UNIT 5
जे.एस.मिल और उनकी राजनीतिक विचारधारा
जॉन स्टुअर्ट मिल (1806–1873) उन्नीसवीं सदी के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली ब्रिटिश दार्शनिक थे। वे अंतिम व्यवस्थित दार्शनिकों में से एक थे, जिन्होंने तर्क, महामारी विज्ञान, नीतिशास्त्र, राजनीतिक दर्शन और सामाजिक सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक व्यक्ति भी थे, जो उदारवादी मंच की कलाकारी करते थे, विभिन्न उदारवादी सुधारों के लिए दबाव डालते थे और संसद में सेवा करते थे। मिल के जीवनकाल के दौरान, उन्हें सैद्धांतिक दर्शन और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में उनके काम के लिए सबसे अधिक प्रशंसा मिली। हालाँकि, आजकल मिल का सबसे बड़ा दार्शनिक प्रभाव नैतिक और राजनीतिक दर्शन में है, विशेष रूप से उनकी अभिव्यक्ति और उपयोगितावाद और उदारवाद की रक्षा (निकोलसन 1998)। हम उनके दो सबसे लोकप्रिय और सबसे प्रसिद्ध कामों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, Utilitarianism (1861, जिसे यू कहा जाता है) और ऑन लिबर्टी (1859, OL के रूप में उद्धृत)| हम यह देखकर निष्कर्ष निकालेंगे कि मिल कैसे इन सिद्धांतों को प्रतिनिधि सरकार (1859, सीआरजी के रूप में उद्धृत), राजनीतिक अर्थव्यवस्था के सिद्धांत (1848, पीपीई के रूप में उद्धृत), और महिलाओं की अधीनता पर राजनीतिक और लैंगिक समानता के मुद्दों पर लागू होती है।
जॉन स्टूअर्ट मिल उपयोगितावादी दर्शन को एक नई दिशा प्रदान करने वाले अंतिम उपयोगितावादी विचारक थे| उनके विचारों में व्यक्तिवाद उदारवाद का उचित सामान्यजस पाया जाता है| उनका प्रमुख ग्रंथ 'ऑन लिबर्टी' ने संसार के सभी लेखकों का ध्यान आकृष्ट किया| उनकी राष्ट्रवादी भावना ने एशिया के देशों पर अमिट छाप छोड़ी | उन्होंने स्त्री मताधिकार का समर्थन करके स्वयं को स्त्री जाति का ऋणी बना दिया है| उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य तो उपयोगितावाद की कायापलट करना है|
जॉन स्टूअर्ट मिल का जन्म 20 मई सन 1806 को लंदन में हुआ | वह अपने पिता जेम्स मिल की प्रथम संतान थे| उनके पिता स्वयं उपयोगितावादी सुधारक होने के नाते उपयोगितावादी शिक्षा देना चाहते थे| जॉन स्टूअर्ट मिल स्वयं भी एक प्रतिभाशाली बालक थे| मात्र 3 वर्ष की आयु में ही ग्रीक तथा 8 वर्ष की आयु में लैटिन भाषा सीख ली थी| उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके पिता ने उन्हें अपने निर्देशन में रखा| वो एकांत प्रिय एवं अध्ययन प्रेमी विचारक थे| वह किसी से मिलना जुलना नहीं चाहते थे| इसलिए उन्हें मानसिक तनाव ने घेर लिया| इस बात से आहत होकर उनके पिता ने 1820 में उन्हें फ्रांस भेज दिया ताकि वह स्वास्थ्य लाभ पा सके | फ्रांस से वापस आकर बेन्थैम की पुस्तक 'कानून के सिद्धांत' का अध्ययन किया | तत्पश्चात विधि -वेता जॉन ऑस्टिन से कानून की शिक्षा प्राप्त की| मात्र 16 वर्ष की आयु में एक प्रखंड विद्वान बन चुके थे|
जॉन स्टुअर्ट मिल को व्यक्तिवाद और स्वतंत्रता का महान् उन्नायक माना जाता है । उदारवादी चिंतन की परंपरा में उसका सबसे बडा योगदान यह था कि उसने अपने समय के अनुरूप स्वतंत्रता की संकल्पना को बदल दिया ।
उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में उपयोगितावादी सुधारों के फलस्वरूप इंग्लैंड में प्रशासनिक गतिविधियों का क्षेत्र बहुत बढ़ गया था । बेंथम और दूसरे उपयोगितावादी यह मानते थे कि ‘अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख’ (Greatest Happiness of the Greatest Number) की सिद्धि के लिए राज्य को व्यक्तियों की गतिविधि में कम-से-कम हस्तक्षेप करना चाहिए ।
स्वतंत्रता की संकल्पना :- जे. एस. मिल ने स्वतंत्रता के बारे में अपनी संकल्पना अपने प्रसिद्ध निबंध ‘On Liberty-1859’ के अंतर्गत प्रस्तुत की । जी.एम. सेबाइन के अनुसार, इस निबंध के अंतर्गत मिल ने ऐसे लोकमत (Public Opinion) के निर्माण पर बल दिया है जो सचमुच सहनशील हो, जो मत-जो मत-मतांतर को महत्व देता हो, और जो मानवीय ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए नए विचारों का स्वागत करता हो ।
इसे बढावा देने के लिए ही उसने व्यक्तिवाद का प्रबल समर्थन किया । मिल के अनुसार, मानव व्यक्तित्व के विकास के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Freedom) सर्वथा आवश्यक है|
मिल के विचार से, व्यक्ति के कार्य दो प्रकार के होते हैं :- (1) ‘आत्मपरक’ कार्य जिनका सरकार स्वयं कार्य करने वाले से होता है- दूसरों पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता, और (2) ‘अन्यपरक कार्य’ जिनका समाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है|
- मिल ने तर्क दिया कि व्यक्ति के आत्मपरक कार्यों में राज्य की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए; और उसके अन्यपरक कार्यों में केवल उन्हीं कार्यों पर रोक लगाई जानी चाहिए जो दूसरों को हानि पहुँचाते हों, और यह बात प्रमाणित की जा सकती हो ।
- स्वतंत्रता का अर्थ है, वह कार्य करना जिसे कोई व्यक्ति करना चाहता है, और उसे करना वह अपने लिए उचित समझता है ।
- प्रस्तुत उदाहरण के अंतर्गत वह व्यक्ति नदी पार करना चाहता है, परंतु नदी में गिरना तो नहीं चाहता । वह यह नहीं जानता कि पुल पर चढ़ना खतरे से खाली नहीं है ।
स्वतंत्रता की परिभाषा में इस संशोधन का अर्थ यह है कि व्यक्ति के अपने हित को सुरक्षित रखने के लिए राज्य उसके आत्मपरक कार्यों में भी हस्तक्षेप कर सकता है । मिल के इस तर्क में टी.एच. ग्रीन (1836-82) के विचारों का पूर्वाभास मिलता है ।
स्वंतंत्रता का महत्व :- स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करते हुए मिल ने विशेष रूप से तीन तरह की स्वतंत्रता पर बल दिया है:
1. अंतरात्मा की स्वतंत्रता:- इसमें विचार और अनुभूति की स्वतंत्रता का विशेष स्थान है । मनुष्य को सभी विषयों पर-चाहे वे व्यावहारिक जीवन से जुड़े हों या चिंतन-मनन के क्षेत्र से, चाहे वे वैज्ञानिक हों, नैतिक या धर्मशास्त्रीय हों-कोई भी विचार या भावना रखने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए ।
विचार की अभिव्यक्ति और प्रकाशन की स्वतंत्रता भिन्न सिद्धांत पर आधारित है क्योंकि यह व्यक्ति के व्यवहार का ऐसा हिस्सा है जो दूसरों को प्रभावित कर सकता है ।
परंतु यह विचार की स्वतंत्रता की तरह महत्वपूर्ण है । यदि विचार को अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलेगा तो विचार की स्वतंत्रता निरर्थक हो जाएगी ।
लोकतंत्र और सामाजिक प्रगति से जुड़ी हुई समस्या पर विचार करते हुए मिल ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के महत्व पर विशेष बल दिया है । मिल यह दिखाना चाहता था कि लोकतंत्र की स्थापना से व्यक्ति की स्वतंत्रता की समस्या हल नहीं हो जाती बल्कि उसके लिए नए-नए खतरे पैदा हो जाते हैं ।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को उचित ठहराने के लिए मिल ने उपयोगितावादी और नैतिकतावादी दोनों तरह के तर्क का सहारा लिया है ।
उपयोगितावादी तर्क के अनुसार, विवेकसम्मत ज्ञान सामाजिक कल्याण का आधार है । दूसरी ओर, नैतिकतावादी तर्क के अनुसार, वैयक्तिक आत्म-निर्णय मनुष्य का मूल अधिकार है जो उसमें नैतिक दायित्व की भावना विकसित करने के लिए अनिवार्य है ।
2. अपनी अभिरुचियाँ विकसित करने और अपनी तरह का काम करने को स्वतंत्रता:- यह इसलिए जरूरी है ताकि मनुष्य अपने चरित्र के अनुरूप अपने जीवन की योजना बना सके । यदि दूसरों को उसका कोई काम मूर्खतापूर्ण, अस्वाभाविक या अनुचित लगता हो तो भी जब तक वह दूसरों को कोई हानि नहीं पहुँचाता, या वह स्वयं उसके लिए विनाशकारी न हो उसे वैसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।
मनुष्य को स्वयं जैसा अच्छा लगे वैसे जीकर कष्ट उठाने में जितना लाभ होगा, जैसा दूसरी को अच्छा लगे वैरने जीकर सुख पाने में उतना लाभ नहीं होगा ।
3. किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठन बनाने की स्वतंत्रता:- शर्त यह है कि इससे किसी को भी क्षति न पहुँचाई जाए । संगठन बनाने वाले व्यक्ति वयस्क होने चाहिए ताकि वे सोच-समझ कर निर्णय करने में समर्थ हों । किसी को विवश करके या धोखा देकर किसी संगठन में सम्मिलित नहीं करना चाहिए ।
जो लोग सारे काम एक-जैसे करते हैं, वे एक ही तरह सोचने भी लगते हैं जिससे उनमें स्वयं सोचने की शक्ति कुंठित हो जाती है । मिल के इन विचारों में उस संकल्पना का पूर्वसंकेत मिलता है जिसे बीसवीं शताब्दी में जनपुंज समाज (Mass Society) की संज्ञा दी गई है । यह स्थिति जनसंपर्क के साधनों (Mass Media) की विलक्षण प्रगति का परिणाम है ।
मिल का विश्वास था कि आधुनिक औद्योगिक समाज में जब अनुदारवादी शक्तियाँ प्रबल हो जाएंगी, तब स्वतंत्रता के बारे में उसकी शिक्षाओं पर अवश्य ध्यान दिया जाएगा । मिल ने लिखा है कि औद्योगिक सभ्यता की प्रगति सब मनुष्यों के लिए एक-जैसी परिस्थितियाँ पैदा कर देती है जिससे उनके लिए भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के रूप में जीना मुश्किल हो जाता है ।
परंपरा में मिल के योगदान को समझने का एक हिस्सा मानव प्रेरणा और खुशी की प्रकृति के मुद्दों पर रैडिकल के साथ उनकी असहमति को समझना शामिल है। मिल के उपयोगितावाद के सिद्धांत कुछ इस प्रकार से हैं:-
1) सुख मापक गणना विधि- मिल का कहना है कि इस विधि से सुख की मात्रा का आकलन निष्पक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है| सुख को वस्तुगत दृष्टि से नहीं मापा जा सकता| सुख एक आत्मक अनुभूति है जिसे संबंधित व्यक्ति ही अनुभव कर सकता है|
2) सुखों में गुणात्मक अंतर- मिल के अनुसार विभिन्न प्रकार के सुखों में अंतर होता है| मिल ने बेंथम के मात्रात्मक भेद का खंडन करते हुए कहा है कि विभिन्न सुखों में गुणात्मक भेद भी होता है| उनका कहना है कि कुछ सुख मात्रा में कम होने पर भी इसलिए प्राप्त करने योग होते हैं कि वह श्रेष्ठ और उत्कृष्ट कोटि के होते हैं|
3) अन्य व्यक्तियों का सुख- बेंथम के अनुसार मनुष्य एक स्वार्थी प्राणी है जो सदैव अपने हितों को ही पूरा करने में लगा रहता है| उसमें दूसरों के सुख दुख को समझने की योग्यता नहीं है| परंतु मिल ने इसका खंडन करते हुए कहा कि मनुष्य स्वार्थी होने के साथ-साथ परमार्थी भी होता है| उसमें अपने सुख की इच्छा के साथ-साथ दूसरों के सुख के लिए त्याग करने की भावना भी विद्यमान रहती है|
4) इतिहास व परंपराओं को महत्व- बेंथम में इतिहास व परंपराओं की घोर उपेक्षा की थी| मिल ने बेंथम की सभी धारणाओं का खंडन करते हुए कहा कि प्रत्येक देश और जाति का अपना इतिहास व परंपराएं अलग-अलग होती है| इतिहास व परंपराओं का विकास उस देश की परिस्थितियों के अनुसार ही होता है| प्रत्येक देश की शासन प्रणाली वहां की परंपराओं व इतिहास से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है|
5) राजनीतिक बनाम नैतिक सिद्धांत - मिल के अनुसार मनुष्य के राज्य के प्रति कुछ सार्वजनिक कर्तव्य तथा दायित्व होते हैं जिनकी उपयोगिता वादी सिद्धांत के द्वारा व्याख्या करना असंभव है| व्यक्ति के आंतरिक आत्मा इसे अंतःकरण कहा जाता है, हमें नैतिक तौर पर आज के प्रतिपाद्य बना देता है| मिल ने कहा कि अंतःकरण अन्य लोगों के सुख तथा दूसरों के दुखों का हास चाहता है|
6) व्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व- मिल ने बेंथम के इस सिद्धांत में भी संशोधन किया| जनता को विशेष महत्व देते हुए इसे उपयोगिता के सिद्धांत का अग्रणी माना| मिल के अनुसार स्वतंत्रता का विशेष महत्व है| मनुष्य के जीवन का लक्ष्य उत्कृष्ट बनना होता हैं|
मिल प्रमुख उपयोगितावादी थे। बेंथम के उपयोगितावाद में उन्होंने व्यापक संशोधन प्रस्तुत किए। बेंथम ने उपयोगितावाद पर गुणात्मक अंतर को अनदेखा कर दिया था जबकि मिल के अनुसार सुखों की मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता भी होना आवश्यक है। मनुष्य भौतिक सुखों की भोगवृति के लिए नहीं जीता है बल्कि उसे बौद्धिक, नैतिक तथा साहित्य का अभीरुचियों से भी आनंद (सुख) प्राप्त होता है।
“एक संतुष्ट मूर्ख की अपेक्षा है संतुष्ट सुकरात होना कहीं ज्यादा अच्छा है।” – मिल
“जिसने भी एक बार स्वतंत्रता का स्वाद ले लिया वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता।” – मिल
” उपयोगितावादी मानदंड व्यक्ति का अधिकतम सुख ने होकर अधिकतम सामूहिक सुख है”।
मिल ने बेन्थम तथा अपने पिता जेम्स मिल के उपयोगितावादी दर्शन को नया रूप प्रदान
किया है।
- उसने बेन्थम के उपयोगितावाद को ‘सूअर दर्शन’ (Pig Philosophy) की संज्ञा से मुक्त किया है। उसने इसे मानवीय रूप प्रदान किया है। उसने समाज-सुधार को वैधानिक प्रक्रिया माना है।
- मिल ही पहला उपयोगितावादी था जिसने यह स्पष्ट अनुभव किया कि समाज के बिना न तो कोई सभ्यता हो सकती है और न ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सम्भव है। उसका उपयोगितावाद नैतिकता और आध्यात्मिकता पर आधारित है।
- उसका उपयोगितावादी दर्शन पूर्ववर्ती सभी उपयोगितावादियों के दर्शन से महान् है। उसने बेन्थम के उपयोगितावाद को बुद्धिवादी दर्शन के आधार पर परिमार्जित किया है।
- इस प्रकार कहा जा सकता है कि मिल ने निर्जीव व निष्प्रभ उपयोगितावादियों के विचारों को मानवीय पुट प्रदान किया।
- उसने उपयोगितावादी सिद्धान्तों को नई दिशा प्रदान की। उसने उपयोगितावादको आधुनिक रूप प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने लोकतन्त्र को सुदृढ़ आधार प्रदान करने के लिए उपर्युक्त सुझाव भी प्रस् किए।
उसके द्वारा स्त्री-जाति की मुक्ति व मताधिकार, आनुपातिक प्रतिनिधित्व, उदारवाद, व्यक्तिवाद, स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थन किया जाना उसको राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाता है। उसका सम्पूर्ण विचार-दर्शन जन-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। इसलिए उसका महत्त्व शाश्वत व अमूल्य है। सम्पूर्ण राजनीतिक चिन्तन का इतिहास उसका ऋणी है।