UNIT 8
जे.एस.मिल द्वारा बेन्थम की उपयोगितावाद में सुधार
- संक्षिप्त परिचय
जेरेमी बेंथम एक अंग्रेजी दार्शनिक और राजनीतिक कट्टरपंथी थे। उन्हें आज मुख्य रूप से उनके नैतिक दर्शन, विशेष रूप से उपयोगितावाद के उनके सिद्धांत के लिए जाना जाता है, जो परिणामों के आधार पर उनके कार्यों का मूल्यांकन करता है। प्रासंगिक परिणाम, विशेष रूप से, कार्रवाई से प्रभावित सभी के लिए बनाई गई समग्र खुशी है। कई प्रबुद्ध चिंतकों, विशेष रूप से साम्राज्यवादियों जैसे कि जॉन लोके और डेविड ह्यूम से प्रभावित होकर, बेन्थम ने एक नैतिक सिद्धांत विकसित किया जो मानव प्रकृति के एक बड़े साम्राज्यवादी राज्य के अंतर्गत अवलोकित था। उन्होंने प्रसिद्ध रूप से प्रेरणा और मूल्य दोनों के एक विचारधारा वाले सिद्धांत को धारण किया जिसके अनुसार, वो जो मौलिक रूप से मूल्यवान है और जो हमें प्रेरित करता है, वह है-‘सुख’ और ‘दर्द’।
2. जीवन परिचय
एंग्लो-अमेरिकन दर्शन के एक अग्रणी सिद्धांतकार और कानून के संस्थापकवाद में से एक, उपयोगितावाद के संस्थापकों में से एक, जेरेमी बेंथम 15 फरवरी, 1748 को लंदन के हाउंड्सडिच में पैदा हुए थे। वह वकील के बेटे और पोते थे, और उनका प्रारंभिक पारिवारिक जीवन काफी रंगीन था जिसमें आस्था अंधविश्वास का मिश्रण (उनकी माँ की तरफ) और प्रबुद्धतावाद (उनके पिता से) सभी का समावेश था। बेंथम बड़े सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव के समय में पैदा हुए थे। औद्योगिक क्रांति (बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक बदलावों के साथ, जो इसके मद्देनजर लाए गए हैं), मध्यम वर्ग का उदय और फ्रांस और अमेरिका में क्रांतियों सभी मौजूदा संस्थानों पर बेंथम के सिद्धांत परिलक्षित हुए थे। 1760 में, बेंथम ने क्वींस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में प्रवेश किया और 1764 में स्नातक होने पर, लिंकन इन में कानून का अध्ययन किया। यद्यपि वो कानून का अभ्यास करने के योग्य थे, लेकिन उन्होने ऐसा कभी नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय कानूनी सुधार के मामलों पर लिखने के लिए समर्पित किया| हालांकि, उत्सुकतावश, उन्होंने जो कुछ भी लिखा था, उसे प्रकाशित करने का बहुत कम प्रयास किया।
बेंथम ने अपना समय गहन अध्ययन में बिताया, जो अक्सर दिन में आठ से बारह घंटे लिखते थे। जबकि उनके अधिकांश ज्ञात कार्य कानून में सैद्धांतिक प्रश्नों से संबंधित हैं, बेंथम एक सक्रिय नीति-नियंता थे और कुछ समय के लिए उन परियोजनाओं को विकसित करने में लगे हुए थे जो सामाजिक संस्थाओं के सुधार के लिए विभिन्न व्यावहारिक विचारों का प्रस्ताव रखते थे। यद्यपि उनके कार्य का राजनीतिक दर्शन पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, लेकिन बेंथम ने इस विषय पर अपने विचारों के आवश्यक सिद्धांतों को देते हुए एक भी पाठ नहीं लिखा। उनका सबसे महत्वपूर्ण सैद्धांतिक कार्य मोरल्स एंड लेजिस्लेशन के सिद्धांतों (1789) का परिचय है, जिसमें उनके नैतिक सिद्धांत का बहुत कुछ वर्णन किया गया है - जिसे उन्होंने "सबसे बड़ा खुशी सिद्धांत" कहा है - जिसका वर्णन और विकास आगे भी किया गया है।
3. बेंथम के विचार
- बेंथम के अनुसार, खुशी एक प्रकार आनंद और दर्द की कमी का मामला है।
- हालाँकि उन्होंने कभी कानून का अभ्यास नहीं किया, लेकिन बेंथम ने कानून के दर्शन का एक बड़ा हिस्सा लिखा|
- अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा मौजूदा कानून की आलोचना करते हुए और कानूनी सुधार की जोरदार वकालत करते हुए बिताया।
- अपने काम के दौरान, वह कानून के विभिन्न प्राकृतिक सिद्धांतों की आलोचना करते हैं, जो दावा करते हैं कि स्वतंत्रता, अधिकार, और सरकार के स्वतंत्र अस्तिव्त मौजूद हैं।
- इस तरह से, बेंथम ने यकीनन एक प्रारंभिक रूप विकसित किया, जिसे अब अक्सर कानूनी प्रत्यक्षवाद कहा जाता है।
- इस तरह की आलोचनाओं से परे, उन्होंने अंततः यह सुनिश्चित किया कि अपने नैतिक सिद्धांत को लगातार अभ्यास में रखने से सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी संस्थानों के लिए औचित्य प्रदान करके कानूनी सिद्धांत प्राप्त होगा।
- अपने जीवन के दौरान बेंथम का प्रभाव मामूली था। लेकिन बाद के वर्षों में उनका प्रभाव अधिक था क्योंकि उनके विचारों का अनुसरण जॉन स्टुअर्ट मिल, जॉन ऑस्टिन और अन्य परिणामवादियों जैसे अनुयायियों द्वारा किया गया था।
1. संक्षिप्त परिचय
राजनीतिक सैद्धांतिक विकास के क्षेत्र में, जॉन स्टुअर्ट मिल उच्च स्थान पर है। उन्हें उन्नीसवीं शताब्दी का सबसे प्रेरक राजनीतिक दार्शनिक माना जाता था। अपने राजनीतिक सिद्धांत में, उदारवाद ने राज्य के लिए एक सक्रिय भूमिका के लिए, एक नकारात्मक से स्वतंत्रता के सकारात्मक गठन और एक व्यक्तिवाद से अधिक व्यक्तिवाद की सामाजिक अवधारणा के लिए, काफी बदलाव किया। वैसे, तो मिल एक उदारवादी थे, उन्हें एक लोकतंत्रवादी, एक बहुलवादी, सहायक समाजवादी और एक नारीवादी के रूप में भी माना जाता हैं|
उनकी दार्शनिक उत्पत्ति जॉन लोके, जॉर्ज बर्कले और डेविड ह्यूम के ब्रिटिश साम्राज्यवाद में थी। लेकिन वह अपने शिक्षक, जेरेमी बेंथम के उपयोगितावादी सिद्धांत को आगे विकसित करने के लिए लोकप्रिय हैं, जिसे उन्होंने एक आंदोलन के रूप में प्रचारित किया और जिस की वजह से वो सबसे अच्छे परिचित और सहयोगी बन गए।
2. जीवन परिचय
अपने राजनीतिक विचारों में, मिल, प्लेटो की चर्चा और सुकरात के क्रॉस प्रश्नों से काफी प्रभावित थे। जॉन ऑस्टिन द्वारा रोमन कानून के अध्ययन, एडम स्मिथ द्वारा राष्ट्रों का धन और रिकार्डो के सिद्धांतों ने बड़े पैमाने पर उनके तर्क को प्रभावित किया। उन्होंने अपने पिता और बेंथम के सिद्धांतों को अपने अधीन कर लिया था और उपयोगिता के सिद्धांतों को अपने हठधर्मिता का आधार पाया। जे.एस. मिल उनकी अपनी पत्नी श्रीमती टेलर से भी काफी प्रभावित थे, जिन्हें वे ज्ञान, बुद्धि और चरित्र का एक आदर्श व्यक्तित्व कहते थे। यह उनके लेखन में परिलक्षित होता है कि जे.एस. मिल एक उत्पादक लेखक थे और उन्होंने ज्ञान के विभिन्न उपखंडों पर समान निपुणता के साथ लिखा। जब वह सिर्फ 20 साल के थे, तो मिल ने समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू कर दिया। उनके सिस्टम ऑफ लॉजिक (1843) ने राजनीति के एक व्यापक दर्शन को समझाने की कोशिश की। लॉजिक ने न्यूटनियन भौतिकी के मॉडल पर आधारित सामाजिक विज्ञान की एक अवधारणा के साथ लॉके और ह्यूम के सहयोगी अनुभव के ब्रिटिश साम्राज्यवादी परंपरा को साझा किया। उनका "सिस्टम ऑफ़ लॉजिक" केवल तर्क का नहीं बल्कि विज्ञान के तरीकों और सामाजिकता के साथ-साथ विशुद्ध रूप से प्राकृतिक घटनाओं पर उनकी प्रयोज्यता के लिए एक निर्धारित प्रयास था। ‘लॉजिक; में मिल के विचार में न केवल औपचारिक तर्क शामिल थे, बल्कि "तर्क के भी तर्क" थे।
1848 के उनके "प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी" ने दर्शाया कि अर्थशास्त्र "निराशाजनक विज्ञान" नहीं था जो थॉमस कार्लाइल (1795 - 1881) और उनके कट्टरपंथी और साहित्यिक आलोचकों ने सोचा था, और यह अर्थशास्त्र पर सभी पुस्तकों में से सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला पुस्तक बन गया|
"सिद्धांत" में, मिल के कट्टरपंथी तर्क थे कि हमें पर्यावरण की खातिर आर्थिक विकास का त्याग करना चाहिए, और जनसंख्या को सीमित करने के लिए खुद को साँस लेने की जगह देनी चाहिए ताकि अति-गरीबों के लिए कुपोषण के जोखिम को दूर किया जा सके।
1861 का उनका "उपयोगितावाद" उपयोगितावादी दृष्टिकोण की रक्षा पर शानदार काम था जिसे हमें सभी संवेदनशील प्राणियों के कल्याण (या खुशी) को अधिकतम करने के लिए करना चाहिए।
उपयोगितावादी नैतिकता, आदर्शवादी नैतिकता में, 18 वीं और 19 वीं सदी के अंत में अंग्रेजी दार्शनिकों और अर्थशास्त्रियों जेरेमी बेंथम और जॉन स्टुअर्ट मिल से उपजी एक परंपरा जिसके अनुसार अगर एक्शन सही होगा तो यह खुशी को बढ़ावा देता हैं और एक्शन यदि गलत होगा तो यह उल्टा प्रभाव देगा और यह न केवल क्रिया के कर्ता की खुशी बल्कि उससे प्रभावित सभी चीजो को भी प्रभावित करेगा। ऐसा सिद्धांत अहंकारवाद के विरोध में है, यह विचार कि किसी व्यक्ति को अपने स्वयं के स्वार्थ का पीछा करना चाहिए, यहां तक कि दूसरों की कीमत पर, और किसी भी नैतिक सिद्धांत के लिए जो कुछ कृत्यों या प्रकारों के कार्यों को सही या गलत के रूप में उनके परिणामों के बारे में स्वतंत्र रूप से मानते हैं। उपयोगितावाद भी नैतिक सिद्धांतों से भिन्न होता है| उपयोगितावादी के अनुसार, खराब मकसद से सही काम करना संभव है। हालांकि, उपयोगितावादी इस बात की प्रशंसा कर सकते हैं कि एक्ट सही था या नहीं।
- उपयोगितावाद की प्रकृति
उपयोगितावाद व्यावहारिक प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास है "एक व्यक्ति को क्या करना चाहिए?" इसका उत्तर यह है कि एक व्यक्ति को कार्य करना चाहिए ताकि सर्वोत्तम परिणाम संभव हो सके।
2. मूल अवधारणा
परिणामों की धारणा में उपयोगितावादी में अधिनियम द्वारा उत्पादित अच्छे और बुरे सभी शामिल हैं, चाहे वह कार्य प्रदर्शन के बाद उत्पन्न हुआ हो या उनके प्रदर्शन के दौरान। यदि वैकल्पिक कृत्यों के परिणामों में अंतर महान नहीं है, तो कुछ उपयोगितावादी नैतिक मुद्दे के रूप में उनके बीच के चुनाव को नहीं मानते हैं। मिल के अनुसार, कृत्यों को नैतिक रूप से सही या गलत के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए|
3. बेंथम और मिल हेडोनिस्ट
बेंथम और मिल हेडोनिस्ट थे; यानी, उन्होंने दर्द पर खुशी के संतुलन के रूप में खुशी का विश्लेषण किया और माना कि ये भावनाएं केवल आंतरिक मूल्य और अव्यवस्था की हैं। उपयोगितावादी यह भी मानते हैं कि दो वैकल्पिक क्रियाओं द्वारा उत्पन्न आंतरिक मूल्यों की तुलना करना और अनुमान लगाना संभव है, जिसके बेहतर परिणाम होंगे। बेंथम का मानना था कि एक हेडोनिक पद्धति सैद्धांतिक रूप से संभव है। एक नैतिकतावादी, खुशी की इकाइयों और हर किसी के लिए, तुरंत और भविष्य में प्रभावित होने की संभावना की इकाइयों को जोड़ सकता है, और एक कार्रवाई के समग्र अच्छे या बुरे प्रवृत्ति की माप के रूप में शेष राशि ले सकता है।
मिल के समय बेंथम की उपयोगिता वाद सिद्धांत की बहुत आलोचनाएं हो रही थी| आलोचक विद्वानों का आरोप था कि यह कोरे भौतिक एवं इंद्रिय सुख पर आधारित है| कुछ लखकों ने
इसे सूअर दर्शन कह कर आलोचना की है| लेकिन जॉन स्टुअर्ट मिल बेंथम के सच्चे शिष्य होने के नाते उनकी आलोचनाओं को सहन नहीं कर सके इसलिए उनके बचाव में आगे आए और उपयोगितावाद के ऊपर लगाए गए आरोपों को मुक्त करने का प्रयास शुरू कर दिया| मिलने बेंथम के उपयोगितावाद का अनुसरण करने की बजाय कुछ परिवर्तनों के साथ पेश किया | जे.एस. मिल ने बेन्थम के उपयोगितावाद में सुधार किया है, जो इस प्रकार से हैं:-
उपयोगितावाद का संशोधन :-
मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद की इस मान्यता को तो स्वीकार किया कि राज्य का ध्येय ‘अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख’ की सिद्धि करना है, परंतु उन्होने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘Utilitarianism-1863’ के अंतर्गत उपयोगिता के मूल सिद्धांत में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए:
- सुखमापक गणनाविधि में संशोधन: मिल का कहना है कि इस विधि से सुख की मात्रा का आकलन निष्पक्ष रूप से नहीं किया जा सकता। सुख को वस्तुगत दृष्टि से नहीं मापा जा सकता। सुख एक आत्मपरक अनुभूति है जिसे सम्बन्धित व्यक्ति ही अनुभव कर सकता है। उनके अनुसार सुख का तात्पर्य केवल इन्द्रिय-सुख ही नहीं, बल्कि मानसिक एवं नैतिक सुख से भी होता है। इस आधार पर मिल ने सुखमापक गणना विधि को मूर्खतापूर्ण बताया है। उसका कहना है कि सुख की गणना दो सुख देने वाली वस्तुओं की प्रगाढ़ता की तुलना करके ही ज्ञात की जा सकती है। इसके लिए समुचित अनुभव का होना आवश्यक है। दोनों वस्तुओं के समुचित अनुभव के बिना सुख का पता नहीं लगाया जा सकता। इस प्रकार सुखमापक गणनाविधि (FelicificCalculus) हास्यास्पद व उपयोगितावाद के दुर्ग में एक दरार है।
2. सुखों में गुणात्मक अन्तर : मिल के अनुसार विभिन्न प्रकार के सुखों में अन्तर होता है। मिल ने बेन्थम के मात्रात्मक भेद का खण्डन करते हुए कहा है कि विभिन्न सुखों में गुणात्मक भेद भी होता है। उसका कहना है कि "कुछ सुख मात्रा में कम होने पर भी इसलिए प्राप्त करने योग्य होते हैं कि वे श्रेष्ठ और उत्कृष्ट कोटि के होते हैं।" जिन व्यक्तियों ने उच्चतर तथा निम्नतर दोनों प्रकार के सुखों का अनुभव हो, वे निम्नतर की तुलना में उच्चतर सुख को प्राथमिकता देते हैं। बेन्थम के इस कथन से कि- "यदि सुख की मात्रा समान हो तो पुश्पिन (एक खेल) भी इतना ही श्रेष्ठ है जितना काव्यपाठ" - मिल सहमत नहीं है। इस सन्दर्भ में उसका कहना है कि "एक सन्तुष्ट सूअर की तुलना में एक असन्तुष्ट मनुष्य होना अच्छा है, एक असन्तुष्ट सुकरात होना एक सन्तुष्ट मूर्ख से अच्छा है और यदि सूअर और मूर्ख उससे सहमत नहीं हैं तो उसका कारण यह है कि वे केवल अपने पक्ष को ही जानते हैं।" इस आधार पर मिल ने सुखों के गुणात्मक अन्तर को स्पष्ट किया है। उसका यह सिद्धान्त अधिक सन्तोषप्रद, सत्य और अनभवानुकूल प्रतीत होता है। इस प्रकार मिल के गुणात्मक अन्तर को स्वीकार करने का तात्पर्य यह होगा कि जीवन का लक्ष्य उपयोगिता न होकर श्रेष्ठतम सुख की प्राप्ति हैं|
3. इतिहास व परम्पराओं को महत्त्व : बेन्थम ने इतिहास व परम्पराओं की घोर उपेक्षा की थी। उन्होने कहा था कि उनके सर्वव्यापी उपयोगिता के सिद्धान्त पर आधारित सिद्धान्त सार्वदेशिक (Universal) महत्त्व के हैं। उनका कहना था कि उनके द्वारा तैयार किए गए कानून व शासन प्रणालियाँ संसार के किसी भी हिस्से में समान रूप से लागू किए जा सकते हैं। मिल ने बेन्थम की इस धारणा का खण्डन करते हुए कहा कि प्रत्येक देश और जाति का अपना इतिहास व परम्पराएँ अलग होती हैं। इतिहास व परम्परा का विकास उस देश की परिस्थितियों के अनुसार ही होता है। इसलिए प्रत्येक देश की शासन प्रणाली वहाँ की परम्पराओं व इतिहास से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। बेन्थम द्वारा इतिहास व परम्परा का तिरस्कार करना वहाँ की जन-भावनाओं का तिरस्कार करना है। ये उस शासन प्रणाली के शाश्वत मूल्य होते हैं जिनसे शासन प्रणालियाँ स्थायित्व का गुण प्राप्त करती हैं। इससे निष्कर्ष निकलता है कि अलग-अलग देशों में अलग-अलग शासन प्रणालियाँ ही पाई जाती हैं। उसका कहना था कि जिस देश में असमानता अधिक हो वहाँ लोकतन्त्र सफल नहीं हो सकता। उन्होने इसे भारत के लिए अनुपयुक्त शासन प्रणाली बताया है। इसलिए मिल ने इस संशोधन द्वारा इतिहास व परम्परा के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
4. राजनीतिक बनाम नैतिक सिद्धान्त: बेन्थम का विचार था कि राज्य के प्रति व्यक्तियों की निष्ठा स्वार्थपूर्ण कारणों पर आधारित है। राज्य का आदेश मानने के पीछे उनकी कोई नैतिक बाध्यता नहीं है। राज्य अपने नागरिकों का सुख बढ़ाने तथा पीड़ा कम करने के लिए ही अस्तित्व में रहता है। बेन्थम ने इस बात पर बल दिया है कि- “विधि निर्माता एवं शासक वर्ग सामाजिक नीतियों के निर्धारण तथा विधि-निर्माण में सुख के सिद्धान्त का प्रयोग करें।" इसके विपरीत मिल ने बेन्थम के उपयोगितावादी सिद्धान्त में परिवर्तन करते हुए कहा- "मनुष्य के राज्य के प्रति कुछ सार्वजनिक कर्त्तव्य तथा दायित्व होते हैं जिनकी उपयोगितावादी सिद्धान्त के द्वारा व्याख्या करना असम्भव है। व्यक्ति के आन्तरिक मनोवेग जिसे अन्तःकरण कहा जाता है, हमें नैतिक तौर पर राज्य के प्रति बाध्य बना देता है।" मिल ने कहा है कि अन्तःकरण अन्य लोगों के सुख में व द्धि तथा दूसरों के दुःखों का हास चाहता है। मिल ने ईसा मसीह का उदाहरण देकर बेन्थम के उपयोगितावाद को नैतिक आधार पर प्रदान करने का प्रयास किया है। इस प्रकार बेन्थम का 'अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख का सिद्धान्त' मिल के दर्शन में नैतिक आधार में परिवर्तित हो गया है।
5. आर्थिक क्षेत्र में राज्य हस्तक्षेप का समर्थन: बेन्थम ने व्यक्तियों को अधिकतम सुख प्राप्त करने के लिए उनको अधिक आर्थिक स्वतन्त्रता प्रदान करने का समर्थन किया है। उनका मानना है कि इससे व्यक्ति की प्रसन्नता में वद्धि होगी और इसके परिणामस्वरूप सामाजिक प्रसन्नता में भी आनुपातिक वृद्धि होगी। इस प्रकार बेन्थम ने अहस्तक्षेप की नीति समर्थन किया है। इसके विपरीत मिल का मानना है कि इससे सार्वजनिक कल्याण का मार्ग अवरुद्ध होता है। कारखानों तथा भूसम्पत्ति पर अमीर लोगों के एकाधिकार से बहुसंख्यकों के सर्वांगीण विकास में बाधा पहुँचती है। इसलिए व्यक्ति का आर्थिक क्षेत्र में एकाधिकार शोषण की प्रवत्ति को बढ़ावा देता है। इसलिए समाज में आर्थिक असमानता पाई जाती है। ऐसे समाज में राज्य का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह सार्वजनिक कल्याण के लिए आर्थिक असमानता के दोषों को दूर करने के लिए कानून बनाए। इस प्रकार मिल के आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप का पूर्ण समर्थन किया है।
6. समाज को महत्त्व : बेन्थम के अनुसार समाज एक कृत्रिम संस्था है। मिल के अनुसार समाज एक स्वाभाविक संस्था है। उनका विश्वास है कि स्वस्थ सामाजिक वातावरण में ही व्यक्तियों का सार्वजनिक कल्याण सम्भव है। उनके अनुसार नैतिकता का सामाजिक उद्देश्य होता है। इसी प्रकार समाज का भी आध्यात्मिक तथ्य होता है और वह है, समाज के समस्त लोगों का आध्यात्मिक कल्याण। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को सार्वजनिक सुख की कामना व उसकी प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।
7. मतदान प्रणाली : बेन्थम ने गुप्त मतदान प्रणाली का समर्थन किया है, जबकि मिल ने खुले मतदान का समर्थन किया
8. मताधिकार: बेन्थम ने सबको मताधिकार प्रदान करने की बात कही है। लेकिन मिल ने इसका खण्डन करते हुए शिक्षित, ज्ञानी, उत्तरदायी व बुद्धिमान लोगों को ही मताधिकार प्राप्त करने की बात कही है। उसका कहना है कि मतादाता इतना विवेकशील तो अवश्य होना चाहिए जो उचित व अनुचित में स्पष्ट भेद कर सके।
9. स्त्री-मताधिकार: बेन्थम ने इसका कहीं उल्लेख नहीं किया है, जबकि मिल ने स्त्री-मताधिकार का जोरदार समर्थन किया|
10. प्रजातन्त्र पर विचार: बेन्थम ने प्रजातन्त्र को हर परिस्थिति में उपयुक्त माना है, जबकि मिल ने इसे केवल उस समाज में ही सफल माना है, जहाँ के व्यक्तियों का चरित्र उत्कृष्ट हो। उसने भिन्न-भिन्न समाजों के लिए अलग-अलग शासन प्रणालियों का समर्थन किया है।
मिल द्वारा किए गए उपयोगितावाद के सिद्धांत में सुधारों का सार कुछ इस प्रकार से हैं;-
- बेंथम के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के सुखों में कोई गुणात्मक अंतर (Qualitative Difference) नहीं होता; उनमें केवल परिमाणात्मक अंतर (Quantitative Difference) होता है परंतु मिल ने तर्क दिया कि भिन्न-भिन्न प्रकार के सुखों में गुणात्मक अंतर अवश्य होता है, और किसी सुख की गुणवत्ता उनके परिमाण से कम महत्वपूर्ण नहीं होती ।
- मनुष्य केवल भौतिक सुखों के पीछे नहीं दौड़ता बल्कि उसकी नैतिक, बौद्धिक और कलात्मक अभिरुचियों का विकास भी जरूरी है । जो सुख मनुष्य की उच्चतर क्षमताओं से प्राप्त किया जाता है, वह अन्य सुखों की तुलना में उत्तम है ।
- उच्च कोटि का सुख कम संतुष्टिदायक होने पर भी ग्राह्य है; निम्न कोटि का सुख अधिक संतुष्टिदायक होने पर भी त्याज्य है । मिल के शब्दों में, ”एक संतुष्ट मूर्ख की तुलना में असंतुष्ट सुकरात होना कहीं अच्छा है ।”
- उपयोगिता के सिद्धांत में मिल का यह संशोधन मानवीय विकास के आदर्श से प्रेरित था, जो मनुष्य के बारे में बेंथम की संकीर्ण संकल्पना से भिन्न था । बेंथम ने मनुष्य को मिलने वाले सुख की कल्पना करते समय आत्मसम्मान की भावना और व्यक्तिगत गरिमा की भावना जैसे महत्वपूर्ण तत्वों की अनदेखी कर दी थी ।
- मिल ने इन भावनाओं का महत्व स्थापित करते हुए यह टिप्पणी की – ”अपनी-अपनी उच्च क्षमताओं के विस्तृत प्रयोग के लिए एक-दूसरे को लगातार उत्तेजित करना सामाजिक सुख-समृद्धि का आवश्यक अंग है ।”
- पुराने उपयोगितावादी स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण तो मानते थे, परंतु उनके विचार से यह उपयोगितावाद का सार-तत्व नहीं था । मिल ने अपनी विचार- प्रणाली के अंतर्गत स्वतंत्रता को उपयोगिता का सार-तत्व बना दिया । उन्होने तर्क दिया कि सच्चा सुख केवल भौतिक संतुष्टि में निहित नहीं है, बल्कि वह चरित्र के विकास से प्राप्त होता है ।
- उच्च चरित्र वाला व्यक्ति ही उच्च कोटि के सुख को अनुभव कर सकता है । चरित्र के विकास के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वथा आवश्यक है । स्वतंत्रता मनुष्य को नए-नए सुखों का पता लगाने और पाने में समर्थ बनाती है । यह अपने-आपमें इतना बड़ा सुख है जिसके आगे अन्य सब सुख तुच्छ हैं |
- मिल के शब्दों में – ”जिसने एक बार स्वतंत्रता का स्वाद चख लिया हो, वह उसे किसी कीमत पर भी छोड़ने को तैयार नहीं होगा ।” यह बात ध्यान देने की है कि स्वतंत्रता की यह संकल्पना उपयोगिता के मूल सिद्धांत के साथ नहीं निभ सकती ।
- यदि प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करके अपने-अपने ढंग से सुख को ढूंढने और पाने का अवसर दिया जाए तो ऐसी कोई सामान्य नीति निर्धारित करना कठिन हो जाएगा जिसमें ‘अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख’ निहित हो । दूसरे, यदि कोई ऐसी नीति बना दी जाए जो ‘अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख’ की सिद्धि का दावा करती हो, तो उसे लागू करने पर कुछ लोगों की स्वतंत्रता को क्षति अवश्य पहुँचेगी, और मिल को ऐसी स्थिति स्वीकार नहीं होगी|
निष्कर्ष- इस प्रकार निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि मिल ने बेन्थम के उपयोगितावाद में महत्त्वपूर्ण संशोधन किए हैं। लेकिन वह उपयोगितावाद की रक्षा करते समय इतनी दूर चला गया कि इससे बेन्थम का उपयोगितावाद ही लुप्त हो गया। उसने स्वयं को उपयोगितावाद का व्याख्याता बताकर किसी नवीन सिद्धान्त का संस्थापक होने के पद से वंचित कर लिया। इसलिए सेबाइन ने कहा है कि- “मिल की सामान्य स्थिति यह है कि उसने पुराने उपयोगितावादी सिद्धान्त का एक अत्यन्त अमूर्त वर्णन किया परन्तु सिद्धान्त को ऐसे समय शुरू किया कि अन्त में पुराना सिद्धान्त तो समाप्त हो गया, किन्तु उसके स्थान पर किसी नवीन सिद्धान्त की स्थापना नहीं हुई।" इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मिल द्वारा बेन्थम के उपयोगितावाद में किए गए परिवर्तनों से जो नया सिद्धान्त उभरा है, वह उपयोगितावाद के स्थान पर एक अन्तर्वर्ती (Transitional) दर्शन है। उसके प्रयासों से इसमें उपयोगितावाद का अंश नाममात्र ही रह गया है। इसलिए मिल को अनेक आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है।