अथवा नगर में बाहर से आने वाले व्यक्ति को राजनैतिक भागीदारी करने का अवसर नहीं मिल सकता। इसके लिए उसका विशिष्ट क्षेत्र में स्थायी आवास अनिर्वाय है। स्थायी निवास के कारण स्थानीय राजनीति में भली-भांति सम्बन्धित हो जाता है और उसका लम्बे काल तक स्थानीय लोगों से घनिष्ठ सम्बन्ध भी रहता है। उसकी आदतें और तौर-तरीके, चरित्र, भाषा समस्याएँ आकांक्षाएं तथा सोचने समझने का ढंग आदि स्थानीय क्षेत्र के अनुरूप होता है अतः उसे राजनैतिक सहभागिता का अधिक अवसर मिलता है।
(vii) धर्म - राजनैतिक सहभागिता के सामाजिक कारको में प्रमुखता पश्चिम के देशों में धर्म का महत्वपूर्ण योगदान देखा गया है। उदाहरण स्वरूप कैथोलिक धर्म से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण मामलों के प्रश्न पर कैथोलिक मतदाताओं में अधिक राजनैतिक जुड़ाव व चेतना दिखलायी पड़ती है। भारत में भी जब कभी किसी धर्म से सम्बन्धित कानून बनाने का प्रयास किया गया तब स्वाभावतया उस धर्म के समर्थकों ने अधिक राजनैतिक सक्रियता दिखलाई क्योंकि जनता अपने धार्मिक मामलों में किसी भी तरह का राजनैतिक हस्तक्षेप बर्दाप्त नहीं करना चाहते।
(viii) समूह - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में ही रहकर राजनैतिक भागीदारी सीखता है और इसमें समूह की सदस्यता का विशेष योगदान है। समूह सदस्य की राजनैतिक सहभागिता को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। व्यक्ति को उचित और अनुचित की मानक तथा राजनैतिक निर्णय के आधार समूहों से ही षिक्षा प्राप्त होते है। समूह ही राजनैतिक और सामाजिक महोल बनाता है तथा समूह में स्थिति व्यक्ति की राजनैतिक स्थिति निर्धारित करती है। सामाजिक नेता आसानी से राजनैतिक नेता बन जाते है किन्तु कभी-कभी कोई व्यक्ति अपने समूह या वर्ग को छोड़कर अन्य किसी वर्ग से तादाम्य करने लग जाता है ऐसी स्थिति में उसका वास्तविक समूह नहीं वरन अन्य नया समूह ही उपरोक्त प्रभाव दिखलाता है।
(ix) लिंग - स्त्रियां और पुरूषों के मध्य जहां तक राजनैतिक सहभागिता का प्रश्न है वहाँ यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण विश्व में स्त्रियां पुरूषों की अपेक्षा राजनीति में कम सक्रिय है। वोट राजनैतिक अभिरूचि को जानने का एक साधन है। जनता के मतदान व्यवहार के आधार पर हम उसकी राजनैतिक अभिरूचि एवं सहभागिता की प्रवृत्ति को समझ सकते है। “ प्रत्येक सामाजिक स्तर पर स्त्रियाँ पुरूषों की अपेक्षा कम मतदान करती है।"
(x) नगरीय व ग्रामीण पृष्ठ भूमि - राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करने वाले सामाजिक कारको में एक नगरीय व ग्रामीण पृष्ठ भूमि भी है। "अमेरिका, फिनलैण्ड, ब्रिटेन, नार्वे, डेनमार्क तथा स्वीडन में हुए अध्ययन से यह प्रमाणित है कि नगरीय लोगों की अपेक्षा कृषकों अथवा ग्रामीण पृष्ठ भूमि के लोगों में राजनैतिक सहभागिता में सक्रियता की संभावना कम होती है। भारत में अभी भी गांवों की तुलना में शहरीय पृष्ठ भूमि के व्यक्तियों में राजनैतिक विचार, चेतना व राजनैतिक सक्रियता अधिक है इसका प्रमुख कारण ग्रामीण पृष्ठ भूमि के लोगों की साक्षरता दर कम होती है। पढ़े लिखे लोग मतदान में अधिक भाग लेते है इसके विपरीत अशिक्षित लोगों का मतदान प्रतिशत कम होता है।
(xi) परिवार - परिवार समाजीकरण की प्रथम पाठशाला है। परिवार के अभाव बालक का समाजीकरण नहीं हो सकता है। राजनैतिक सहभागिता के निर्णायक तत्वों में एक परिवार भी है।"जिन परिवारों में माता-पिता शिक्षित होते है उनके बच्चों का राजनैतिक समाजीकरण व सहभागिता अधिक होता है। जिन परिवारों में अभिभावक सक्रिय राजनीति में सहभागी होते है वे परिवार राजनैतिक रूप से अधिक प्रभावशील होते है। समाचार-पत्र, राजनैतिक पत्र-पत्रिकाएं जिन परिवारों में अधिक पढ़ी जाती है उनमें अपेक्षाकृत अधिक राजनैतिक सक्रियता पायी जाती है।
3. राजनैतिक कारक
मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक कारकों के अतिरिक्त कुछ राजनैतिक कारक भी राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करते है। यदि राजनैतिक संचार के माध्यम नही है अथवा अपनी कार्य उचित प्रकार से नहीं करते है या सरकारी संस्थाएं जटिल तथा कठोर नियमों से आच्छादित हुई है तो राजनैतिक सहभागिता की संभावना कम होगी। स्वतंत्र दलीय गतिविधियाँ राजनैतिक विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता व माध्यमों की उपलब्धता राजनैतिक जागरूकता तथा राजनीति प्रेरित -भावना आदि कारक भी राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करते है। प्रमुख राजनैतिक कारक निम्न है:-
1) राजनैतिक उद्दीपक - राजनैतिक सहभागिता का पहला महत्वपूर्ण राजनैतिक कारक राजनैतिक उद्दीपक के प्रभाव का होता है। यदि राजनैतिक परिवेश अच्छा होता है तो वहां पर राजनैतिक समाजीकरण की प्रक्रिया भी सक्रिय होती है। व्यक्ति को राजनैतिक माहौल या परिवेश में राजनीजिक व्यवस्था अथवा राजनैतिक क्रिया के लिए अधिक उत्तेजना मिलती है। "व्यक्ति को राजनैतिक उद्दीपक के लिए जब खुली छूट मिलती है तो राजनैतिक सहभागिता की मात्रा उसमें अधिक होती है।
2) राजनैतिक परिवेश - राजनैतिक परिवेश का तात्पर्य उस राजनैतिक व्यवस्था से होता है जिसमें राजनैतिक क्रिया करने के लिए विभिन्न तत्व या साधन क्रियाशील होते है। "ऐसे तत्व या साधन राजनैतिक सहभागिता बढ़ाने में अत्यन्त सहायक होते है उदाहरण स्वरूप आधुनिक राजनैतिक व्यवस्थाओं के आकार, दूरी तथा जटिलता, चुनावों की आवृत्ति, भरे जाने वाले पदों की संख्या की अवधि, राष्ट्रीय, प्रान्तीय, क्षेत्रीय व स्थानीय प्रशासन के स्तर, राजनैतिक दलों तथा अन्य मध्यस्थ अभिकरणों की संख्या आदि राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करते है। इन तत्वों को विपरीत क्रम में रखते हुए हम कह सकते है कि "राजनैतिक भागीदारी अनेक घटकों जैसे पंजीकरण की कष्टदायक प्रक्रियाओं, साक्षरता परीक्षणों, मतदान कर, निवास की शर्तो, अनुपस्थितयों की दशा में मतदान के लिए अपर्याप्त प्रावधानों, मतदान के स्थानों की दुर्गमता तथा कुछ परिस्थितिजन्य तत्वों जैसे युद्ध, विदेशी आक्रमण तथा देश व विदेश में गंभीर उपद्रवों जैसी बाधाओं द्वारा भी प्रभावित होते है।
3) सरकार की अभिवृत्ति – यदि किसी देश में राजनीति का क्षेत्र इतना लम्बा चौड़ा है कि विभिन्न भागों में पर्याप्त संदेशवाहन और आवागमन संभव नहीं है तो राजनैतिक सहभागिता कम होगी। "दूसरी ओर किसी भी देश में शक्ति के लिए प्रतिदन्द्धिता करने की जितनी अधिक खुली छूट होती है वहां राजनैतिक भागीदारी भी उतनी ही अधिक होती है। मतदान के नियम सरल होने पर अधिक लोग मतदान में भाग लेते है।
4) राजनैतिक दल - राजनैतिक दलों का भी राजनैतिक भागीदारी में महत्वपूर्ण योगदान है। राजनैतिक दल जनता की आकांक्षाओं को सरकार तक पहुंचाते है। वे जनता की मांगों को अभिव्यक्त करने का साधन होते है। वे राजनैतिक शिक्षा प्रसारित करते है और लोगों को राजनीति में भाग लेने के लिए सहमत करते है।
5) मतदान - राजनैतिक दलों के अतिरिक्त मतदान की प्रणाली और प्रक्रिया का भी राजनैतिक भागीदारी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
4. व्यक्तिगत कारक - राजनैतिक सहभागिता के लिए व्यक्तिगत कारक भी उत्तरदायी होते है। व्यक्ति के निजी विचार यदि राजनैतिक क्रिया के प्रति सकारात्मक रूख की ओर होते है तब राजनैतिक सहभागिता की मात्रा प्रायः अधिक होती है। राजनैतिक गतिविधि में व्यक्ति की इच्छा यदि नहीं होगी तो राजनैतिक सहभागिता सीमित ही होगी। अतः "व्यक्ति के विचार, दृष्टिकोण व मनोवृत्ति आदि ऐसे कारक है जिनके आधार पर राजनैतिक सहभागिता की मात्रा को समझा जा सकता है।"
5. आर्थिक कारक - "राजनैतिक सहभागिता को प्रभावित करने वाले कारकों में आर्थिक तत्व की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यक्ति अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए राजनीति में भाग लेते है। व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है कि अपने बचाव व रक्षा के लिए वह किसी नेता से जुड़े तभी उसका कल्याण होगा। ऐसी प्रवृतिया सर्वत्र देखने को मिलती है और इस प्रकार के कृत्यों से भी राजनैतिक सहभागिता लोगों में बढ़ती है। परन्तु अधिकांश विद्वान जैसे राबर्ट लेन इसे स्वीकार नहीं करते है। उनका यह तर्क है कि राजनैतिक सहभागिता पहले से ही धनवान लोगों में अधिक पायी जाती है।" हेरोल्ड डी. लासवेल ने भी लिखा है कि राजनीति में महत्व कौन कब कैसे प्राप्त करता है यह आर्थिक तत्व पर निर्भर है।
6. अन्य कारक - राजनैतिक सहभागिता के अन्य कारक निम्नलिखित है:
- व्यक्ति राजनैतिक लाभों को अन्य लाभों की अपेक्षा अधिक मूल्यवान समझकर राजनीति में भाग लेते है। लोगों को यह विश्वास है कि राजनैतिक भागीदारी से उत्पन्न लाभों को प्रभावित कर सकते है अर्थात राजनैतिक निर्णय से इच्छित परिणाम प्राप्त करने हेतु राजनैतिक गतिविधियों में अवश्य भाग लेते है।
- व्यक्तियों में यह विश्वास है कि राजनीति में भाग लिए बिना वे अपने इच्छित उद्देश्यो व लाभों की प्राप्ति नहीं कर सकते अतः वे राजनीति में भाग लेते है।
- राजनैतिक सहभागिता के विरोधी तत्व :- राजनैतिक सहभागिता की धारणा के विरोधी तत्वों के कई रूप है जैसे राजनैतिक उदासीनता, सनकीपन, तिरस्कार, अनायास आक्रोश और हिंसा।
राजनैतिक सहभागिता या राजनैतिक तंत्र के विभिन्न स्तरों पर व्यक्ति के हिस्सा लेने की क्रियाओं को एक अधिक्रम के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह अधिक्रम में दिये प्रत्येक कार्य को करेगा ही| वह इसमें से अपनी रूचि के अनुसार कार्य कर सकता है तथा एक कार्य को करने के बाद दूसरे को न करके किसी अन्य कार्य को भी कर सकता है। इस अधिनियम के अंतर्गत जो विभिन्न कार्य आते हैं उनमें उपर के कार्य को करने के लिए उसके नीचे के कार्य की अपेक्षा कर्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। राजनैतिक सहभागिता की प्रमुख क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
- राजनितिक तथा प्रशासकीय पद पर कार्य करना
- राजनितिक संगठन की सक्रीय सदस्य्ता
- राजनितिक बैठकों और प्रदर्शनों मे भाग लेना
- राजनितिक मे रूचि लेना
- औपचारिक रूप से राजनितिक वाद-विवाद मे भाग लेना
लेस्टर मिलब्राथ का त्रि-वर्गीकरण-लेस्टर मिलब्राथ ने राजनैतिक सहभागिता से सम्बद्ध राजनैतिक क्रियाओं को तीन भागों में वर्गीकृत किया है-
- पूर्ण सक्रिय क्रियाएँ :
ये गतिविधियाँ राजनीति में व्यक्ति की पेशेवर गतिविधियाँ कहीं जा सकती है। ऐसा व्यक्ति राजनीति को अपना धंधा ही बना लेता है। ऐसे व्यक्ति की रग-रग में राजनीति की भावना होती है। संक्षेप में ये गतिवधियाँ इस प्रकार हैं-
- सदस्य बनाना।
- राजनैतिक धन एकत्रित करना |
- राजनैतिक दलों की बैठकों में भाग लेना।
- राजनैतिक दलों का सक्रिय सदस्य बनाना।
- राजनैतिक प्रचार में काफी समय लगाना।
2. संक्रमणकारी क्रियाएँ :
ये क्रियाएँ ऐसी राजनैतिक सहभागिता से संबंधित होती है जिसमें व्यक्ति की साधारण से अधिक रूचि और सक्रियता रहती है। इसमें निम्नलिखित गतिविधियों को समाविष्ट किया जाता है-
- राजनैतिक बैठकों व रैलियों में सम्मिलित होना ।
- दल के सदस्यों को या दल को वित्तीय सहायता देना।
- राजनैतिक नेताओं और अधिकारियों से सम्पर्क करना आदि|
3. दर्शक क्रियाएँ :
ऐसी गतिविधियों में व्यक्ति राजनीति से विरक्त तो नहीं होता पर उसका राजनीति में उलझन भी बहुत नम्र सा रहता है। ऐसा व्यक्ति सामान्यतः: राजनीति का ऐसा दर्शक रहता है जो उसमें कूदना नहीं केवल अवसर होने पर उसमें सहभागी बन जाता है। दर्शक गतिविधियाँ निम्नलिखित कही जा सकता हैं-
- अपने वाहन पर स्टीकर लगाना।
- दूसरों से वोट देने की बात करना |
राजनैतिक सहभागिता के प्रकार राजनैतिक सहभागिता के प्रकारों का उल्लेख अनेक विद्धानों ने अपने - अपने दृष्टिकोण से किया है जो निम्न है।
मिलब्राथ ने प्रयोजन की दृष्टिकोण से राजनैतिक सहभागिता के दो प्रकार बताये हैं-
i. साधक सहभागिता
Ii. अभिव्यंजक सहभागिता
साधक सहभागिता : साधक सहभागिता निश्चित लक्ष्यों (यथा दल की विजय या विधेयक की स्वीकृति या अपनी स्थिति व प्रभाव में वृद्धि) की प्राप्ति से संबंधित है।
अभिव्यंजक सहभागिता : यह वास्तवकि लक्ष्य प्राप्ति से संबंधित न होकर तात्कालिक संतुष्टि अथवा भावनाओं को मुक्त करने से संबंधित होती है। अत: कुछ लोग मताधिकार का प्रयोग इसलिए नहीं करते कि इससे उनको कोई लाभ होगा, अपितु इसलिए करते हैं कि इससे उन्हें संतुष्टि की अनुभूति होती है। वास्तविक व्यवहार में दोनों प्रकार की सहभागिता को एक-दूसरे से पृथक करना कठिन है।”
मिलब्राथ ने उद्देश्य की दृष्टिकोण से राजनैतिक सहभागिता के दो प्रकार बताये हैं-
i. सक्रिय सहभागिता
Ii. निष्क्रिय सहभागिता
- सक्रिय सहभागिता- यह वर्गीकरण समाज में राजनैतिक भागीदारी में समय, शक्ति और साधनों के व्यय के आधार पर किया जाता है| सक्रिय सहभागिता के अंतर्गत वे व्यक्ति या कार्यकर्ता होते हैं, जो राजनैतिक गतिविधि में सक्रिय और निरंतर क्रियाशील रहते हैं |उदाहरण स्वरूप राजनैतिक दलों की बैठकों में भाग लेना, प्रचार प्रसार करना तथा चंदा एकत्रित करना|
- निष्क्रिय सहभागिता- सभी व्यक्ति राजनैतिक कार्यों में समय, शक्ति अथवा धन नहीं लगाना चाहते हैं| ऐसे लोगों को सक्रिय भागीदार न कहकर निष्क्रिय भागीदार कहा जाना चाहिए| दूसरे शब्दों में यह सब तमाशाबिन होते है, जबकि राजनैतिक तमाशा करने वाले सक्रिय राजनैतिक भागीदार हैं| ऐसे व्यक्ति चुनाव के दिनों में मात्र वोट देते हैं| ये किसी के पक्ष विपक्ष में प्रचार आदि नहीं करते हैं|
राजनैतिक व्यवहार के आधार पर राजनैतिक सहभागिता के तीन प्रकार की चर्चा की गई है जो कि इस प्रकार से है:-
- भावात्मक शैली
- अभिव्यकतात्मक शैली
- साधनात्मक शैली
राजनैतिक सहभागिता एक सुरक्षित प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपनी अपनी शैलियों का प्रयोग राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार करते हैं| राजनैतिक कार्यों में संलग्न व्यक्तियों का व्यवहार या दृष्टिकोण एक समान ना होकर परिवर्तित होता है, जैसे किसी राजनैतिक प्रदर्शन में कुछ लोग प्रतीकात्मक होते हैं इसलिए साथ साथ चलते हैं| इसमें कुछ व्यक्ति नारे लगाते हैं तो कुछ लोगों से नारे लगवाते हैं| नारे लगाने वाले की शैली भावात्मक है जबकि नारे लगवाने वाले की अभिव्यक्तात्मक और साथ- साथ चलते रहने वालों की साधनात्मक शैली होती हैं|
राजनैतिक सहभागिता राजनैतिक व्यवस्था का एक ही कार्य है| राजनैतिक सहभागिता एवं राजनैतिक व्यवस्था में परस्पर संबंध है| राजनैतिक सहभागिता राजनैतिक व्यवस्था पर निर्भर करती है और राजनैतिक व्यवस्था की प्रकृति राजनाइत्क सहभागिता को प्रभावित करती है| इसी प्रकार राजनैतिक सहभागिता भी राजनैतिक व्यवस्था के स्वरूप को प्रभावित करती है| व्यवस्थाओं को हम लोकतांत्रिक एवं तानाशाही राजनैतिक व्यवस्था में बांट सकते हैं| लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता राजनीति में भाग लेती है| लोकतान्त्रिक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत मीडिया पर सरकार का कम ही नियंत्रण होता है और यह जनता के सिद्धांत पर आधारित है| जबकि तानाशाही राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक सहभागिता के अवसर बहुत ही सीमित होते हैं| सही अर्थ में राजनैतिक सहभागिता का आदेश राज्य की ओर से आता है| राज यह आदेश देता है कि व्यक्ति कब और किस रूप में राजनीति में भाग ले सकता है |
निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली को अधिक शक्तिशाली और सुदृढ़ बनाने तथा राजनैतिक व्यवस्था, राजनैतिक संस्कृति एवं राजनैतिक विकास को सुदृढ़ आधार देने में प्रत्येक जनता में राजनैतिक भागीदारी और सहभागिता का होना अनिवार्य है| राजनैतिक सहभागिता राजनैतिक संस्कृति, राजनैतिक सामाजिक और राजनैतिक भर्ती से संबंधित प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण स्तर व पड़ाव है| राजनीति में समाजीकरण की प्रक्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है और समाजीकरण में सहभागिता का महत्वपूर्ण स्थान हैं| इसके माध्यम से व्यक्ति राजनीति में प्रवेश कर राजनैतिक मूल्यों और मान्यताओं से परिचित होता है|