UNIT 1
प्लूटो
राजनीती में बहुत से विशेष व्यक्ति आये , उन्होंने अपनी विशेष राजनैतिक विचारधारा से स्वयं का लोहा मनवाया | उनमे से कुछ विशिष्ठ व्यक्तियों के बारे में हम आज जानेंगे |
राजनैतिक विचारधारा
राजनैतिक विचारधारा दो अलग-अलग शब्द राजनैतिक और विचारधारा से मिलकर बने हुए हैं विचारधारा को परिभाषित करते हुए मार्क्स ने कहा कि “शासक वर्ग अपने हित को इस तरफ से फैलाता है कि सर्वहारा को यह लगे कि यह उनका हित है|” सत्ता के 2 अभिकरण होते हैं एक ‘कठोर’ और दूसरा ‘विचारधारा’| विचारधारा कंडीशन ऑफ प्रोडक्शन और कंडीशन ऑफ सोशल लाइफ पुन: उत्पादित करता है| सामाजिक जीवन भौतिक उत्पादन की परिस्थितियों को उसके लिए निर्मित करती है और उत्पादन करने के लिए अच्छा माहौल तैयार करती है|
इस तरह से हम कह सकते हैं कि राजनीतिक विचारधारा एक व्यक्ति, व्यक्तियों या एक विशेष सामाजिक वर्ग द्वारा रखे गए राजनीतिक सिद्धांत और नीति के बारे में संबंधित मान्यताओं का एक समूह है। रॉन और लियाम की संबंधित राजनीतिक विचारधाराएं इस बात पर आधारित हैं कि लोग अपने आसपास की दुनिया को कैसे देखते हैं और दुनिया में सरकार की उचित भूमिका क्या है!
प्लूटो :- प्राचीन यूनान के महान दार्शनिक प्लूटो को केवल यूनान का ही नहीं बल्कि समूचे विश्व का प्रथम राजनीतिक दार्शनिक होने का श्रेय प्राप्त है उनसे पहले किसी ने भी राज्य सरकार तथा व्यक्ति के संबंध पर तर्कसंगत सिद्धांत प्रस्तुत नहीं किया| प्लूटो का दर्शन सर्वव्यापी था राजनीति शास्त्र के अतिरिक्त तर्कशास्त्र नीति शास्त्र शिक्षा शास्त्र आदि विषयों पर भी उसकी देन मौलिक है| मूल रूप से तो वो एक आदर्शवादी थे| प्लूटो यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक , गणितज्ञ और सुकरात के शिष्य एवं अरस्तु के गुरु थे | पश्चिमी जगत की दार्शनिक पृष्ठभूमि को तैयार करने में इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने महतवपूर्ण भूमिका निभाई थी | प्लूटो को अफलातून के नाम से भी जाना जाता है | पश्चिमी जगत में उच्च शिक्षा के लिए पहली संस्था “एकेडमी “ की स्थापना का श्रेय भी प्लूटो को ही जाता है | उन्हें दर्शन और गणित के साथ-साथ तर्कशास्त्र और नीतिशास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था|
उन्हें अपने शिक्षक, सुकरात और उनके सबसे प्रसिद्ध छात्र, अरस्तू के साथ-साथ प्राचीन यूनानी और पश्चिमी दर्शन के इतिहास में व्यापक रूप से माना जाता है। प्लूटो को अक्सर पश्चिमी धर्म और आध्यात्मिक संस्थापकों में से एक के रूप में भी जाना जाता है। प्लोटिनस और पोरफ्री जैसे दार्शनिकों के तथाकथित नियोप्लाटनवाद ने सेंट ऑगस्टाइन और ईसाई धर्म को प्रभावित किया। अल्फ्रेड नॉर्थ व्हाइटहेड ने एक बार उल्लेख किया था: "यूरोपीय दार्शनिक परंपरा का सबसे सुरक्षित सामान्य लक्षण वर्णन यह है कि इसमें प्लूटो की एक श्रृंखला इसमें शामिल है।" प्लूटो दर्शन में लिखित संवाद और द्वंद्वात्मक रूपों के प्रर्वतक थे। प्लूटो को पश्चिमी राजनीतिक दर्शन का संस्थापक भी माना जाता है। उनका सबसे प्रसिद्ध योगदान फॉर्म का सिद्धांत है जिसे 'प्योर रीज़न' के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें प्लूटो ने, प्लैटोनिज्म के रूप में जाना जाने वाले, सार्वभौमिकों की समस्या का समाधान प्रस्तुत किया है| (जिसे अस्पष्ट रूप से प्लैटोनिक यथार्थवाद या प्लैटोनिक आदर्शवाद भी कहा जाता है)। यह प्लूटोनिक प्रेम और प्लूटोनिक सोलीड्स का भी नाम है।
जीवन परिचय
महान यूनानी दार्शनिक प्लूटो का जन्म 427 ईसवी पूर्व एक कुलीन परिवार में, एथेन्स के समीपवर्ती इजिना नामक द्वीप में, हुआ था| उनके पिता एथेंस के अंतिम राजा कोडर्स के वंशज तथा माता यूनान के सोलन घराने से थी| उनके पिता ‘अरिस्टओन’तथा माता ‘पेरिक्टोंन’ इतिहास प्रसिद्ध कुलीन नागरिक थे| प्लूटो का वास्तविक नाम एरिस्तोकलीज था | उनके अच्छे स्वास्थ्य के कारण के व्यायाम शिक्षक ने इसका नाम प्लाटोन रख दिया था| प्लूटो शब्द का यूनानी उच्चारण 'प्लातोन' है तथा प्लाटों शब्द का अर्थ चौड़ा होता है | धीरे-धीरे उन्हें प्लातोन के स्थान पर प्लूटो कहा जाने लगा| वह एक राजनीतिज्ञ बनना चाहते थे लेकिन उनका यह सपना पूरा ना हो सका और वह एक महान दार्शनिक बन गए| 404 ई.पू. में प्लूटो सुकरात का शिष्य बन गए | अपने जीवन में प्लूटो ने जितने लेख लिखे है उनमें ज्यादातर लेखों में उनके अपने विचार और गुरु सुकरात के विचार ही लिखे हैं | प्लूटो अपने न्याय , शिक्षा , दार्शनिक आदर्श के लिए प्रसिद्ध थे | हम उनके इन्हीं गुणों का वर्णन करेंगें |
प्लूटो का न्याय सिद्धांत उन के दर्शन की आधारशिला है| ' रिपब्लिक' में वर्णित आदर्श राज्य का मुख्य उद्देश्य न्याय की प्राप्ति ही हैं| रिपब्लिक में प्लूटो के न्याय स्वरूप तथा निवास स्थान की विस्तृत चर्चा की गई है| रिपब्लिक का प्रारंभ और अंत न्याय की चर्चा से होता है |प्लूटो में न्याय को कितना महत्व दिया है, यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि रिपब्लिक को न्याय विषयक ग्रंथ कहते है | प्लूटो के अनुसार समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रकृति और प्रशिक्षण के अनुकूल अपने कार्य कुशलतापूर्वक करने चाहिए और दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करनी चाहिए|
न्याय का सिद्धान्त :- ग्रीक राजनीतिक चिंतन के इतिहास में प्लूटो एक उच्चकोटि के आदर्शवादी राजनीतिक विचारक तथा नैतिकता के एक महान पुजारी थे | सुकरात की मृत्यु से प्लूटो का हृदय लोकतंत्र से भर गया था | न्याय क्या है ? इसी समस्या के समाधान के लिए 40 वर्ष की अवस्था में प्लूटो ने “दी रिपब्लिक” की रचना की,जिसका उपशीर्षक ‘Concerning Justice’ या न्याय के सम्बन्ध में है |
इबनंव्हीन के अनुसार – “प्लूटो के न्याय संबंधी विवेचन में उसके राजनीतिक दर्शन के सभी तत्व सम्मिलित हैं |
प्लूटो के अनुसार – न्याय,सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन की केंद्रीय समस्या है|
न्याय का आधुनिक अर्थ- यह लैटिन भाषा के ‘Jus’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है- ‘बांधना’| तात्पर्य है कि न्याय उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़ा रहता है| समाज सामाजिक बंधनों का समुच्चय है| हर व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से किसी रूप में संबंध जुड़ा रहता है| हर संबंध के पीछे दायित्व और अधिकार होते हैं| प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन एक निश्चित सीमा के अंतर्गत करना पड़ता है| यही न्याय का तकाजा है| आधुनिक अर्थ में न्याय का संबंध कानूनी प्रक्रिया द्वारा अपराधियों को दंड देने की प्रक्रिया से हो सकता है| उपयुक्त कथनों के आधार पर हम न्याय के तीन पक्ष को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं:-
1) न्याय का संबंध समाज की मान्यता या विचारों से है|
2) न्याय प्रक्रिया में कानून का बहुत महत्व है| न्याय का उद्देश्य समाज द्वारा मान्य अधिकारों और सुविधाओं को जुटाना है|
3) आधुनिक युग में न्याय कानून की उचित प्रक्रिया का नाम है, जिस के तहत समाज में व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होती है|
प्लूटो ने अपने न्याय का सिद्धांत स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले यह बताने का प्रयास किया है कि न्याय क्या नहीं है| प्लूटो ने यह बताने के लिए न्याय क्या है? उसका निवास स्थान कहां है? उस युग में प्रचलित धारणाओं का खंडन किया है:-
1) न्याय की परंपरा वादी धरना- इस धरना का प्रतिपादक सीफेलस है| उनके अनुसार सत्य बोलना और दूसरों का ऋण चुकाना ही न्याय है|
2) न्याय की उग्रवादी धारना- इस धरना के प्रवक्ता एसीमेक्स हैं| उनके अनुसार न्याय शक्तिशाली का हित है| इसका अर्थ है, “जिसकी लाठी उसकी भैंस|” शासक के हितों की पूर्ति ही न्याय है| व्यक्ति के लिए न्यायप्रिय होने का अर्थ है कि वह सरकार व शासन के हितों का साधन बन जाए|
3) न्याय की व्यवहारवादी धारणा- इस धारणा का प्रतिपादन ग्लाकन ने किया है| ग्लाकन का मानना है कि मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी है| मनुष्य के प्राकृतिक अवस्था में उत्पन्न अन्याय को दूर करने के लिए समझौता किया कि वह ना तो अन्याय करेंगे और ना अन्याय को सहन करेंगा| ग्लाकन का तर्क है कि न्याय एक कृत्रिम व्यवस्था है जिसकी उत्पत्ति का आधार भय हैं| न्याय भय की संतान है| यह दुर्बल की आवश्यकता है ताकि वे शक्तिशाली के अन्याय के खिलाफ खुद की रक्षा कर सके|
प्लूटो की न्याय की धारणा :- प्लूटो की न्याय संबंधी धारणा इस पर आधारित है कि प्रत्येक मनुष्य का अपना अलग-अलग स्वभाव होता है | मनुष्य की आत्मा में 3 गुण होते हैं, विवेक, साहस और क्षुधा| आत्मा के प्रत्येक तत्व का अपना स्वभाविक कार्य है| विवेक का कार्य नियंत्रण करना हैं| साहस का कार्य रक्षा करना हैं एवं क्षुधा का कार्य भौतिक वस्तुओं का संचय करना है| प्लूटो के अनुसार यदि मानव आत्मा के तीनों गुणों के आधार पर व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुकूल कार्य करें तो वह न्याय है| प्लूटो के अनुसार एक व्यक्ति को केवल एक ही कार्य करना चाहिए जो उसकी प्रकृति को सर्वथा अनुकूल है| इस प्रकार प्लूटो पिछले तीनों धारनाओं का खंडन करते हुए न्याय को बाह्य वस्तु नहीं मानते हुए उसे आत्मा का गुण मानते हैं| उनका कहना है मानव आत्मा की उचित व्यवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है | उनके अनुसार न्याय के दो रूप हैं:-
सामाजिक न्याय- प्लूटो का कहना है कि सामाजिक रूप में न्याय तभी संभव है जब समाज के सभी वर्ग अपने स्वभाव अनुकूल कार्यों को पूरा करते हैं और परस्पर सामंजस्य तथा एकता बनाए रखते हैं| प्लूटो राज्य में दार्शनिक वर्ग में विवेक, सैनिक वर्ग में साहस तथा उत्पादक वर्ग में तत्व की प्रधानता है| न्याय का संबंध तो समूचे राज्य से होता है| अपने कर्तव्यों का उचित दिशा में निर्वाहन करके न्याय की स्थापना कर सकता है|
व्यक्तिगत न्याय- व्यक्तिगत न्याय के बारे में भी प्लूटो वही आधार अपनाते हैं जो सामाजिक न्याय के बारे में अपनाते हैं| प्लेटों का कहना है जब व्यक्ति की आत्मा और साहस और विवेक के नियंत्रण को अनुशासन में कार्य करते हैं तो व्यक्तिगत न्याय की प्राप्ति होती है
प्लूटो की न्याय की धारणा की प्रमुख विशेषताओं को इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता हैं :-
1 न्याय नीतिपरायणता का ही दूसरा नाम है |
2 यह अधिकारों के उपभोग से कर्त्व्यों का दायित्व वहन अधिक है |
3 यह व्यक्ति का उसकी अपनी योग्यताओं , क्षमताओं और सामर्थ्य अनुसार समाज का योगदान है |
4 यह सामाजिक नैतिकता है, समाज के प्रति व्यक्ति का दायित्व है |
5 न्याय सामजिक ताने-बाने की शक्ति है क्योंकि इसमें समाज की सभी प्रणाली सम्मिलित होती है |
सुकरात के माध्यम से इन विचारों को व्यक्त करने से पूर्व प्लूटो ने उस समय उपस्थित न्याय के प्रचलित सिद्धान्त का खण्डन किया |
प्लूटो ने न्याय के पारम्परिक सिद्धान्त की मान्यता को समझ लिया था जो मनुष्य को वह करने के लिए मजबूर करती थी जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती थी|
न्याय एकता बनाने की क्रिया के रूप में प्लूटो ने कुछ के लिए अच्छे और कुछ के लिए बुरे होने का समर्थन नहीं किया |
प्लूटो ने कहा है की न्याय वह है जो सबके लिए अच्छा हो, देने वाले के लिए भी और लेने वाले के लिए भी|
प्लूटो के अनुसार न्याय एक कला है , और जो इस कला को जानता है वही कलाकार है और कोई नहीं |
न्याय का एक और सिद्धान्त है जिसका ग्लोकोन और एडिमेंटस द्वारा समर्थन किया गया | यह दोनों प्लूटो के अपने भाई थे |
ग्लोकोन कहता है कि “व्यक्ति अन्याय स्वंत्रतापूर्वक और बिना बाधा के नहीं सहते लेकिन कमजोर यह देखकर कि जितना अन्याय वह दूसरो के साथ कर सकता है उससे ज्यादा उसे सहना पड़ता है, दूसरोँ के साथ मिलकर न अन्याय करना और न अन्याय सहने का एक समझौता करता है और उस समझौता के अनुसरण में वह नियम बनाता है जो बनने के बाद उनकी क्रियाओ के लिए मानक होते है और न्याय के लिए नियम संहिता |”
प्लूटो के न्याय का सिद्धान्त श्रम विभाजन , विशेषज्ञता और कार्यकुशलता की और ले जाता है | उसकी न्याय की धारणा में एक सामजिक अच्छाई , एक निजी और सार्वजनिक नैतिकता और नैतिक निर्देश निहित है| फिर भी प्लूटो का न्याय सिद्धान्त इस अर्थ में एकदलीय है क्योंकि यह व्यक्ति को सत्ता के अधीन रखता है |
बचपन से ही प्लूटो को दर्शनशास्त्र पसंद था और इसके अलावा वह दूसरे विषयो में भी होशियार थे | अमीर परिवार होने की वजह से प्लूटो को घर से सब कुछ मिलता था और उनके पिता अरिस्टों ने उसे पढाई के लिए उस समय की अच्छी अकादमी में भेज दिया| जहां पर प्लूटो को दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र और नीतिशास्त्र के साथ-साथ कुछ और विषय भी अच्छे से पढाये गए है| प्लूटो अपने शिक्षकों की बातें बड़ी जल्दी से याद कर लेते थे | वे बचपन से ही स्वच्छ और उमंदा विचार वाले थे| उस अकादमी में प्लूटो महान गुरु सुकरात के शिष्य बने| सुकरात के पूरे जीवन की जानकारी सिर्फ प्लूटो के लेख से ही मिलती है|
प्लूटो अपने आदर्श राज्य में न्याय की प्राप्ति के लिए जिन दो तरीकों को पेश करते हैं, उनमें से शिक्षा एक सकारात्मक तरीका है| समाज में शिक्षा की बहुत आवश्यकता होती है| शिक्षा द्वारा समाज में भ्रात भाव और एकता की भावना पैदा होती है| शिक्षा के महत्व को स्वीकार करते हुए प्लूटो ने कहा - "राज्य वृक्षों या चट्टानों से निर्मित नहीं होता बल्कि उन व्यक्तियों के चरित्र से निर्मित होता है जो उस में रहते हैं|" व्यक्तियों को श्रेष्ठ और निष्ठावान बनाने के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक है|
प्लूटो ने कई विषयों पर बड़े बड़े लेख लिखे जिनमे सामान्य दर्शन और नीति शास्त्र के लेख सबसे लोकप्रिय बने
अपने शिक्षक सुकरात और अपने सबसे प्रसिद्ध विद्यार्थी एरिस्टोटल के साथ प्लूटो ने पश्चिमी दर्शनशास्त्र और विज्ञान की भी स्थापना की थी |
प्लूटो ने क्रिस्चियन धर्म पर अपने विचारों से काफी प्रभाव डाला था |
प्लूटो क्रिस्चियन इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण दर्शनशास्त्रियों में से एक था
उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी थी जैसे – द रिपब्लिक , द एपोलोजी , फेडो , द क्रिटो , लोचेस , लिसिस , आयोन आदि प्रसिद्ध पुस्तके लिखी |
प्लूटो की ‘द रिपब्लिक’ पुस्तक केवल सरकार के सम्बन्ध में लिखी गई पुस्तक नहीं है यह शिक्षाशास्त्र का प्रबंध ग्रन्थ है | उसके सारे दर्शन का सार,जैसा कि रिपब्लिक में बताया गया है|
रिपब्लिक का उद्देश्य न्याय का पता लगाना और तत्पश्चात एक आदर्श राज्य में उसकी स्थापना करना था | उसकी शिक्षा नीति इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए थी | प्लूटो के लिए सामाजिक शिक्षा सामाजिक न्याय का एक साधन थी | इसके कुछ मुख्य बिंदु निमं है-
2 प्लूटो की शिक्षा का सिद्धान्त बुराई को उसके उद्गम पर ही छूने का प्रयास है |
3 यह एक मानसिक रोग का एक मानसिक औषधि से इलाज करने का प्रयास है |
4 बार्कर ठीक ही कहता है कि प्लूटो की शिक्षा योजना आत्मा को उस वातावरण में ले आती है जो उसकी प्रगति के प्रत्येक स्तर पर उसके लिए सबसे उपयुक्त है |
5 प्लूटो की शिक्षा का सिद्धान्त उसके राजनीतिक सिद्धान्त के लिए भी महत्वपूर्ण है |
6 अपने गुरु सुकरात का अनुसरण करते हुए प्लूटो का इस सिद्धान्त में विश्वास था की सद्गुण ही ज्ञान है | लोगो को सद्गुणी बनाने के लिए उसने शिक्षा को एक बहुत ही शक्तिशाली साधन बनाया |
7 प्लूटो का यह भी विश्वास था कि शिक्षा मनुष्य के चरित्र का निर्माण करती है और इसीलिए व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए,उसकी प्राकृतिक क्षमताओं को बाहर निकालने के लिए यह आवश्यक है |
8 प्लूटो के अनुसार शिक्षा समाज में सभी वर्गों के लिए आवश्यक है लेकिन यह विशेष रूप से उनके लिए जरूरी थी जो लोगो को शासित करते है |
प्लूटो की शिक्षा की निमंलिखित विशेषतायें थी
उसकी शिक्षा की योजना संरक्षक वर्ग के लिए थी | उसने उत्पादक वर्ग पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया था |
उसकी पूरी शिक्षा योजना राज्य द्वारा नियंत्रित थी तथा इसका उद्देश्य मनुष्य का शारीरिक,मानसिक,बोद्धिक और नैतिक विकास था |
यह तीन चरणों को मिलाकर बनी थी-प्राथमिक 6 से 20 वर्ष की आयु में,उच्च 20 से 35 वर्ष की आयु में तथा प्रायोगिक शिक्षा 35 से 50 वर्ष की आयु तक |
इसका उद्देश्य शासकों को प्रशासनिक राज – कौशल सिखाना , सैनिको को सैन्य कौशल सिखाना तथा उत्पादको को भौतिक वस्तुओं के उत्पादन – कौशल सिखाना था|
प्लूटो के शिक्षा का उद्देश्य
- प्लूटो की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना है| यह विकास ज्ञान पर निर्भर होता है इसलिए प्लूटो ने अपनी शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताएं हैं|
- व्यक्ति के गुणों की प्राप्ति के लिए प्लूटो के अनुसार शिक्षा को व्यक्ति के सामाजिक और व्यक्तित्व दोनों के पक्षों के पूर्ण विकास के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहिए |
- आदर्श राज्य के निर्माण को संभव बनाने के लिए, विशेषकर संरक्षक वर्ग को प्रशिक्षित करना शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए|
- स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का निवास होता है| अतः शिक्षा का उद्देश्य शरीर और आत्मा, दोनों का विकास करना होना चाहिए|
- शिक्षा का उद्देश्य केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि उससे उस ज्ञान को आचरण में कैसे उतारा जाए इसका व्यावहारिक प्रशिक्षण भी देना चाहिए|
- प्लूटो के अनुसार विद्यार्थियों को पहले सैद्धांतिक शिक्षा और उसे बाद में प्रयोगात्मक शिक्षा भी दी जानी चाहिए|
- मनुष्य की आत्मा का ज्ञान चेतना होने के कारण ही है| शिक्षा का उद्देश्य भी ज्ञान प्राप्त करना है| आत्मा के पास ज्ञान होता है| शिक्षा तो केवल उसे प्रकाश की ओर आकर्षित करती है| शिक्षा ऐसा वातावरण देती है कि आत्मा का ज्ञान सत ही प्रकट हो जाए|
- शिक्षा का उद्देश्य वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना नहीं है अपितु वस्तु जगत के मूल मंत्र अर्थात अनंत वास्तविकता का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना है|
प्लूटो ने अपने आदर्श में न्याय की प्राप्ति के लिए जो 2 तरीके अपनाए हैं उनमें साम्यवाद का निषेधात्मक वह भौतिक तरीका भी शामिल है| प्लूटो का मानना है कि आदर्श राज्य की स्थापना में तीन बाधाएं- अज्ञानता, निजी संपत्ति व निजी परिवार है| इन बाधाओं को दूर करने के लिए प्लूटो शिक्षा का सिद्धांत व साम्यवादी व्यवस्था का प्रावधान करते है|
प्लूटो ने संरक्षक वर्ग को, अर्थात शासक और सहायक वर्ग को भ्रष्टाचार से मुक्त रखने के उद्देश्य से उनके लिए एक विशेष जीवन पद्धति की व्यवस्था की है जिसे संपत्ति और पत्नियों का साम्यवाद कहा जाता है| प्लूटो का कहना था कि न्याय तभी लाया जा सकता है यदि संरक्षक संपति न रखे क्योंकि संपति एक प्रकार की भूख का प्रतिनिधित्व करती है और संपती को न रखना परिवारों के साम्यवाद की मांग करता है |
साम्यवाद का अर्थ
प्लूटो का मानना है कि सैनिक और शासकों के लिए आदर्श राज्य में ना तो अपना परिवार हों, ना तो घर होना चाहिए और ना ही निजी संपत्ति| अपने इस उद्देश्य विचार को सकारात्मक रूप देने के लिए प्लूटो ने जिस विस्तारवादी योजना का निर्माण किया है, जिसे प्लूटो का साम्यवाद या प्लूटो का साम्यवादी सिद्धांत कहा जाता है| प्लूटो का कहना है कि संरक्षक या अभिभावक वर्ग सदस्य विवाह करने और निजी परिवार बसाने के अधिकार से वंचित रहेंगे| पत्नियों तथा बच्चों का एक व्यक्ति या परिवार का अधिकार ना होकर संपूर्ण समाज या राज्य का अधिकार रहेगा| सभी को उसमें सांझा अधिकार प्राप्त होगा| अच्छी संतान या योग संतान पैदा करने के लिए योगी पुरुष व स्त्री का सहयोग कराया जाएगा| संरक्षक वर्ग के सदस्य निजी संपत्ति से भी वंचित रखे गए हैं| प्लूटो के अनुसार समस्त संपत्ति राज्य के नियंत्रण में ही रहेगी| प्लूटो की योजना के अनुसार सभी सैनिक व शासकों को बैरकों में रहना होगा और उन्हें साथ में भोजन करना होगा| उत्पादक वर्ग अपनी पैदावार का कुछ हिस्सा उन्हें दे देगा ताकि उनकी अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी हो सके| सामूहिक रूप से जीवन व्यवस्था को प्लूटो ने पत्नियों व संपत्ति को साम्यवाद का नाम दिया है|
प्लूटो का आदर्श राज्य :- अपने सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ 'रिपब्लिक' में प्लूटो ने एक आदर्श राज्य का चित्रण किया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य न्याय की प्राप्ति है| उसके आदर्श राज्य की कल्पना अत्यंत अत्यंत मौलिक है |इस राज्य के चित्रण के कई कारण हैं- पहला, प्लूटो आदर्शवादी होने के नाते पदार्थ की जगह विचार को ही वास्तविक मानता है| उसके अनुसार वास्तविकता किसी वस्तु में नहीं बल्कि वस्तु के बारे में जो भाव है उसमें है| इस तर्क के आधार पर प्लेट तो मौजूदा राज्यों को परिवर्तनशील क्षणभंगुर और अवास्तविक मानता था | दूसरा, अपने समय की एथेंस की राजनीतिक तथा सामाजिक बुराइयों से प्लूटो चिंतित था उन्हें सुधारने के लिए उसने आदर्श राज्य की कल्पना की थी| तीसरा, प्लूटो ने उस समय यूनानी राज्यों के शासकों के लिए राज्य का एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहा कि वे अपने राज्य में राजनीतिक और सामाजिक सुधार ला सकें|
दरअसल, प्लूटो के काल में यूनान में जो राजनीतिक अराजकता व्याप्त थी ,उसी की प्रतिक्रिया स्वरुप उसने एक “आदर्श राज्य” की कल्पना कर उसे अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक’ में प्रस्तुत किया था| प्लूटो का आदर्श राज्य आने वाले सभी समय व सभी स्थानों के लिए एक आदर्श का प्रस्तुतीकरण है | आदर्श राज्य की निमं बातें है -
अपने देश में व्यापत तत्कालीन दोषों को देखकर ही उन्हे दूर करने के लिए उसने आदर्श राज्य की रूपरेखा तैयार की और वह राजनीति से दर्शन की ओर उन्मुख हुआ |
उसने राज्य के लिए आवश्यक समझा कि शासन का अधिकार केवल ज्ञानी दार्शनिकों को ही होना चाहिए जिन्हें अच्छे या शुभ का विस्तृत ज्ञान है |
प्लूटो का मानना है कि राज्य अंतः मनुष्य की आत्मा का बाह्य स्वरुप है अर्थात् आत्मा अपने पूर्ण रूप से जब बाहर प्रकट होती है तो वह राज्य का स्वरुप धारण कर लेती है |
राज्य व्यक्ति की विशेषता का विराट रूप है |
व्यक्ति की संस्थाए उसके विचार का संस्थागत स्वरुप है |
प्लूटो ने यह बतलाया है कि मनुष्य की आत्मा में 3 तत्व होते है – विवेक , उत्साह और क्षुधा|
प्लूटो का कहना है कि मानवीय आत्मा में पाए जाने वाले ये तीनों गुण अथवा तत्व राज्य में भी पाए जाते है | इन्हीं के आधार पर राज्य का निर्माण होता है |
जिस प्रकार व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले सारे कार्य आत्मा से प्रेरणा लेते है उसी प्रकार राज्य के सभी कार्यों का उद्दभव उन्हें निर्मित करने वाले मनुष्यों की आत्माओं से होता है |
प्लूटो के आदर्श राज्य का दार्शनिक आधार
प्लूटो के आदर्श राज्य की व्याख्या करने से पहले राज्य की उत्पत्ति के दार्शनिक आधारों पर चर्चा करना आवश्यक है| प्लूटो के आदर्श राज्य के निम्नलिखित दार्शनिक आधार हैं:-
- व्यक्ति का विस्तृत रूप ही राज्य है- प्लूटो ने अपने आदर्श राज्य का निर्माण व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक संबंधों पर आधारित किया है| प्लेटों की मान्यता है कि राज्य व्यक्ति के समान है| व्यक्ति का विस्तृत रूप ही राज्य कहलाता है| प्लूटो का कहना है राज्य की उत्पत्ति वृक्षों या चट्टानों से नहीं अपितु व्यक्तियों के चरित्र से होती है| प्लूटो की मान्यता है कि व्यक्ति की चेतना और राज्य की चेतना एक ही है सभी सामाजिक मुद्दे राज्य की आत्मा को व्यक्त करती है|
- मानव आत्मा के तीन तत्व- प्लूटो ने अपने मानव आत्मा के विश्लेषण के आधार पर ही आदर्श राज्य का निर्माण किया है| इसलिए आत्मा के तीनों गुणों विवेक, साहस और क्षुधा के आधार पर आदर्श राज्य में तीन वर्गों दार्शनिक सैनिक और उत्पादक वर्ग की व्यवस्था की है| विवेक राज्य में निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| यद्यपि साहस के साथ विवेक पहले से ही उपस्थित रहता है| लेकिन इसकी पूरी परिनीति दार्शनिक शासकों में होती है| जब सहयोगी और सहायक व्यक्ति आपस मैं एकत्रित होकर एक स्थान पर रहने लगते हैं तो राज्य का निर्माण होता है| एक आदर्श राज्य कार्य में तुष्टीकरण के सिद्धांत के आधार पर स्वांलंबी बन सकता है| इस प्रकार मानव आत्मा व राज्य में एकता का निर्माण होता है| अतः राज्य मानव आत्मा का ही एक स्वरूप है|
- राज के हित में ही व्यक्ति का हित निहित है- मानव राज्य की चेतना का ही एक अंश है| अतः राज्य के हित में ही व्यक्ति का हित निहित होता है| व्यक्ति राज्य में रहकर ही अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है| इसलिए प्लूटो राज्य की सावयवी एकता पर बल देता है|
- सत्य संबंधित सिद्धांत- प्लेटों के मतानुसार भौतिक पदार्थों तथा भलाई का निवास विचार जगत में है| प्लूटो ने, विचार जगत के एक अंग के रूप में ही, आदर्श राज्य की भावना को प्रस्तुत किया|
आदर्श राज्य का निर्माण :- राज्य को उतपन्न करने में तीन तत्व सहायक होते है –
1 . आर्थिक तत्व :- इसका सम्बन्ध उत्पादक वर्ग से है | आर्थिक तत्वों के अंतर्गत प्लूटो वासना अथवा क्षुधा तत्वों को राज्य का प्रारम्भिक आधार मानकर अपनी विवेचना शुरू करता है | आर्थिक तत्वों से अभिप्राय यह है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओ को अकेले पूर्ण नहीं कर सकता | प्लूटो के अनुसार आदर्श राज्य की स्थापना के लिए आवश्यकताओं की सर्वोत्तम तुष्टि और सेवाओं का समुचित आदान प्रदान आवश्यक है |
2 . सैनिक तत्व :- इसका सम्बन्ध सैनिक वर्ग से है | यह राज्य निर्माण हेतु दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है ,आवश्यकताओं में वृद्धि के साथ ही राज्य को अधिक भू-भाग की आवश्यकता होती है | अतः युद्ध अनिवार्य हो जाता है | युद्ध से सैनिक वर्ग का आविर्भाव होता है , जिससे युद्ध में सर्वाधिक आनंद आता है |
3 . दार्शनिक तत्व :- यह शासक वर्ग से सम्बन्धित है | राज्य निर्माण का तीसरा आधार दार्शनिक तत्व है जिनका सम्बन्ध आत्मा के विवेक बुद्धि से है | प्लूटो का मानना है कि राज्य के रक्षकों में विवेक का गुण विद्यमान होना अनिवार्य है | यह संरक्षक दो प्रकार के होते है-सैनिक संरक्षक तथा दार्शनिक संरक्षक|
प्लूटो का कहना है कि राज्य तभी आदर्श स्वरुप ग्रहण कर सकता है, जब राज्य का शासन ज्ञानी एवं निःस्वार्थ दार्शनिक शासकों द्वारा हो |
- प्लूटो का दार्शनिक सिद्धान्त :- दार्शनिक राजा के शासन का सिद्धान्त प्लूटो का एक प्रमुख और मौलिक सिद्धान्त है | उसकी धारणा थी कि आदर्श राज्य में शासक वर्ग परम बुद्धिमान व्यक्तियों का होना चाहिए | उसकी यह धारणा उसके न्याय , शिक्षा आदि सिद्धानंतों का स्वाभाविक परिणाम है | ऐसे लोगो को प्लूटो ने आदर्श राज्य का दार्शनिक शासक माना है |
प्लूटो का विश्वास था कि जब तक शासन सत्ता दार्शनिक शासकों को नहीं सोंपी जाएगी | तब तक राज्य में सुव्यवस्था स्थापित नहीं की जा सकती |
यही कारण है कि प्लूटो ने एक ऐसी शिक्षा की योजना बनाई जिससे दार्शनिक शासक उत्पन्न हो सके |
प्लूटो के अनुसार दार्शनिक शासक ही राज्य से स्वार्थपरता और अज्ञानता का अंत कर के एक समाज कल्याणकारी राज्य स्थापित कर सकता है |
दार्शनिक शासक की विशेषताएं :- प्लूटो की दार्शनिक शासक की विशेषता निमं है –
- ज्ञान प्रधान :- दार्शनिक शासक राज्य के तीन वर्गों में से ज्ञान प्रदान वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है प्लूटो ने इसी कारण शासक वर्ग के लिए एक विशेष प्रकार की शिक्षा प्रणाली बनाई |
- साम्यवादी :- प्लूटो ने दार्शनिक शासको के लिए साम्यवाद प्रस्तुत किया |उसने शासको को अलग – अलग परिवार के बंधनों में न डाल कर एक सम्मिलित परिवार का सदस्य होने की योजना बनाई थी |
- निःस्वार्थ :- प्लूटो के दार्शनिक शासक पूर्ण निःस्वार्थी होते है | वे राज्य के हितों को अपना ही समझते है | प्लूटो ने शासकों के लिए स्त्री और संपत्ति का साम्यवाद इसलिए बनाया ताकि वे निःस्वार्थ शासन चलायें|
- सुशिक्षित :- दार्शनिक शासक को पूर्ण ज्ञान होना चाहिए | प्लूटो का विश्वास था कि शासक अच्छा राजनीतिक , दर्शन शास्त्र का ज्ञाता और अच्छा शासक होना चाहिए |इसी कारण प्लूटो ने शासक के लिए एक लंबी शिक्षा योजना प्रस्तुत की | ज्ञानियों की सरकार में ही प्लूटो विश्वास करता था |
5. निरकुंश शासक :- प्लूटो ने अपने आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक को निरकुंश शासक का रूप दिया है | एक ओर उसने शासकों को अनियंत्रित शक्तियां दी है , दूसरी ओर वह निरकुंश शासन का विरोध करता है |
6. दार्शनिक राजाओं का शासन :- दार्शनिक राजा के शासन का सिद्धान्त प्लूटो का एक प्रमुख और मौलिक सिद्धान्त है | उसकी धारण थी आदर्श राज्य में शासक वर्ग परम बुद्धिमान व्यक्तियों का होना चाहिए | उसकी यह धारणा उसके न्याय ,शिक्षा आदि सिद्धान्त का स्वाभाविक परिणाम है |
प्लूटो का दार्शनिक आदर्श राज्य का फ़ासिज़्म कनैक्शन
प्लूटो के इन्हीं सिद्धांत और प्रणालियों के माध्यम से वह महान राजनीतिज्ञ बने| उन्होने अपने न्याय के सिद्धांत से दुनिया में अमिट छाप छोड़ी |शिक्षा की नयी नीति ने शिक्षा प्रणाली को बदल दिया | प्लूटो के सिद्धांत ने संसार में बहुत बदलाव किये | प्लूटो कुशल व्यक्ति था | प्लूटो की इन सभी विशेष नीतियों ने ही उसे एक कुशल दार्शनिक व कुशल राजनीतिज्ञ बनाया| लेकिन उनके सिद्धांत की बहुत आलोचनाएँ भी हुई| उनके सिद्धांत को फ़ासिज़्म का सिद्धांत बताया गया हैं| इसके पीछे विद्वानों के निम्न तर्क हैं:-
- प्लूटो के साम्यवाद के सिद्धांत को परिवार को समाप्त करने के उद्देश्य से भी देखा जा सकती है, क्योंकि संपति के बाद पारिवारिक बंधन ही वह समर्थ कारण हो सकता था जो शासको की राज्य के प्रति निष्ठा को डगमगा सकता था |
- सेबाइन ने प्लूटो की ओर से निष्कर्ष निकला है कि “अपने बच्चों के लिए दुश्चिंता अपने आप को प्राप्त करने का ही एक तरीका है, जो संपति की इच्छा से भी अधिक विश्वासघाती है|”
- यह दो प्रकार के साम्यवाद शासकों और सहायकों पर लागू किये गए है जिन्हें प्लूटो संरक्षक कहता है, लेकिन प्लूटो के सिद्धांत ने एक तरह से उन्हें सभी प्रकार के मानसिक सुखो से भी वंचित कर दिया|
- प्लूटो के, ‘पत्नियों और संपति के साम्यवाद की योजना’, प्रस्तुत करने के कारण थे – राजनीतिक सत्ता का प्रयोग करने वालों के कोई आर्थिक प्रयोजना नहीं होने चाहिए और आर्थिक गतिविधियों में लगे लोगो की राजनीतिक शक्ति में कोई भूमिका नहीं होना चाहिए| लेकिन विद्वानों का कहना हैं कि परिवार के बिना लोगों में पाने की इच्छा ख़त्म हो जाती हैं|
- प्लूटो के साम्यवाद सिद्धांत में परिवार नामक संस्था का लोप करके भारी गलती की है | परिवार से ही राज्य व समाज का जन्म हुआ है| परिवार राज्य की छोटी इकाई है| परिवार का अंत करना मानव समाज के लिए अहितकर होगा क्योंकि परिवार एक ऐतिहासिक संस्था है| इसके पीछे युगों का अनुभव है| इसे समाप्त करने का अर्थ है असभ्यता के युग में लौटना| राज्य की तरह परिवार भी मानव स्वभाव से उत्पन्न संस्था है| राज्य के नाम पर परिवार का अंत करना सर्वथा अनुचित है| परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला है| परिवार में बच्चे दया, सहयोग, प्रेम, सहानुभूति जैसे चीजों को सीखते हैं|